दोस्तो, पूरे दो साल बाद आपसे इस मंच पर मुख़ातिब हूँ। मार्च 2015 में पिछली पोस्ट लगाई थी। प्रस्तुत है श्री राजिंदर जाफ़री रचित पंजाबी कविता का हिन्दी अनुवाद।
राजिंदर जाफ़री
पंजाबी से अनुवाद - नीलम शर्मा ‘अंशु’
मैं
युद्ध नहीं चाहता
म रा खून ठंडा नही पड़ा
न ही मैं निर्बल हूँ
ज़ुल्म के खिलाफ़
खून खौलता भी है
और बोलता भी है
फिर भी
मैं युद्ध नहीं चाहता।
जब युद्ध होता है
बच्चों के हाथों में
थामे हुए
लकड़ी के ट्रैक्टर
टैंकर जैसे प्रतीत होते
हैं
युद्ध ज़हर भर देता है
हवाओं में
जब भी बारूद फटता है
दिल धड़क उठते हैं माँओं के
जिनकी आँखों के तारे
लड़ रहे
बारूद की गर्दिश में
जिन्होंने पिता के सर पर
बढ़ते जाते ब्याज को देख
स्वीकार कर लिया था
कोहनियों के बल चलना।
युद्ध की हसरत वे रखते
हैं
जिनके हथियार बिकते हैं
जो आध्यत्मिक नफ़रत फैला
कर
कुर्सी के पायों को
चाहते हैं।
युद्ध
मुनाफ़ा है
धंधा है कुछ देशों के
लिए
परंतु अवाम के लिए
सियासी अभिशाप है
मैं कभी भी
ऐसा युद्ध नहीं चाहता।
मैं य़ुद्ध चाहता हूँ
मेरे और उनके युद्ध के
बीच
ज़मीं और आसमां तक का
फ़ासला है
मैं युद्ध चाहता हूँ
उनके विरुद्ध
जिन्होंने कभी नहीं
झांका
तरसू योगी की झुग्गी की
तरफ
जिनका विश्व व्यापार
खा गया
मेरे गाँव के
देसू बनिये की दुकान
जिनकी हरित क्रांति
कोघे के लिए फंदा बन गई
जो विचारों की आज़ादी को
गुलामी की परत चढ़ाते हैं
मैं युद्ध चाहता हूँ
उनके खिलाफ़।
मेरा युद्ध
अंधेरों को दीये बाँटता
है
उनका युद्ध्
घरों के चिराग़ छीनता है
फ़र्क़ है
युद्ध और युद्ध में
फ़र्क है।
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