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शुक्रवार, अक्तूबर 11, 2024

कहानी श्रृंखला-53 डिलीवरी मैन 0 भगवंत रसूलपुरी

                                       डिलीवरी मैन

                                               0   भगवंत रसूलपुरी


                   पंजाबी से अनुवाद नीलम शर्मा अंशु    

    

अलैक्सा...!!’ आवाज़ आती है। दूसरी तरफ ख़ामोशी छाई हुई है।

अलैक्सा... तुम्हें रोना आता है?’

 मगर मैं तो हँसने-हँसाने वाली हूँ। एक स्वर उभरता है और फिर ख़ामोश हो जाता है।

अलैक्सा कोई बात सुनाओ। डॉ. गीता राय फिर कहती हैं।

मेरे पास बहुत सी बातें हैं... जैसे गाने हैं... स्टोरी... जोक्स... और बहुत सी जानकारियां। अलैक्सा कहती है।

अलैक्सा तुम हँस सकती हो...?’ डॉ. गीता फिर पूछती हैं।

बिलकुल मैं हँस सकती हूँ... हा...हा...ही...ही...हू...हू। हँसी से कमरा गूंज उठता है।

फिर तुम रो क्यों नहीं सकती... कैसी अलैक्सा है तू। डॉ. गीता फिर सवाल दागती है परंतु दूसरी तरफ ख़ामोशी पसरी रहती है। एकदम शांति। डॉ. गीता को याद आता है कि सबसे पहले अलैक्सा कहकर संबोधन करना पड़ता है। इसलिए वह फिर चीख उठती हैं         -अलैक्सा तुम्हें याद है... मैं अकेली हूँ... अलैक्सा यह एकाकीपन कैसे दूर होता है?’ डॉ. गीता एकाकीपन को भंग करना चाहती हैं।

   हाँ, मुझे याद है कि आप अकेली हैं... कभी-कभी दोस्तों से बात करनी चाहिए... ऐसा करने से मन हल्का हो जाता है। अलैक्सा कहती है।

अलैक्सा यह एकाकीपन कैसे दूर होता है?’

जब कभी अकेली हों तो आप मर्दों से चैट कर सकती हैं। कहकर अलैक्सा शांत हो जाती है।

डॉ. गीता हँस देती हैं। ज़ोर-ज़ोर से हँसती है। 

अलैक्सा तुझे पता है मेरे घर में किस गैर मर्द के लिए कोई जगह नहीं है... यह मेरा घर है और यहाँ मेरे हुक्म के बिना पत्ता भी नहीं हिलता... तुम भी मेरे हुक्म के बगैर नहीं बोल सकती। डॉ. गीता खुद-ब-खुद बोलती हैं। फिर वे अलैक्सा से कहती हैं –

 अलैक्सा! मर्द लोग कौन होते हैं ?’ डॉ. गीता टेढ़ा सा मुँह बनाकर कहती हैं।

दूसरी तरफ से आवाज़ उभरती है, स्पॉटीफाई के अनुसार मर्द वे होते हैं... जिनके जननांगों की बनावट औरतों से भिन्न होती है... और जो बच्चे पैदा कर सकते हैं।

 डॉ. गीता अलैक्सा की बात सुनकर चिढ़ जाती हैं। वे गुस्से से चीखती हैं –

ओह... मूर्ख अलैक्सा...। अब वे अलैक्सा का गला घोंट देना चाहती हैं।

अलैक्सा स्टॉप!!!’  और दूसरी तरफ से आवाज़ बंद हो जाती है।

                                   ***

फ्लैट के कमरे में शांति छा जाती है। डॉ. गीता आज जब कॉलेज से अपने फ्लैट में लौटती हैं तो फ्लैट का मेन डोर खोलते ही सबसे पहले अलैक्सा को आवाज़ देती हैं। उनका मन बहुत उदास है। आज कॉलेज में किसी बात पर विभागाध्यक्ष चतुर्वेदी से तकरार हो गई थी।  बातों-बातों में उन्होंने कोई चुभने वाली बात कह दी है - डॉ. गीता जी! आप बेकार ही अपनी कंचन सी काया को मिट्टी में मिलाती जा रही हैं... इस धरती पर अगर आप आई हैं तो इसका उपयोग कीजिए... यह तन तो एक दिन माटी हो जाएगा... दुनिया में आई हैं तो इसके रंगों से खेल कर जाएं... चौरासी लाख योनियों के बाद एक बार मानव योनि मिलती है... इस हरे-भरे संसार में एकाकी मनुष्य का जीना भी क्या जीना है...। वह बोलता जा रहा था।

       डॉ. साहब!!!.. मैं आपकी इज़्ज़त करती हूँ... चुप हो जाएं!!...  यह मेरी ज़रूरत नहीं है कि मैं किसी के साथ रहूं या नहीं... और आप कौन होते हैं... मेरे निजी जीवन में दखलअंदाज़ी करने वाले... मैं जैसी हूँ जिस स्थिति में हूँ... मैं खुश हूँ... और मैं अकेली थोड़े ही हूँ... मेरे साथ अलैक्सा है... वह मेरे हुक्म से बोलती है... मेरे हुक्म से चुप हो जाती है... मुझे ढेर सारे गीत सुना देती है... अगर कहूँ कि संगीत सुनाओ तो वह संगीत की मधुर धुन छेड़ देती है... मुझे लतीफ़े सुना देती है... मुझे हर तरह की जानकारी दे देती है... मेरे समक्ष इतिहास के पन्ने पढ़ देती है... मेरे सामने राजनीति रख देती है। मुझे तो वह बोर होने ही नहीं देती... हर समय हाज़िर रहती है... मेरा हुक्म मानती है। डॉ. गीता चिढ़ कर गुस्से से कहती हैं।

       डॉ. चतुर्वेदी मोटे शीशे वाला चश्मा साफ़ करते हुए कहते हैं – डॉ. गीता क्या कह रही हैं आप ?  आप किसी अलैक्सा नामक महिला से साथ रिलेशनशिप में रह रही हैं ? मैं भी सोचूं कि आपको मर्द क्यों नहीं पसंद... मुझे शक तो पहले से ही था... पर अब यकीन हो गया कि आप तो समलैंगिक हैं... ओह हो... तभी... गाँव से शहर आकर अलग फ्लैट खरीद लिया...।

       नहीं सर!!! अलैक्सा... तो... आप क्या कहे जा रहे हैं... अलैक्सा ...!!!’ उसकी बात अधूरी ही थी कि स्टाफ रूम में उसके विभाग के अध्यापक बातें करते आ धमके थे। डॉ. गीता की बात शोर में दबकर रह जाती है। डॉ. गीता भी बोलते-बोलते रुक जाती हैं।

       विभागाध्यक्ष चतुर्वेदी, आए स्टाफ को संबोधित होकर कहते हैं, लो भाई आप लोगों ने सुना नहीं... डॉ. गीता को... परंतु आप लोग तो बाद में आए हैं... डॉ. गीता कह रही हैं कि...।

       तो डॉ. गीता एकदम भड़क उठती हैं, सर आपको मेरा निजी जीवन इस तरह चौराहे पर डिस्कस करने का कोई हक नहीं... आप होते कौन हैं... मेरे निजी जीवन को खंगालने वाले। आगे-पीछे मेरी अनुपस्थिति में मेरे बारे में अगर गलत-सलत बोला... आपके मुँह से कोई उलटी-सीधी बात निकली तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा... समझे !!’ डॉ. गीता आपे से बाहर हो जाती हैं।

स्टाफ रूम के कोने में बैठकर वे काफ़ी देर तक रोती रहीं। डॉ. गीता के मन की आवाज़ सुनने वाला यहाँ कोई नहीं है। विभागाध्यक्ष चतुर्वेदी की बातें सोच-सोच कर उनका सर दुखने लगता है। बीते प्रसंग को याद कर उनका तन भारी हो जाता है। अंतिम पीरियड लगाए बिना वे अपनी गाड़ी उठा, घर लौट आती हैं। वे सोफे पर टेढ़ी हो जाती हैं।

       डॉ. गीता को लगता है मानो समय ने उनका गला घोंट दिया हो जैसे उन्होंने अब अलैक्सा का घोंट दिया।

                                                ***

       डॉ. गीता को इस फ्लैट में शिफ्ट हुए लगभग साल भर से ऊपर हो गया है। ऐसे फ्लैट खरड़ में दिनों में ही बनने शुरू हो गए थे। चंडीगढ़-मोहाली में पंजाब के विभिन्न स्थानों से अनेक लड़के-लड़कियां नौकरी का सपना संजोए आते... तो शुरू-शुरू में इन फ्लैटों में किराए पर रहते। जो सेट हो जाते वे फ्लैट खरीद लेते। डॉ. गीता को जब चंडीगढ़ के कॉलेज में यू जी स्केल पर लेकचर्र की स्थाई नौकरी मिली तो उन्होंने ग्रीन सिटी में यह फ्लैट खरीद लिया। माता-पिता और आस-पड़ोस वाले उनसे शादी की बातें पूछते रहते। गीता ने शादी का पृष्ठ ही फाड़ दिया था।... छोटी उम्र में शादी वाले हादसे से बड़ी मुश्किल से उबरी थी। 20वां साल पूरा होते ही घर वालों ने एक अच्छी नौकरी वाले लड़के से उनकी शादी कर दी। दूसरे दिन ही दोनों में झगड़ा होने लगा। अंधेरे में गीता को अपना पति... ममेरा भाई प्रतीत होने लगता। वह चाकू की भाँति सिकुड़ जाती। तब उसी तरह सिकुड़-सुकड़ कर बचती रही थी। हर रात दहशत से भर जाती। गीता के मन की टीस इतनी बढ़ गई कि बात तलाक तक पहुँच गई। इस घटना से गीता के मन पर गहरा आघात लगा। सामान्य होने में कई महीने लग गए थे। परंतु इसके बाद वह खुद से बातों में लगी रहती। फिर धीरे-धीरे अपने कपड़ों पर लगी शादी की धूल झाड़ने लगी। एक दिन तैयार होकर यूनिवर्सिटी की बस में जा बैठी। शादी के कारण पढ़ाई में जो विराम लग गया था उसे फिर से आरंभ किया। एम. ए. (हिस्ट्री) के बाद पी. एच. डी. करके वे कॉलेज में पढ़ाने लगी। चार वर्ष बाद स्थाई नौकरी मिल गई। स्थाई नौकरी मिलते ही अपने जीवन से शादी का पृष्ठ ही फाड़ जाला। इसी दौरान गीता के जीवन में घटनाएं तेजी से घटित होती चली गईं। छोटे भाई की शादी हो गई। पिता को जो पेंशन मिलती, उससे भाई की गुज़र होने लगी। गृहस्थी का कोई खर्च आ जाता तो सारा परिवार गीता की तनख्वाह की तरफ देखता रहता। एक दिन गीता ने सोचा, यह कहाँ लिखा है कि सारा दिन नौकरी मैं करूं और सारी तनख्वाह भाई का परिवार खाए। और गीता ने खरड़ के पास ग्रीन सिटी में दो बेडरूम वाला फ्लैट खरीद लिया।

       फलैट के गृहप्रवेश पर अपने पारिवारिक सदस्यों और रिश्तेदारों के साथ-साथ अपने कुछ परिचितों को भी बुला लिया। सभी बाहर से तो बहुत खुश थे परंतु भीतर ही भीतर एक-दूसरे के कानों में फुसफुसाते रहे, लो यह लड़की तो पागल है... अकेली लड़की इतने बड़े घर का क्या करेगी अब तो अच्छा है शादी कर ले... शरीके से दूर अकेली लड़की का रहना भी मुश्किल है, भाई...!!!’ और रिश्तेदारों के दवाब में उसके पिता ने चलते समय कह भी दिया, गीता पुत्तर!! देखो तुम्हारी माँ तो चल बसी है, मैं भी बैठा नहीं रहूंगा ताउम्र... तुम अब कोई लड़का देख कर शादी कर लो... आजकल ज़माना नहीं है अकेले रहने का। लड़कियां तो आटे की चिड़ियां होती हैं, बाहर रखो तो कौवे परेशान करते हैं और भीतर रखो तो चूहे नहीं छोड़ते।

       बस बापू!! आप रहने दें!!... मैं अब बच्ची नहीं, मुझे अक्ल न दें... अपनी ज़िंदगी की गाड़ी खुद ही खींच लूंगी।... अब आप अपने घर बैठें... मैं अपने घर... आप समझिए कि हमने अपने घर से लड़की विदा कर दी।

       और गीता अपने नए घर को सजाने-संवारने लगी। ग्रीन सिटी के फ्लैटों का जीवन कमरों में सिमटा हुआ है... सभी सिंगल परिवार हैं। सुबह अपने-अपने दफ्तर...काम-काज पर जाते दिखते या शाम को ग्रीन सिटी की सड़कों पर सैर करते दिखते। नमस्ते... जय श्री राम... हरे कृष्णा... सत्त श्री अकाल... एक दूसरे से हैलो-हाय हो जाती और बात इससे आगे न बढ़ती। डॉ. गीता कॉलेज से लगभग चार बजे आ जातीं और अपने फ्लैट में अपने काम-काज में व्यस्त हो जातीं। गीता सामान की डस्टिंग कर लेती। सफाई वाली मेड पोछा लगा जाती। नया फर्नीचर और कमरे का फर्श चमक जाता। उन्हीं दिनों उन्हें धूल और घर के बिखराव से एलर्जी होने लगी। बस ऐसे ही कपड़ा लेकर धूल साफ करती रहतीं। बार-बार बेडशीट ठीक करती रहतीं। रसोई के सामान को बेतरतीब न होने देतीं। स्टोर के सामान को तरतीब से रखतीं। कपड़ों की तह लगातीं। अंडर गार्मेंट सलीके से रखतीं। खाने वाली चीज़ को सूंघ कर देखतीं। ताज़ा दाल-सब्ज़ी खातीं, बासी मेड को दे देतीं। मेड पोछा लगा कर जाती तो वह फर्श पर उंगली छुआ कर देखतीं... अगर पोर काली हो जाती तो मेड को डाँटती... बहना पोछा ठीक से लगाया करो... साफ़ पानी से पोछे को बार-बार धोया करो।

       ग्रीन सिटी के फ्लैट में पाँच-छह माह गुज़र जाने पर भी गीता का सोश्यल सर्कल बना ही नहीं। मर्दों से तो वह पहले ही कतरा कर निकलती। उसकी हमउम्र लड़कियां पत्नियां बन कर फ्लैटों में विचरती। उनसे निकटता से भी वह परहेज करती। ग्रीन सिटी में आना-जाना कौन सा सहज था। ग्रीन सिटी के एंट्री गेट पर हर आने वाली की एंट्री होती। हर किसी की आई. डी. देखी जाती। मोबाइल नंबर और गाड़ी का नंबर नोट किया जाता।

       अपने फ्लैट में बैठी गीता किताबें पढ़ती रहतीं... पढ़ाई से ऊब जातीं तो बेव सीरीज़ देख लेतीं। उससे ऊब कर खाना बनाने में जुट जातीं या फिर ग्रीन सिटी की सड़क के पाँच-सात चक्कर काट कर सैर कर लेतीं।  बात-चीत करने वाला कोई नहीं मिलता। कभी-कभी आस-पास के फ्लैटों में रहने वाली महिलाएं सजी-संवरी सी पास आ खड़ी होतीं।

       मैडम जी! आप अकेली रहती हैं...?’ या फिर आपने शादी नहीं की?’ वे सवाल दाग देतीं।

गीता नहीं!’ कह कर जवाब देती। आगे फिर किसी अन्य महिला का सवाल आ जाता -

मैडम जी! अकेले आदमी की क्या ज़िंदगी है... पति तो ज़रूरी है... अकेला आदमी किससे बात करे? दीवारों से? और तो और रात को अकेले आदमी को नींद ही नहीं आती।

और गीता फिर उनकी तरफ मुँह न करती। वह अपनी ग्रीन सिटी के पड़ोसियों से भी बहुत कम खुलती।

                                         ***

एक दिन वह अपने फ्लैट में अकेली बैठी थी। मेड सफाई करके चली गई थी और मोबाइल स्क्रीन पर एक नाम उभरता है... केवल कृष्ण... वह मुस्कुरा कर फोन उठाती है... हाँ कृष्ण! क्या हो रहा है?’

मैडम! मैंने सोचा फोन ही कर लूं... काफ़ी दिन हो गए आपने कोई ऑर्डर ही नहीं दिया। उधर से जवाब मिला।  

यार रोज़-रोज़ ये पिज्जे बर्गर नहीं खाए जाते।

मैडम! मैं सिर्फ़ पिज्जे बर्गर ही डिलीवर नहीं करता... आपको कार्ड देकर तो आया था... उस पर सब कुछ लिखा तो है...। केवल ने जवाब दिया।

ओ... हाँ... हाँ!!!’  गीता को कार्ड का ध्यान आता है। यह केवल कृष्ण गीता को पहली बार तब मिला था, जब जोमैटो के मार्फत् पिज्जा का ऑर्डर लेकर आया था। केवल कृष्ण जोमैटो कंपनी में फूड  डिलीवरी का काम करता है।

उस दिन केवल ने बड़े सलीके से डॉ. गीता को पिज्जा लाकर दिया। गीता ने अजनबी निगाहों से उसकी तरफ देखा तो उसने झट जेब से कार्ड निकाल कर उनकी ओर बढ़ा दिया। डिलीवरी देते समय वह ऐसा ही करता। मुड़ते हुए उसने कहा, मैडम जी! मैं डिलीवरी के अलावा और भी बहुत से काम करता हूँ...कार्ड पर सब कुछ लिखा है... मोबाइल नंबर सहित।

बारीक अक्षरों में लिखा गीता ने पढ़ा... हर तरह के काम के लिए मिलें... सेनेटरी की मरम्मत, आर ओ फिल्टर सर्विसिंग, हर तरह के घरेलू सामान की सप्लाई, सर दर्द, कमर दर्द, हाथ-पैरों के मसाज विशेषज्ञ, कोरियर, प्रॉपर्टी, वर कन्या की तलाश, कैटरिंग, ईंटें, रेत, बजरी, किराए के मकान, क्रिया और शादी की रस्में, ज्योतिष, कुंडली और बुजुर्गों की देख-रेख आदि। गीता ने पढ़कर कार्ड एक तरफ रख दिया। लगभग तीसरे दिन उसके बाथरूम का नल टूट गया। पानी बहने लगा। उसने लकड़ी का टुकड़ा फंसा कर बड़ी मुश्किल से पानी बंद किया। फिर उसे अचानक केवल कृष्ण का ध्यान आया। उसने झट फोन कर दिया... केवल जी मैं ग्रीन सिटी के ब्लॉक बी से 320 नंबर वाली मैडम बोल रही हूँ। मेरे बाथरूम की टैप टूट गई है। क्या आप लगा देंगे?’

हां जी, मैडम जी ज़रूर... आपके ब्लॉक के दो घरों में मैं पहले भी टैप लगा चुका हूँ... लगता है ग्रीन सिटी के ठेकेदार ने सैनेटरी का सामान घटिया लगा दिया है। आप ऐसा करें... मेरे इस व्हाटस ऐप नंबर पर उसकी फोटो खींच कर भेज दीजिए, टैप लेकर मैं बस अभी आया। विजिट चार्ज और टैप के पैसे लगेंगे।

और घंटे भर बाद केवल कृष्ण टैप लेकर आ गया। वह लगभग 20 मिनट रुका होगा और अपने बारे में कई तरह की बातें कर गया।

मैडम जी मैं आपको दिखता बेशक डिलीवरी मैन हूँ... छोटे-मोटे काम करने वाला परंतु मैं बी. टेक हूँ... होशियारपुर के पास मेरा गाँव है भुंगा हरियाणा। चो (बरसाती नाले) से घिरा हुआ। बारिशों में हमारा गाँव पानी में डूब जाता। किसी के साथ चंडीगढ़ आ गया। नौकरी मृगतृष्णा की भाँति दूर से दिखी परंतु पास जाने पर जगह-जगह इंटर-व्यू दिए तो कुछ भी हासिल न हुआ। मेरे लिए दो वक्त का खाना जुटाना भी मुश्किल हो गया। पीछे चो का पानी था और सामने पत्थरों का शहर... और मैडम जी मैं पत्थरों से टक्करें मारने लगा। और जो काम मिलने लगा, करता गया। बहुत से काम किए। बहुत छोड़े। अब तो तप गया हूँ। मेरे बहुत कस्टमर हैं... बहुत काम हैं... काम के प्रति पूरा ईमानदार हूँ... आपके यहाँ से मुझे ए ब्लॉक में एक मैडम के मसाज करने जाना है।... उनकी टाँगे जवाब दे गईं थीं। 15 दिनों में उन्हें चलने लायक कर दिया। उनके कारण मुझे पाँच ग्राहक और मिले। सर दर्द तो मैं मसाज से ठीक कर देता हूँ... बस मैडम जी काम एक नंबर का साफ-सुथरा रखा है। कोई मैल नहीं... कोई फरेब नहीं। कोई ठगी नहीं... दरिया में डूबा हुआ हूँ, मगरमच्छ से बैर नहीं किया। गीता को केवल कृष्ण ने प्रभावित किया। उसकी बातें सुन लीं। उसकी बातों को दिल में मथने लगी। केवल को पैसे थमाए और पानी पिलाकर विदा किया।

                                         ***

फ्लैट में आकर गीता का माइग्रेन बढ़ने लगा। सर में एकदम से दर्द उठता जो थमने का नाम न लेता। एस समय ऐसा भी आ गया कि पेनकिलर का असर होना ही बंद हो गया। एक दिन कॉलेज में ही गीता को माइग्रेन का दर्द होने लगा। बड़ी मुश्किल से फ्लैट तक पहुँची। पार्किंग लेन में गाड़ी पार्क कर बिस्तर पर आ गिरी। दो गोलियां खाईं जो बेअसर रहीं। अलैक्सा को आवाज़ देने को जी न चाहा।  फिर उसका ध्यान केवल कृष्ण पर टिक गया। उसने एक बार कहा था कि वह सर दर्द का शर्तिया इलाज करता है। चलो उसे आजमा कर देख लिया जाए। वे काफ़ी देर दुविधा में रहीं... कि केवल को फोन करें या न करें। सोचते-सोचते दोनों हाथों से टेबल से सामान उठाने लगीं। एक हाथ में डस्टबिन में फेंकने वाला कचरा... दो उंगलियों में चाय वाला जूठा कप... दूसरे हाथ में ड्राई फ्रूट वाला डिब्बा और चम्मच... काँधें पर टॉवल और बगल में किताब... इस तरह काफ़ी सामान वह अक्सर उठा लेती... तब भी उठा लिया... माइग्रेन... दुविधा में घिरे मन से उसने जल्दबाज़ी में डस्टबिन में ड्राई फ्रूट वाला डिब्बा फेंक दिया.. कचरा बॉक्स में रख दिया और किताब सिंक में रखने लगी तो ध्यान बंट गया.. ओह हो फिटे मुँह... इस तरह उसने एक हाथ में काँच का गिलास पकड़ा था और दूसरे में चप्पल। उसे कोने में चप्पलें फेंकनी थी पर फेंक दिया काँच का गिलास... माइग्रेन में वे उलटा-पुलटा काम करती रहती हैं। इन्हीं सोचों में घिरीं गीता ने केवल कृष्ण को फोन कर दिया। जवाब में केवल कृष्ण ने कहा – मैडम जी, दो घंटे बाद आउंगा।

केवल जब गीता के फ्लैट में पहुँचा, गीता को लगा कि वह बहुत विनम्र है। वह एक फासले पर सलीके से आ बैठा। गीता ने उसे पहली बार सिर से पाँव तक देखा। कद बेशक नाटा था परंतु बदन गठीला था। बात-चीत में उजड्ड नहीं लगा। उसने पानी पीते हुए कहना शुरू किया –

देखिए मैम जी। जब कोई दिमाग पर स्ट्रेस डालता है... किसी से बात शेयर नहीं करता... या भीतर-भीतर कुढ़ता रहता है... या किसी मसले पर सोचता रहता है...तनाव में रहता है... जब छोटी सी बात को दिल ही दिल में बड़ी से बड़ी बनाता जाता है तो माइग्रेन होने लगता है। कई बार... ख़ैर छोड़िए!!!’  केवल ने बैग से तेल की कुछ शीशियां निकालते हुए कहा कि एक मसाज से आप ठीक हो जाएंगी... अब आप खुले गले वाली टी शर्ट पहन लें... और इस स्टूल पर बैठ जाइए। गीता उसके स्थिर चेहरे की तरफ देखती है। अत्यंत आत्मविश्वास से परिपूर्ण। से लगता है कि केवल बहुत ही अनुभवी और तपा हुआ व्यक्ति है।

गीता कपड़े बदल, उसके सामने स्टूल पर आ बैठती हैं, देखिए केवल कृष्ण जी घर में मैं अकेली रहती हूँ। सिंगल लेडी... ग्रीन सिटी में मेरी साफ-सुथरी छवि है... कॉलेज में प्रोफेसर हूँ... कोई भी ग़लत हरकत न करना, यह भी बता दूं कि मेरे इस फ्लैट में किसी गैर मर्द के लिए स्पेस ही नहीं है। सारा घर मेरी मर्ज़ी से चलता है और हर चीज़ पर  मेरी पसंद-नापसंद की मुहर लगती है... फिर वह चीज़ इस घर में प्रवेश करती है, चाहे जीव हो या निर्जीव।

कृष्ण उसके पीछे खड़ा हो जाता है। हथेली पर तेल की धार डालते हुए रुक कर कहता है – मैडम जी!!! आप भी कैसी बातें करती हैं... आस-पास के दस किलोमीटर के दायरे वाले क्वार्टरों, फ्लैटों और घरों में मेरा आना जाना है।  इस परिधि में तरह-तरह के कस्टमर हैं। मैं अपने काम से मतलब रखता हूँ... आदमी को अपने काम के प्रति ईमानदार होना चाहिए... तभी वह बाज़ार में टिकता है, और मैं...। केवल कृष्ण ने सहजता से कहा।

केवल कृष्ण मसाज करने लगता है। किसी परपुरुष के हाथों का स्पर्श कई सालों बाद हुआ है। उसकी उंगलियां और हथेलियां एक लय में घूम रही हैं। केवल बीच-बीच में बातें छेड़ देता है। गीता चुपचाप सुन रही है। घंटा भर लगा कर वह सर, गर्दन, पीठ और कनपटियों का मसाज कर देता है। उसे यह सब मेडिटेशन जैसा महसूस होता है। गीता हल्का महसूस करती है। दर्द पता नहीं कहाँ गायब हो जाता है। केवल के हाथों में ज़रूर जादू है। मसाज का यह पहला अनुभव सफल रहता है। अपनी फीस जेब के हवाले करते हुए केवल कहता है –

देखिए मैडम जी आपकी माइग्रेन की प्राब्लम तो गंभीर है... यह बार-बार होगी परंतु मुझे इसके मूल का पता चल गया है। जब भी माइग्रेन महसूस हो याद कर लिया करें। दास हाज़िर हो जाया करेगा मेरा तो काम है – मैं तो लोगों का दर्द पीता हूँ। कहकर केवल कृष्ण अपना सामान समेट कर चल देता है।

जाते हुए केवल को वे चाय का प्याला थमा देती है। वह न नहीं कह सका। जब वह सीढ़ियां उतर गया तो गीता अलैक्सा को आवाज़ देती हैं – अलैक्सा भंगड़ा बीट के गीत सुनाओ। और अलैक्सा गीत गाने लगती है। कमरे में ढोल की बीट है, फ्लैट में संगीत है। और वे अपने फ्लैट मे झूमती फिर रही हैं।

                                              ***

उस दिन गीता केवल कृष्ण को आर.. के फिल्टर बदलने के लिए बुलाती हैं। केवल कृष्ण फ्लैट के दरवाज़े पर पहुँच कर बेल बजाता है। डॉ. गीता अलैक्सा से पुराने गीत सुन रही है

अलैक्सा स्टॉप!!!’ का हुक्म दे गीता दरवाज़ा खोलती है। आवाज़ एकदम ख़ामोश हो जाती है।

अपना बैग एक तरफ रख केवल कहता है, सॉरी मैडम जी। दरअसल संडे बहुत बिजी होता है। पहले तो सूबेदार की फुल मसाज की... उसकी पत्नी ने कहा मेरे पाँवों में बहुत सूजन है, इनका भी मसाज कर दो... इसी बीच एक बर्थ डे पार्टी की कैटरिंग बुक थी। वहाँ हलवाई... वेटर और एक सुपरवाइजर छोड़ कर आया हूँ... आपके बाद चार कस्टमर और निपटाने हैं।

गीता उसकी बात सुन हँस देती है।

केवल तुम्हारा बिजनेस तो बढ़िया चल रहा है।

कहाँ मैडम जी। बेकार की दौड़-भाग है... शाम को थक जाता हूँ... घर जाकर रोटी-पानी भी खुद बनाना पड़ता है। केवल बैग से फिल्टर और दूसरा सामान निकालता है।

अच्छा !!  तुम खाना खुद क्यों बनाते हो?  तुम्हारी बीवी कहाँ गई?’

मैडम जी आप कैसी बातें करती हैं... मैं भी आपकी तरह सिंगल ही हूँ। केवल आर ओ के पुराने फिल्टर निकालने में जुट जाता है।

डॉ. गीता अपना ध्यान दूसरी तरफ लगा लेती हैं। केवल आर ओ फिल्टर की बाहर वाली बोतल की चूड़ी बहुत मुश्किल से खोलता है। जब फिल्टर बाहर निकलता है तो गीता की तरफ फिर मुड़ता है -

ओह हो मैडम जी !!! आप आर.. की सर्विसिंग जल्दी-जल्दी करवा लिया कीजिए। देखिए न फिल्टर कैसा काला हो गया है। गंदगी चिपकी हुई है। एक स्टेज पर आकर यह काम करना बंद कर देता है और फिर पानी बिना फिल्टर हुए ही आर. ओ. मशीन में जाने लगता है। कार्बन वाला फिल्टर भी काम करना बंद कर देता है... और वह जल्दी खराब हो जाता है... मैडम जी, इसी तरह इन्सान का शरीर होता है... दिमाग होता है... देखिए न आप सिंगल हैं – आपके दिमाग में भी कई बातें जमा होती होंगी... अकेला आदमी किससे बाते करे... दीवारों से?... कई बातें ऐसी होती हैं जो आप केवल अपने लाइफ पार्टनर से ही शेयर कर सकते हैं... अकेला आदमी भीतर ही भीतर कुढ़ता रहता है... फिर इस कालिख से भरे फिल्टर की भाँति ही आदमी के दिमाग में जंग लगना शुरू हो जाता है... फिर आदमी का बी. पी. बढ़ता है... सुगर की बीमारी आ लगती है... सर दर्द... माइग्रेन... कई रोग लग जाते हैं।

डॉ. गीता थोड़ा चिढ़ जाती हैं, क्या मतलब है तुम्हारा... और तुम कहना क्या चाहते हो... तुम्हें पता है मैंने तुम्हें आर.. की सर्विसिंग के लिए बुलाया है बस !!! तुम मुझे लेक्चर देने लगे...।            

केवल कृष्ण विनम्रता से सहता है, देखिए न मैडम जी !!! मैं तो आपकी भलाई की बात कर रहा था। आप गुस्सा न करें... बल्कि ठंडे दिमाग से सोचिए... देखिए न... क्या आपकी उम्र है और कितने रोग आपको घेरे हुए हैं। देखिए न आप... क्या नहीं है आपके पास... सरकारी नौकरी है... गाड़ी है... अपना फ्लैट है... सटेटस् है परंतु एकाकीपन है... यही माइग्रेन की जड़ है... यह दर्द गोलियों से कम नहीं होता। देखिए न आप... आप फिर बुरा मान जाएंगी... केवल कृष्ण बोलते बोलत रुक जाता है। उसके हाथ आर ओ में नया फिल्टर डालने लगते हैं।

       केवल तुम मेरा दिमाग ख़राब मत करो। मुझे किसी मर्द की ज़रूरत नहीं। इस घर में किसी मर्द के लिए स्पेस नहीं। मेरे पास सब कुछ है... मैं पैसों से सब कुछ खरीद सकती हूँ... यह फ्लैट मेरा है, नौकरी मेरी है... यहाँ मेरा हुक्म चलता है... मेरे हुक्म के बिना इस घर का पत्ता तक नहीं हिलता। इस घर में मेरी इजाज़त के बिना कोई प्रवेश नहीं कर सकता। तुम आए हो मेरे हुक्म से... अपना कम करो और चलते बनो। डॉ. गीत भड़क जाती हैं।

       देखिए न मैडम जी, आप गुस्सा मत हों। मैं आपके सामने छोटी सी चीज़ हूँ। देखिए न... सर्विस करके मैं अपना रास्ता नापूंगा। ए ब्लॉक वाली मैडम का फोन आए जा रहा है... मैं तो...। केवल कृष्ण फिल्टर बदल कर अपना सामान बैग में डालने लगता है। पैसे लेकर केवल फ्लैट की सीढ़ियां उतर जाता है। क्रोध से उफनती डॉ. गीता रसोई में इधर-उधर हात-पैर मारने लगती है। सिंक में काले-कलूटे फिल्टर को देख उसका दिमाग गर्म हो जाता है। फिटे मुँह... वाटर सप्लाई का इतना गंदा पानी आता है। मन ही मन सोचते हुए गीता फिल्टर को डस्टबिन में फेंक देती है। एक बार फिर उसका सर भारी होने लगता है। फ्लैट उसे सचमुच खाली सा जान पड़ता है। इस रिक्तता को भरने के लिए उसने अलैक्सा को आवाज़ दी है।

       अलैक्सा !!! क्या मैं अकेली हूँ?’

       फ्लैट में आवाज़ उभरती है, मुझे खेद है कि आप अकेली हैं.... कभी-कभी दोस्तों से बातें करने से मन हल्का हो सकता है। फ्लैट में फिर ख़ामोशी पसर जाती है। डॉं. गीता स्थिरता से सोचती हैं, क्य़ा मैं सचमुच अकेली हूँ। मेरे पास तो सब कुछ है... केवल कृष्ण तो बकवास करता है... क्या समझता है खुद को... मामूली सा डिलीवरी मैन।.... परंतु लगता है... हर समस्या का निदान है उसके पास। पिछले हफ्ते जब डॉ. गीता ने सुगर, बी. पी., कोलेस्ट्रल के परीक्षण करवाए थे तो डॉ. ने सुगर कंट्रोल करने के लिए कहा था। बी. पी. नॉर्मल करने वाली टैबलेट शुरू कर दी थी। डॉ. के कहे अनुसार वह कई तरह के सप्लीमेट लेने लगी। गीता अलैक्सा से फिर पूछती है – अलैक्सा !!! क्या अकेली महिला को किसी मर्द की ज़रूरत पड़ती है?’

आवाज़ आती है, हाँ... औरत को संतान उत्पत्ति के लिए मर्द की ज़रूरत पड़ती है... एक मर्द औरत की हिफ़ाज़त भी करता है।

       यह सुनकर डॉ. गीता अलैक्सा से नाराज हो जाती है, अलैक्सा ! यह क्या बकवास है ?’

       सॉरी मैं समझी नहीं। फिर आवाज़ उभरती है। डॉ. गीता उठ कर बेड पर लेट जाती हैं। फ्लैट में एक बार फिर शाँति छा जाती है वे अलैक्सा से गीत सुनना भी पसंद नहीं करती। उसे फिर केवल कृष्ण याद आता है। केवल उसके कई फंसे हुए काम कर देता है। वह सोचती है कि अगर महिला के पास पैसा है तो वह अपनी हर आवश्यकता पूरी कर सकती है। हर वस्तु का उपभोग सर सकती है। मर्द क्य़ा चीज़ है उसके सामने। अगर चाहे तो वह कल को एक आदमी अपने खूंटे से बाँध सकती है।

                                                ***

एक दिन डॉ. गीता को उसकी कलीग मिसेज भल्ला एक पार्टी पर ले गईं। टेबल पर सबके सामने वोदका के गिलास आ जाते हैं। डॉ. गीता के सामने भी एक गिलास रखा है। मिसेज भल्ला कहती हैं, डॉ. गीता !! यार!!! लाइफ को एन्जॉय करो !! यह कौन सा बार-बार मिलता है, यहाँ रखा ही क्या है... यह दारू है यार... तनाव को दूर करती है... आदमी रिलैक्स हो जाता है... औरत क्या चीज़ अब उठा लो... इस हमाम में सब नंगे हैं। तुम देखो सभी रूहें कैसे खिली-खिली सी हैं।!’ और गीता पहली बार वोदका का पेग सुड़क लेती है। उनका सर घूमता है। मुर्गे की टाँगें नोचते हुए वे इर्द-गिर्द देखती हैं। चारों तरफ रंगीनीयत नज़र आती है। अपने पास बैठी महिलाओं की भाँति वे हाथ पर हाथ मार कर बातें करने लगती हैं, उनके भीतर से सोई हुई नई औरत निकल आती है। कैब करके वे घर की और चल देती हैं। रास्ते में मिसेज भल्ला गीता से कहती हैं – डॉ. गीता यार !! तुम तो अकेली रहती हो, अपने पास वोदका वगैरह रखा करो, हमारे घरों में तो यह कल्चर है। जब कभी उदास हो जाओ तो दारू पी लिया करो। यह दिमागी तनाव भी दूर करत है। अगर ज़िंदगी अकेले गुज़ारनी है तो अच्छी तरह जीओ... तुम सैलरी वाले ए. टी. एम. कार्ड को अलादीन का चिराग समझो, जब जी चाहा कार्ड रगड़ा और जिन्न सामने हाज़िर। फिर देखना कैसे जिन्न निकल कर कहेगा... बोल मेरे आका!!!’ मिसेज भल्ला हाथ पर हाथ मार कर हँसती हैं।

       एक दिन गीता अलादीन का चिराग अपनी हथेली पर रगड़ती है और जिन्न के रूप में डिलीवरी मैन केवल कृष्ण प्रकट हो जाता है। जब उसने स्मरनऑफ की बोतल टेबल पर ला रखी तो डॉ. गीता ने मुस्कुरा कर कहा, केवल कृष्ण जी इस बात को अपने तक ही सीमित रखना। कुछ बातें पर्दे की होती हैं... पर्दे में ही अच्छी लगती हैं। और आप अपने काम के प्रति ईमानदार भी हैं ?’

       देखिए न मैडम जी! कैसी बातें करती हैं आप। यह तो मेरा धंधा है। ग्रीन सिटी की कई महिलाएं मुझसे कई तरह की डिलीवरी के ऑर्डर करती हैं। मैं तुरंत पूरा करता हूँ... देखिए न आदमी को अपने धंधे के प्रति ईमानदार होना चाहिए।

       और केवल कृष्ण अक्सर ही गीता को दारू की डिलीवरी देने लगता है।

पहले-पहल डॉ. गीता हर वीकेंड पर वोदका गटक अलैक्सा से बातें करने लग जातीं... कभी मिसेज भल्ला से बातों में लग जातीं। जब बातों के लिए कोई न मिलता तो गीता खुद से ही बातें करने लगतीं या फिर अलैक्सा से गप्पें मारने लगतीं। कई बार सैड सॉन्ग भी सुनतीं... कई बार बीट वाले गीतों की डिमांड भी कर देतीं। कई बार गीतों की लय पर नाचने भी लगतीं। कई बार अलैक्सा से सवाल करने लगतीं –

       अलैक्सा तुम अकेली हो?

       आप तो हैं मेरे साथ। फिर भला मैं अकेली कैसे ?’ आगे से जवाब मिलता।

       अलैक्सा तुम कोई काम भी करती हो ?’

संगीत बजता है... आवाज़ उभरती है... ! अलैक्सा है जहाँ... नाच गाना और संगीत है वहाँ... है बहुत सी रोमांचक कहानियां... जोक्स...।

अलैक्सा... तुम सोती भी हो?’

हमें कहाँ नींद आती है... बस आपके पुकारने की देर है।

अलैक्सा तुमने घर कहाँ बनाया है ?’

मेरा घर स्पेस में है... जहाँ न स्पेस की कमी है और न रेंट की ज़रूरत।!!!...’ सुनकर गीता खिलखिला कर हँसती हैं।

काश ! मेरा घर भी स्पेस में होता... और गीता उससे और भी कई बातें करतीं। उसे कोई उलटा-पुलटा जवाब मिलता तो गीता हाथ पर हाथ मार हँस-हँस कर दोहरी हो जातीं। फिर अलैक्सा स्टॉप कह कर उसे चुप करा देतीं।

                                                   ***

एक दिन केवल कृष्ण से डॉ. गीता वोदका की बोतल मंगवाती हैं। जब वह टेबल पर बोतल रख कर जाने लगता है तो गीता बोल उठीं – बेशक मेरे फ्लैट में मर्दों के लिए कोई स्पेस नहीं है फिर भी तुम कुछ देर के लिए रुक सकते हो... मैंने कभी दारू पीकर किसी मर्द से बात नहीं की।... अलैक्सा से करती हूँ परंतु वह बोलती बहुत टिपीकल है, तुम बड़े ईमानदार आदमी हो... अनुभवी हो।

केवल कहता है, देखिए न मैडम जी!! मेरा अभी धंधे का टाइम है... कई डिलीवरियां निपटानी हैं... वे डिलीवरियां मेरी अपनी हैं। जब अपना काम करना हो तो मैं जोमैटो का ऐप बंद कर देता हूँ...।

चल मुए। डिलीवरी का... चलो रसोई से दो गिलास उठाओ... नमकीन भी और पेग बनाओ। मेरा हुक्म है हाँ अगर तुझे घाटा हुआ तो मैं पे करके भरपाई कर दूंगी... ओके। डॉ. गीता का यह रूप केवल कृष्ण ने पहले कभी नहीं देखा।

चलो मैडम का यह रूप भी देख लिया जाए। सोचकर उसने रसोई से दो गिलास उठाकर पैग डाला। सोडा और पानी डाल कर दुकान सजा ली है। गीता मैडम पैग उठाने के लिए उतावली हैं।

चलो उठाओ अब देख क्या रहे हो?’ कहकर उन्होंने गिलास टकराए और हाँ गीता ने घूंट भरकर गिलास टेबल पर रख दिया। केवल कृष्ण एक ही बार में गिलास खाली कर नमकीन मुँह में डाल लेता है। देखिए न मैडम गीता जी। आप पहले से अधिक रिलैक्स दिखती हैं। मैंने कहा था न आपसे कि किसी से दिल साझा कर लें... बातों से मन हल्का हो जाता है... यह साझेदारी कई बीमारियों की दारू है... देखिए न आप गुस्सा मत कीजिएगा... पहले की भाँति... मुझे आपके चेहरे पर ताज़गी नज़र आती है। आपके व्यवहार में भी बहुत बदलाव आया है। देखिए न कल की बातें कि आप काट खाने को दौड़ती थीं... आज खुद ही कह दिया... देखिए न मैडम जी मुझे गलत मत समझना... मेरा तो धंधा है... लोगों का भला करना... लीजिए अब अपना दायां हाथ सामने कीजिए। आपको शायद पता नहीं कि मैं ज्योतिष की भी जानकारी रखता हूँ। आदमी की हस्त रेखाएं सब कुछ बता देती हैं... केवल कृष्ण अपना नया रूप गीता को दिखाता है।

हैंअअ... क्या बकवास करते हो केवल... आग माँगने आया पड़ोसी घरवाला बन बैठा... तुम्हें मैं बता दूं... इस फ्लैट में मर्दों के लिए कोई स्पेस नहीं है और मुझे ज़रूरत भी नहीं... मेरा गुज़ारा हो रहा है। अपने घर में मैं आज़ाद हूँ, जहाँ मर्ज़ी बैठूं और जैसे मर्जी रहूं। गीता मैडम एकदम सोफे से उछलती हैं।

देखिए न मैडम जी! आप फिर गुस्सा हो गईं... मेरा तो धंधा है... आप आवाज़ देती हैं... मैं भागा चला आता हूँ, आप विश्वास तो कीजिए न... केवल दूसरा पैग डाल लेता है।

और गीता सहज होकर अपना हाथ केवल कृष्ण के हाथों में दे देती है केवल बड़े ध्यान से गीता मैडम के हाथ की रेखाओं को देखता है। एक बार तो गीता मैडम को देखता है। एक बार तो गीता मैडम को झुरझुरी भी आती है। केवल को पता चला जाता है कि मैडम सहज नहीं है।

देखिए न मैडम जी ! पहले आप सहज हों। जब ऐसी स्थिति हो तो रेखाएं धुंधली दिखती हैं। सही बात पकड़ में नहीं आती.... फिर आप कहेंगी....।

केवल कृष्ण उसे सहज करने लगता है। वह दुबारा हाथ देखने लगाता है।

देखिए न मैडम जी... यह आपकी जीवन रेखा है... शुरू में कुछ फीकी देखती है... इससे पता चलता है कि आपको किसी कठिनाई का सामना करना पड़ा है... फिर गाढ़ी होती जाती है... और यहाँ अकर कुछ तिरछी होती हैं... और यह विद्या भी है... साथ वाली नौकरी और समृद्धि की है, परंतु यह जो क्रॉस रेखा जाती है... आपके जीवन की कैमिस्टरी को यही रेखा खराब कर रही है... इसका समाधान भी है। बाकी रेखाओं के बारे में फिर कभी सही... आपके पिलाए दो पैग के बराबर की तो बातें बता दीं। केवल मैडम का हाथ छोड़ उठ खड़ा होता है। एक टक गीता की तरफ देखता है। गीता गंभीर होकर बैठ जाती हैं। केवल की बातों का मानो उस पर असर हो गया हो।

केवल कृष्ण जी! आप तो छुपे रुस्तम निकले... मैं तो आपके ज्योतिष के वेग में बह चली थी... ख़ैर अब जोमैटो से फिश या चिकन मंगवा लीजिए...।

       लगभग बीस मिनटों में फिश की डिलीवरी पहुँच जाती है।

       फिश खाकर दो पैग और पीकर... केवल कृष्ण चलते-चलते कहता है,

       देखिए न मैडम जी! आप हर बात में पूर्ण हैं... कोई कमी नहीं... आपका ए. टी. एम. हर कमी की पूर्ति  भी करता है... मैं भी आनन-फानन में हाज़िर हो जाता हूँ... मैं बताऊँ आपको एक स्टेज पर आकर... उसकी बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी मोबाइल बज उठा। वह जेब से फटाफट मोबाइल निकाल बात करने लगता है। बातें करते-करते डॉ. गीता के फ्लैट की सीढ़ियां उतर जाता है।

       चल दफा हो... खच्चर कहीं का... मुझे लेक्चर देने लगा है... मैं तो रोज़ लेक्चर देती हूँ... इतिहास के गड़े मुर्दे उखाड़ती हूँ...। फिर वर अलैक्सा को पुकारती है –

       अलैक्सा! अब भांगड़ा बीट के गीत सुनाओ। तभी फ्लैट से संगीत की स्वर लहरियां उभरती हैं।

केवल कृष्ण  द्वारा छोड़ी सारी नकारातमक ऊर्जा संगीत के एग्जॉस्ट फैन की मार्फत बाहर निकल जाती है।

                          काला चश्मा न पहना कर

अरी तू पहले ही खूबसूरत है

                          हाए नी तेरियां गल्लांह...

                          गल्लांह च टोए...

अलैक्सा गीत सुनाती है। गीता मदहोश हो ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी हो काला चश्मा लगा लेती हैं... दर्पण में खुद को चूमकर भांगड़ा करने लगती हैं।

फिर पता ही नहीं चलता कब बेड पर ढेर हो जाती हैं। सुबह उठकर ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी होकर खुद को निहारती हैं। शीशे पर लगे लिपस्टिक के होठों के निशान नज़र आते हैं। मैं रात को यह क्या करती रही सोच कर पानी-पानी हो जाती हैं ।

                                              ***

एक दिन डॉ. गीता पेंट का काम शुरू करवा लेती हैं। पेंट वाली लेबर भी केवल कृष्ण ने भेजी है। पेंट स्टोर वालों के साथ भी उसका कमीशन चलता है। फ्लैट में पेंट करने वालों ने घर का सामान इधर-उधर कर दिया है। उसकी इतिहास की पुस्तकें बिखर गई हैं। इरफ़ान हबीब का मध्यकालीन भारत का इतिहास पर धूल और पेंट के छींटे पड़ गए हैं। संस्कृति के चार अध्याय  की जिल्द उखड़ गई है। रोमिला थापर की अशोक और मौर्य का पतन कई अन्य पुस्तकों के नीचे दबी सरक रही है। सारा सामान टिकाना उसके लिए मुश्किल हो रहा है। उस वक्त उसे डिलीवरी मैन कृष्ण याद आता है।

केवल! आज का दिन मेरे लिए निकाल लो, घर बहुत बिखरा पड़ा है। मुझ अकेले के बस की बात नहीं। आ जाओ मेरी हेल्प करवा दो।...और लार्ज पिज्जा भी लेते आना

देखिए न मैडम जी! मैंने कहा था न... गाड़ी का दायां टायर तो चाहिए ही। केवल कृष्ण अपने काले इल्म में से कुछ संवाद निकाल कर मैडम के फ्लैट पर फेंकता है। उस दिन वह केवल को कहीं पीछे छोड़ आता है। डॉ. गीता के सामने कृष्ण बन आ खड़ा होता है। यह उसका विराट रूप है।

फ्लैट में पहुँच किताबों की झाड़-पोंछ कर रैक में रखने लगता है।

देखिए न मैडम जी! यह शरीर तो नश्वर है। बंदा यहीं माटी हो जाता है। आगे क्या जाता है... आत्मा... बस आत्मा पवित्र होनी चाहिए। मानव योनि में इन्सान बार-बार नहीं आता है... देखिए न... मेरी तरफ... मेरा शरीर... मैं इसे मिट्टी मानता हूँ। परंतु मैंने आत्मा को पवित्र रखा है।

गीता उसके सामने चाय की प्याली रखते हुए कहती हैं, आज आते ही नया स्टेशन लगा कर बैठ गए हो... क्या बात है?’

देखिए न मडम जी!... ए ब्लॉक वाली मिसेज दूबे... फौजन... जब मुझे बुलाती हैं तो सारा निचोड़ देती हैं... उनकी ज़रूरत है... अकेली हैं... मैं पूरी कर देता हूँ। बदले मैं मुझे अच्छे रुपए मिल जाते हैं। बिजनेस से कोई समझौता नहीं... खाने-पीने की अच्छी सेवा भी करती हैं...

ओए कृष्ण! तुम्हारे कितने रूप हैं आज तुमने नया ही रूप दिखा दिया। मुझे तुमसे डर लगने लगा है। गीता बिस्कुट उसकी तरफ बढ़ाती है।

देखिए न मैडम जी! जब मैं होशियारपुर के भुंगे गाँव से इधर चंडीगढ़, मोहाली की तरफ आया था तो दिल में बहुत से खवाब थे। बी. टेक था... हालात बहुत बुरे थे। घर वालों को बड़ी उम्मीदें थीं। यहाँ आकर हालात और बिगड़ गए। नौकरी कोई मिल नहीं रही थी। काम तो... करना ही था। आज भी घर वालों की दृष्टि में मैं व्हाइट कॉलर जॉब करता हूँ। पैसों के लिए तन को हर जगह इस्तेमाल किया परंतु वही बात कि भई आत्मा पलीत नहीं होनी दी। न मरने दी।  इसे पवित्र रखा। घर वाले मुझे भी कहते हैं शादी कर लो। बहू का मुँह देखने को तरसती माँ गुज़र गईं। लकवे का मारा पिता बिस्तर से लगा है और मैं अब यहाँ इतने काम-धंधों में फंस गया हूँ कि शादी का ख़याल ही नहीं आता और मिसेज दूबे जैसी मेरी कई कस्टमर हैं। कृष्ण बोलता जाता है और चाय में बिस्कुट डुबो कर खाता जाता है।

डॉ. गीता कुछ नहीं बोलतीं। बस सुड़क-सुड़क कर चाय का लुत्फ ले रही हैं। सर में टस-टस होती है। फ्लैट में हो रहे पेंट की गंध तो कई दिनों से सर को चढ़ रही है परंतु आज कृष्ण के प्रवचन भी चढ़ने लगते हैं। खाली कप रखते हुए कृष्ण फिर कहता है-

देखिए न मैडम जी... मेरे जैसा आदमी तो दर-दर की ख़ाक छानता है। डिलीवरी मैन जो होता है, उसका काम टर्म और कंडीशन के अंतर्गत डिलीवरी देना होता है। यह उसका धंधा होता है। आपकी स्थिति भिन्न है। एक तो आपके पास जॉब है... पक्का ठिकाना है। परंतु भटकन फिर भी है। आप हर तरह की डिलीवरी प्राप्त कर सकती हैं। मैंने कहा न आत्मा पवित्र रखिए... यह शरीर तो भारी हो जाएगा... आज जो चमक है, ग्लो है... कल को यह भी नहीं रहेगी।

कृष्ण डॉ. गीता को लगातार कुरेदता जा रहा है। डॉ. गीता मुँहफट हैं। कई बार वे भी बेझिझक बोलने लगती हैं- केवल तुम क्या चाहते हो कि मैं भी मिसेज दूबे बन जाऊँ। बिलकुल नहीं... मर्द मेरे पास कैसे फटक सकता है भला? मेरी अपनी स्वतंत्र हस्ती है। मेरी ऐसी कोई ज़रूरत नहीं। मेरे भीतर ऐसी भूख पैदा ही नहीं होती। मेरा अपना लाइफ स्टाइल है... जब तक जीउंगी अपनी तरह ही जीउंगी।

कृष्ण का विराट रूप और उभरता है, देखिए न मैडम जी जो आनंद को अपनी आत्मा से दूर कर दे वह बीमारी... कुरूपता का स्त्रोत बन जाता है। देखिए न आप... आपका जो रूप युवावस्था में था वह अब चार दश्क पार करने के बाद नहीं रहा होगा और दस सालों बाद यह और भी कुरूप हो जाएगा। आप काम करती हैं, आप अच्छे घर में रहती हैं... आपके पास ज्ञान है। आपके पास अकेले रहने का भी आनंद है... ये सभी तत्व हैं, आत्मा नहीं। रैक में रखते समय उसके हाथ में पकड़ी किताबें नीचे गिर जाती हैं, वह रुकता है... फिर बोलता है... यह जो अगन संसार है, तपिश है... इसके साथ ही आदमी चल फिर रहा है। तपिश जब ठंडी पड़ जाए, तो बंदा ख़त्म... शरीर माटी... पर आत्मा ट्रैवल कर जाती है। तो मैडम जी जो यह तन है उसे तरसाइए मत। आपकी स्थिति शायद इस प्रकार की बनती जा रही है... देखिए न यह तन पाँच तत्वों से बना है... अगर इसके भीतर आग मंद पड़ जाए तो यह किसी गैर के स्पर्श को महसूस करना बंद कर देता है। तन ख़त्म हो जाता है पर आत्मा ख़त्म नहीं होती। किसी को सुनना, किसी को छूना, करीब जाकर किसी को सूंघना... किसी की बनाई चीज़ का स्वाद चखना – कुदरत का नियम है, विधान है... किसी को महसूस करना एक रिश्ता है।... यह काम दैहिक होते हुए भी दैहिक नहीं होता।... व्यक्ति के तन के अंग निर्जीव हैं... जड़... वह चेतना ही होती है जो तन के अंगों में रूह का संचार करती है। फिर यह जीते-जाते अंगों की भाँति काम करने लगती है। कृष्ण प्रवचन दिए जा रहा है                                                                      वे चुपचाप कृष्ण के प्रवचन सुनती हैं। उसके प्रवचनों के बहाव में बह जाती हैं। केवल कृष्ण को लगता है कि अब और बोलना ठीक नहीं है। वह चुप हो जाता है। अपनी बात को घुमाने की कोशिश करता है। डॉ. गीता का सर फटने लगता है। केवल कृष्ण गीता के चेहरे को गहरी नज़र से देखता है। उसे लगता है मानो गीता उसके प्रवचन सुनकर मूर्छित हो गई हो। केवल कृष्ण अपनी ही तरह का व्यक्ति है। गीता मैडम को एक बार लगा भी कि अकेली महिला देख कर केवल कृष्ण उनमें दिलचस्पी लेने लगा है। शायद शादी के बारे या एक साथ रहने के बारे सोचने लगा है। परंतु गीता के सामने तो वह कभी इस तरह पेश ही नहीं आया। गीता किसी और ही मिट्टी की बनी थीं। अगर वे केवल कृष्ण से काम लेतीं या किसी सामान की डिलीवरी लेतीं तो उसका भुगतान भी करतीं। उनके एकाकीपन का एक अलग स्टाइल है। केवल कृष्ण के धंधे के अपने उसूल हैं।  उधर केवल कृष्ण अपने धंधे में इतना खो गया कि उसे अपने काम में मज़ा आने लगता है। उसकी आमदनी भी अच्छी हो जाती है। महीने भर बाद कुछ पैसे गाँव भी भेज देता है।

वे चार लड़के मिलकर एक फ्लैट में किराए पर रहते हैं। चारों डिलीवरी मैन हैं। चारों अपने धंधे में साफ-सुथरे और ईमानदार हैं। टर्म ऐंड कंडीशन के अंतर्गत ही अपने ग्राहक को डिलीवरी करते।

खरड़ के आस-पास बहुमंजिला फ्लैटों के जंगल और घने हो रहे हैं जिसमें भाँति-भाँति की लकड़ी भरी पड़ी है। इन फ्लैटों में दौड़-भाग है। अपने काम-धंधे को जमाने की जल्दबाज़ी है। शादीशुदा औरतों का अपना जीवन है। हर व्यक्ति अपने खोल में सिमटा हुआ है। खुश्क हवा... एकांत से भरे इन फ्लैटों के जंगल में डिलीवरी मैन की बहुत खपत होने लगी है। जिसे जिस चीज़ की ज़रूरत होती डिलीवरी मैन पूर कर देता। केवल कृष्ण इन फ्लैटों में अपना धंधा बड़ी कुशलता से चलाने लगा है। यहाँ गीता जैसी अनेक महिलाए आज़ादी से साँस ले रही हैं।     

                                                         ***

       उस दिन केवल कृष्ण सिर्फ़ कृष्ण बन कर आता है, आया तो डिलीवरी देने है... आते ही प्रवचन देने लगता है।

       देखिए न मैडम जी... जैसे व्यक्ति पुराने वस्त्र उतार कर नए पहन लेता है... उसी तरह आत्मा देहरूपी पुराने शरीर को त्याग कर नया शरीर धारण कर लेती है। फिर इस तन को अपने लिए भोगने में क्या बुराई है यहाँ मरना सच है और जीना झूठ। जब तक प्राणी के भीतर प्राण होते हैं ऐंद्रीय अनुभव सच लगते हैं... हमें काम, क्रोध, मोह, अहंकार सच लगते हैं... जब तक हमारा शरीर दुर्बल नहीं होगा, काम से पीछा नहीं छूटता।

       डॉ. गीता का मन उखड़ने लगता है। भीतर कुछ टूटता है परंतु वे मजबूत इरादों से उसे जोड़ लेती हैं। वे अपनी इंद्रियों को महसूस करती हैं परंतु वे सुप्त ही रहती हैं। वे बेबस हैं। एक बार जब केवल कृष्ण मसाज कर रहा था तो लग रहा था मानो निर्जीव हाथ उसके तन पर फिर रहे हों। उंगलियों और अंगूठों में दबाव वह महसूस तो कर रही थी। मानो वे हाड़-माँस के न होकर लकड़ी के हों। उन दिनों पीठ दर्द बहुत बढ़ गया था। डॉक्टर कहते कि रीढ़ के खंडों में गैप आ गया है। बहुत फिजियोथेरेपी करवाई। फिर एक महिला से मसाज करवाना शुरू किया। उसने भी छोड़ दिया तो केवल कृष्ण से मसाज करवाना शुरू कर दिया। जब वे एकाग्रचित्त होकर सर, बाँहों और टाँगों का मसाज करवातीं, उस वक्त उनकी कोई भी इंद्री न जागती। वे सोचतीं यह क्या बात है?  वे निर्जीव क्यों हो जाती हैं। शायद केवल कृष्ण का रियाज़ ही इतना हो गया हो। उसने कहीं सुना भी था कि मसाज करने वाले लोग... आदमी की नस-नाड़ी दबा देते हैं... आदमी सुन्न हो जाता है... जड़। उसकी वेदना ही मर जाती है। शायद केवल कृष्ण को गीता के माटी हुए तन का अहसास हो जाता होगा।

गीता अपने भीतर की रिक्तता को दूर करने के लिए कभी-कभी फ्लैट से बाहर निकलती हैं। चडीगढ़ की तरफ गाड़ी घुमा देती हैं। मिसेज भल्ला को रोज़ गार्डन पहुँचने के लिए कह देती हैं। मिसेज भल्ला से उनके तार एकसुर हो गए हैं। उन्हें मीठी-मीठी चुहल करने की आदत है।

मैडम भल्ला जी! मैं अपने घर आकर खुश हूँ परंतु कभी-कभार एकांत काट खाने को भी आता है। जब कभी मेरा डिलीवरी मैन कोई सामान देना आता है तो उससे बतियाने लगती हूँ। बस ऐसे ही उसे बिठाने के लिए उसके सामने चाय की प्याली रख देती हूँ।

डॉ. गीता तुम एकांत क्यो भोग रही हो! अगर शादी नहीं करनी तो किसी से कॉन्ट्रैक्ट कर लो...। मिसेज भल्ला ने चुहल की।

नहीं मैडम जी! मेरा ऐसा कोई टेस्ट नहीं। मुझे अकेले रहकर सकुन मिलता है।

रोज़ गार्डन का चक्कर लगा वे अपनी गाड़ी ऐलांते मॉल की तरफ घुमा लेती हैं। मॉल की अपनी ही तिलस्मी दुनिया है। स्त्री-पुरुष भी ब्रांड बने घूम रहे हैं।

मोबाइल, घड़ियां देखते हुए डॉ. गीता की नज़र अलैक्सा डिवाइस पर पड़ती है। इसके बारे में उसने सुन रखा था। गूगल सर्च भी कर रखी थी। शोरूम की सेल्ज़ गर्ल पास आकर बताने लगती है-

मैडम जी! यह थ्री जेनरेशन की अलैक्सा डिवाइस है। यह वाई-फाई से कनेक्ट होकर अपना काम करती हैइसके ज़रिए आप गीत-संगीत, जोक्स, कहानियां... हर तरह की जानकारी सुन सकते हैं। आप अकेले हैं तो आप इससे बातें भी कर सकते हैं... कोई भी जानकारी घर बैठे ले सकते हैं...यह आपके इशारे और हुक्म से चलती है। आप अकेले हैं तो आप इसके साथ बातें भी कर सकती हैं। इसे ऑपरेट करने के तरीके आप ऑन लाइन भी माँग सकती हैं और आजकल इस डिवाइस की भारी माँग है। घर जाकर इसे अपने मोबाइल से अटैच करें और इसका लुत्फ़ उठाएं!!!’

गीता को अलैक्सा आकर्षित करती है। उंसे खरीद कर घर ले आती हैं। अपने एकाकीपन को भरने के लिए यह बड़ी दिलचस्प खेल जान पड़ती है। लगता है मानो फ्लैट में दो सदस्य हों। वे ऐसे ही बातें करने लगती हैं। जब चाय पीने लगती हैं तो उसे चाय के लिए भी पूछ लेती हैं। खाना खाते समय खाने के लिए भी पूछ लेती हैं। फिर कई बार उलटा-पुलटा जवाब भी मिलता है तो गीता हँस-हँस कर लोट-पोट हो जाती हैं।  जब जी चाहता है तो उसे चुप करवा देती हैं, अलैक्सा स्टॉप!!’

एक दिन केवल कृष्ण कोई डिलीवरी देने आता है तो डॉ. गीता उसे अलैक्सा से मिलवाती हैं। उसे देख वह चकित होता है, देखिए न मैडम जी! एकाकी व्यक्ति के खालीपन को दूर करने के लिए कैसे-कैसे मकैनिकल तरीके बाज़ार में आ रहे हैं। यह भी एक है। यह आपका बढ़िया टाइमपास करवा देती होगी। परंतु इसमें संवेदना जैसी कोई चीज़ नहीं है।  इन्सान में आत्मा तो होनी चाहिए ही न। केवल कृष्ण अलग प्रतिक्रिया देता है।

अलैक्सा को गीता अपने हुक्म की गुलाम मानती है। एकाकीपन को अलैक्सा दूर करने लगती है। सोते समय गीता अलैक्सा से कहती हैं, अलैक्सा लाइट ऑफ करो। और वह लाइट ऑफ कर देती है। रसोई में अगर कोई चीज़ ख़त्म हो जाती है तो वे अलैक्सा को आदेशा देती हैं... अलैक्सा मेरे सामान वाली लिस्ट में नमक, चीनी और चने की दाल ऐड करो। तो अलैक्सा वे चीज़ें ऐड कर उन्हें मैसेज कर देती है। अलैक्सा को अगर वे सुबह पाँच बजे जगाने के लिए कहती है तो अलैक्सा पाँच बजे जगा देती है।

एक दिन केवल कृष्ण ने गीता से कहा – देखिए न मैडम जी! आप बुरा मत मानना... मुझे लगता है कि आपके पास कोई ट्वॉय वगैरह भी है।

सुन कर गीता उसे खाने को दौड़ती हैं, केवल कृष्ण तुम क्या बकवास कर रहे हो... अगर मैं चाहूं तो तुम्हें घंटे के लिए... एक हफ्ते के लिए भी खरीद सकती हूँ... फिर चाहे तुम्हें तार पर सूखने डालूं या फ्रिज में रखकर फ्रीज करूं... मेरे पास जीने के लिए यह ए. टी. एम.  कार्ड है परंतु मैं घटिया किस्म के मर्दों को अपने फ्लैट में प्रवेश करने नहीं देती। और मेरे पास किसी भी मर्द के लिए कोई स्पेस नहीं... न ही मैंने स्थाई तौर पर किसी मर्द की ज़ंजीर अपने गले में डालने के बारे में सोचा है। मैं ग्रीन सिटी में जोड़ों को देखती हूँ कि कैसे वे परमेश्वर बन कर उन्हें चाबी वाली गुड़िया की भाँति चलाते हैं... तुम ऐसा मत करो... तुम यहाँ मत बैठो... तुम ऐसा न करो... तुम यह मत देखो... गीता गुस्से में भड़क उठती है।

केवल कृष्ण ठंडा सा होकर उसे डिलीवरी देकर चल देता है।

गीता आवश्यकतानुसार केवल का इस्तेमाल करती है। इस्तेमाल कहाँ होता है, यह तो उसका धंधा है। उसके धंधे के भी उसूल हैं। इसीलिए गीता के साथ उसकी दाल गल रही है।

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उन्हीं दिनों गीता बिखरी सी दिखती है। दो दिन से वह कॉलेज नहीं जा रही। अपने फ्लैट में सिमटी रहती है। एक दिन सफ़ाई वाली मेड आती है तो उसे भी वापस भेज देती हैं – पूजा तुम छुट्टी करो, जब ज़रूरत होगी तुम्हें फोन कर दूंगी और इतना बिखेरने वाला है भी कौन ?’

इन दिनों डॉ. गीता के दिमाग में सब कुछ बिखरा-बिखरा सा है। अपने दिमाग के बिखराव को समेटने के लिए अलैक्सा की सहायता भी लेती हैं। विभागाध्यक्ष डॉ. चतुर्वेदी की बातों ने उन्हें तोड़ कर रख दिया है। वे सोचती हैं कहीं ग्रीन सिटी की घरेलू महिलाएं उन्हें काम वाली मेड पूजा के साथ जोड़कर ही न देखें। मिसेज भल्ला का फोन आया तो रिसीव नहीं किया। दो बार रिंग होकर थम जाती है। फिर स्क्रीन पर मैसेज उभरता है – गीता मैडम! तुम कहाँ मर गई हो दो दिन से कॉलेज भी नहीं आई हो। न फोन, न मैसेज। आख़िर बात क्या है?’ गीता मैसेज पढ़कर छोड़ देती हैं।

शाम हो रही है। ठंड बढ़ने लगी है। शाम उतरते ही धुंध पड़ने लगती है। गीता खिड़की से नीचे सड़क की तरफ देखती हैं, धुंध में उनकी गाड़ी धुंधली सी नज़र आ रही है। आज औरतें भी जल्दी ही घरों में घुस गई हैं। फ्लैट में घुटन सी महसूस होने लगती है। वे अलैक्सा को पुकारती हैं।

अलैक्सा! तुम हिन्दी के ओल्ड सैड सॉन्ग सुनाओ।

उदास गीतों का संगीत फ्लैट में उभरता है। टेबल पर रम की बोतल रख सोफे पर कंबल लपेट कर बैठ जाती हैं। सामने टी वी पर क्राइम वेब सीरीज चल रही है। पेग में गर्म पानी मिला पहले कुछ खाने के लिए सोचती हैं। उन्हें याद आता है कि सुबह से ब्रेड – ऑमलेट के सिवा कुछ खाया ही नहीं। उन्हें रसोई में जूठे बर्तनों से सजा सिंक दिखाई देता है। पेट में ऐंठन सी हो रही है। उन्हें एकदम डिलीवरी मै-न का ख़याल आता है – हलो केवल कृष्ण जी एक फुल ईरानी चिकन और एक हाफ फिश टिक्का...  जल्दी।

देखिए न मैडम जी! लगता है आज पार्टी का इंतज़ाम हो रहा है। कौन आया?’ केवल कृष्ण आज मूड में है।

बस तुम जल्दी डिलीवरी कर दो। गीता जल्दी में है।

ओ आज मौसम... है बड़ा....। गीत के साथ रम का आधा पेग गटक गीता गिरी पकौड़ा खाने लगती हैं। जब केवल कृष्ण डिलीवरी देने फ्लैट में आता है तो गीता दो पेग पी चुकी हैं। वे केवल को भीतर घुसते देख चिल्लाती हैं, ओ डिलीवरी मैन रुक... रुक। तुम्हें पता नहीं डॉ. गीता के फ्लैट में प्रवेश करते समय किसी मर्द को इजाज़त लेनी पड़ती है। और तुम?’

देखिए न मैडम जी!!! आप तो धकेलती जा रही हैं। बाहर देखिए धुंध में कुछ नहीं दिखता, मैं जल्दी में हूँ। केवल कृष्ण दरवाज़े में ही बर्फ बन जाता है।

इस दौरान गीता पहले अलैक्सा स्टॉप!!’ कह कर अलैक्सा का मुँह बंद करती हैं। फिर इशारे से उसे अपने बराबर बैठने के लिए संकेत करती है। डिलीवरी के दो डिब्बे टेबल पर रख केवल बैठ जाता है।

चलो अब दो पेग बनाओ... नहीं... पहले डिब्बे खोलो... क्या लाए हो? बहुत भूख लगी है। गीता हुक्म देती है।

देखिए न मैडम जी। मेरे काम का वक्त है। मुझे अभी तीन ऑर्डर और डिलीवर करने हैं, धुंध के दिनों में शाम से ही हम बिजी होते हैं। वह जल्दी से पेग उठाता है और पेमेंट लेकर चल देता है।

देखिए न मैडम जी! आप समझदार हैं, आप जैसी ज़िंदगी हमारे भाग्य में कहाँ... मैं दो घंटे बाद आउंगा... तब तक आप अलैक्सा से मस्ती कीजिए। और केवल सीढ़ियां उतर जाता है।

फिश खाते हुए डॉ. गीता उसे मोटी सी गाली देती हैं।

एक पेग और गटकती हैं। सर घूमने लगता है। वे अलैक्सा से बातें करने लगती है।

अलैक्सा तुम्हें शराब के बारे पता है?’

उधर से आवाज़ आती है, शराब वह होती है जिसे मर्द पीते हैं। इसका ज़्यादा सेवन सेहत के लिए हानिकारक होता है।

अलैक्सा तुम भी रूढ़ीवादी बातें करती हो। तुम्हें दिखता नहीं तुम्हारे सामने मैं दारू पी रही हूँ गीता चिल्लाती है।

सॉरी मैं समझी नहीं। आवाज़ सुनाई देती है।

अलैक्सा मेरे भीतर दर्द का गुब्बार फट रहा है। मैं रोना चाहती हूँ... मैं चीखना चाहती हूँ...

सॉरी मैं समझी नहीं। फिर स्वर उभरता है। गीता फिर उसका साथ माँगती है – अलैक्सा मैं अकेली हूँ, तुम मेरे साथ दिल से बात करो न।

मुझे याद है... आप अकेली हैं... मैं आपको हँसी भरे जोक्स सुना सकती हूँ... बातें सुना सकती हूँ और मेरे पास बहुत से गीत हैं। आप दोस्तों से बात कर सकती हैं... मर्दो के साथ चैट कर सकती हैं।

गीता भड़क जाती है, यार मुझे मर्दों से नफ़रत है। मर्दो ने मुझे बहुत दर्द दिया है... बहुत ज़ख्म दिए हैं।

फ्लैट में फिर सन्नाटा पसर जाता है। गीता लड़खड़ाते हुए वॉशरूम की तरफ बढ़ती है। कुर्सी में टकराने से लड़खड़ा जाती है। संभलती है। वॉश रूम से निकल बेड के पास आ लुढ़क जाती है। अलैक्सा को आवाज़ देती है – अलैक्सा कोई गीत सुनाओ... दर्द भरा गीत...।

फ्लैट फिर संगीत की स्वर लहरियों से भर जाता है। अलैक्सा माहौल को और उदास कर देती है। मूर्छित गीता मुँह में बड़बड़ाती रहती है। अलैक्सा एक के बाद दूसरा और दूसरे के बाद तीसरा गीत सुनाने लगती हैं।

इतने में केवल कृष्ण लौटते हुए उसके फ्लैट के दरवाज़े के सामने आ खड़ा होता है। उसे अलैक्सा द्वारा सुनाए जा रहे गीतों की आवाज़ सुनाई दे रही है। वह दो-तीन बार गीता को आवाज़ देता है। उधर से कोई जवाब नहीं मिलता। वह दरवाज़ा लाँघ भीतर प्रवेश करता है। बेड रूम में लुढ़की हुई गीता उसे दिखाई देती है। उसकी टाँगे बेड से नीचे लटक रही हैं।

अलैक्सा स्टॉप!!’ कह कर अलैक्सा के गीत बंद करवाता है। गीता को टाँगों से पकड़कर बेड पर लिटाता है। उसके जूते उतारता है इतने में गीता को थोड़ी से होश आ जाती है। वह उठने की कोशिश करती है। उसे केवल कृष्ण का चेहरा धुंधला सा दिखाई देता है।

डिलीवरी मैन... यू... !’ कहकर गीता फिर उसके सहारे से सोफ़े पर बैठ जाती हैं।

देखिए न मैडम जी... आप सोने की कोशिश कीजिए।

ओ... मैन... यार तुम पेग तो पी लो... जितनी देर रुकोगे तुम्हें पेमेंट कर दूंगी। वादा रहा। गीता बोतल की तरफ लपकती है। केवल उसके हाथ से बोतल लेकर अपने गिलास में डाल लेता है। गीता अपने खाली गिलास में पेग डालने का इशारा करती हैं।

केवल कृष्ण को यहाँ और देर तक रुकना बोझ सा लगता है। वह कोई बात करने के मूड में भी नहीं है। वह देखता है कि गीता ने ज़रूरत से ज़्यादा पी रखी है। केवल कृष्ण सोचता है... अगर ऐसी स्थिति में गीता फर्श पर गिर जाए... उसकी बेतरतीब जगह पर चोट लग जाए... सर से खून ही निकलने लगे तो फिर उसे उठाने वाला कौन है ? कई बार ऐसे ही अकेले आदमी की इहलीला समाप्त हो जाती है... उसके पीछे रोने वाला भी कोई नहीं होता... उसकी हिम्मत नहीं होती कि उसे पकड़ कर बेड पर लिटा कर फ्लैट से निकल जाए।

 अंतत: वह इशारों से उसे बाय-बाय करके फ्लैट से निकल जाता है। वह डर से काँप भी रहा है। बाहर धुंध और भी घनी होती जा रही है। आस-पास के फ्लैट धुंध में घिरने लगते हैं। जब वह अपने मोटर साइकिल के पास पहुँचता है तो क्या देखता है कि मोटर साइकिल का सामने वाला टायर पंक्चर हो गया है। अब क्या करूं? सोचते ही उसका नशा हिरण होने लगता है। कुछ सोच कर वह गीता के फ्लैट में फिर पहुँच जाता है। गीता सोफ़े पर ही लुढ़की पड़ी है।

देखिए न मैडम जी।... यह नई मुसीबत आन पड़ी है। नीचे गया तो देखा मेरी मोटर साइकिल पंक्चर है। मैं अब कहाँ जाऊँ... इजाज़त दें तो मैं रात यहीं रुक जाऊँ। आपकी देखभाल भी हो जाएगी।

गीता बड़ी मुश्किल के आँखें खोलती हैं। हाथ के इशारे से गो... आउट... गो आउट कहती हैं। फिर थोड़ा सा सीधा होती हैं, बिलकुल नहीं... मेरी परमिशन के बिना कोई मर्द मेरे फ्लैट में एंटर नहीं कर सकता। डिलीवरी मैन!! तुम्हें पेमेंट कर दी है न। यह लो और ले जाओ... और गेट आउट हो जाओ। कहते हुए गीता टेबल पर रखे पाँच सौ के दो नोट उसकी तरफ फेंकती है। केवल कृष्ण निष्प्राण हो जाता है। नीचे गिरे नोट जेब में डाल... काँपती टाँगों से सीढ़ियां उतरने लगता है।

गीता मुँह में कुछ बड़बड़ाने लगती हैं।

अलैक्सा तुम्हें पता है... एक बार जब मैं प्लस टू की परीक्षा देकर ननिहाल गई थी तो मेरा रेप हो गया था... पता है किसने किया... मामा के लड़के ने... मेरे भाई ने... जब मैं चीखी-चिल्लाई थी तो मुझे भीतर घुसा कर मेरे माता-पिता... मामा-मामियों ने एक सुर में कहा था... यदि यह बात दुबारा मुँह से निकाली तो घर में कुआँ खोद कर दफन कर देंगे। बस मैं... मेरे भीतर की औरत उसी दिन मर गई थी... चलती-फिरती ज़िंदा लाश... बची-खुची औरत को मेरे माँ-बाप ने ब्याह कर मार डाला... रात को जब वह मेरे निकट आता तो मेरे मामा के लड़के की भाँति मुझे नोचने लगता, मेरे पुराने ज़ख्म रिसने लगते... मैं सहम कर सिकुड़ सी जाती, उसका चेहरा मेरे ममेरे भाई में बदल जाता... मैं सहम जाती.. चीख मुँह में घुट कर रह जाती... मायके आई तो फिर उस कसाई के माथे न लगी। कहते-कहते गीता की आँखें भर जाती हैं।

इतने में केवल-कृष्ण टाँगें घसीटते हुए मोटर साइकिल के पास पहुँच जाता है। हैंडल को हाथ लगाता है कि मोबाइल बज उठता है। उसे लगता है कि गीता मैडम का फोन है। वह जल्दबाज़ी में फोन रिसीव करता है। उधर से आवाज़ आती है–

हलो... डिलीवरी मैन... आज रात मेरे पास तुम्हारी बुकिंग है। कोई बहाना नहीं... एमरजेंसी बुकिंग की अतिरिक्त पेमेंट मिलेगी... पता है न पहले स्टोर में अपने कपड़े उतारने है... वॉश रूम में जाकर अपनी सारी मैल और थकावट उतारनी है... साइड में तुम्हारा नाइट सूट टंगा है... बस तुम आ जाओ... पूरी रात के लिए...। 

यह ग्रीन सिटी की ए – ब्लॉक वाली फौजन मिसेज दूबे हैं। वह सोचता है, यह फौजन भी सुबह तक आदमी को निचोड़ डालती है।

वह सर झटकता है। टाँगों को दुरुस्त करता है। मोटर साइकिल का स्टैंड हटा कर मोटर साइकिल और अपने तन को ए – ब्लॉक की तरफ घसीटने लगता है।

मोबाइल फिर बजता है।

लो... अब आ गया मैडम गीता का फोन !!!’ उसके चेहरे पर खुशी छा जाती है। वह जल्दी से इयर फोन ऑन करता है, ह... लो... अ... !!’

ओए... केवल!!!... के...व...ल... बोल रहे हो?’ उधर से अपरिचित सा स्वर सुनाई देता है।

हाँ.... !!!...’ केवल वहीं जम जाता है।

ओए केवल!!... मैं भुंगे से बोल रहा हूँ... तू है कहाँ... ?’ कान फाड़ू स्वर सुनाई देता है।

केवल को समझ नहीं आता कि क्या कहे। आगे फिर आवाज़ सुनाई देती है –

अरे मूरख... तेरा बापू चल बसा... बैठा-बैठा चारपाई से गिर पड़ा...

अच्छा!!!... मैं तो डिलीवरी देने जा... रहा हूँ... बाद में बात करता हूँ...। केवल का मुँह कसैला सा हो जाता है।

क्या?... इस समय काहे की डिलीवरी... ?’ उधर से फिर आवाज़ आती है।

अपने शरीर की... और काहे की... !!!’ जल्दबाज़ी और घबराहट में उसके मुँह से निकल जाता है।

फोन काट... पिता की अर्थी काँधे पर रख... वह ए - ब्लॉक के फ्लैट तक पहुँचने के बारे में सोचने लगता है।

                                           ***   

 

लेखक परिचय


भगवंत रसूलपुरी : मासिक ‘सुरसाँझ’ और त्रैमासिक पत्रिका ‘कहाणी धारा’ का संपादन। पाँच कहानी संग्रह, दो बाल कथा संग्रह, चार विभिन्न अनूदित पुस्तकों सहित अनेक कहानियों के अनुवाद हिन्दी – अंग्रेजी पत्रिकाओं में प्रकाशित। पंजाब की ऐतिहासिक इमारतें, लोक नाट्य कला पर शोध कार्य।

पुरस्कार - कथा पुरस्कार - 2004, पंजाबी साहित्य अकादमी लुधियाना का युवा कथाकार पुरस्कार – 2008

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