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शनिवार, अक्तूबर 12, 2024

कहानी श्रृंखला-54 मुट्ठी भर रोशनी (पंजाबी) तृप्ता के सिंह, अनुवाद - नीलम शर्मा ‘अंशु’

 

पंजाबी कहानी                   मुट्ठी भर रोशनी

                                                      तृप्ता के सिंह


अनुवाद -
नीलम शर्मा अंशु


जाओ बेटा! अब सोओ जाकर, सुबह जल्दी उठना भी है। सुबह बातें करेंगे, चल बेटा। गुरमीत कौर ने जिंदर को आश्वस्त करते हुए कहा। जिंदर की पत्नी जस्सी खुसर-फुसर तो कई दिनों से कर रही थी। आने-बहाने से मानो गुरमीत कौर के कानों में बातें डाल रही थी, परंतु गुरमीत कौर ने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया था। जिंदर के जाने के बाद वह पलंग से टेक लगा टाँगे पसार कर बैठ गई। नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थीं। एक नज़र उसने कमरे में चारों तरफ घुमाई। काफ़ी बड़ा कमरा, दीवार में लकड़ी की कप-बोर्ड, ड्रेसिंग टेबल और बहुत सा सजावट का सामान। सामने बड़े-बड़े शीशों वाली खिड़की के ऊपर सुनहरे फ्रेम में जड़े पति सरदार सतनाम सिंह की तस्वीर पर माला को देख गुरमीत कौर की आह निकल गई।

खिड़की से नज़र आ रहे चाँद की चाँदनी ने कमरे में रखी हर वस्तु को रौशन कर रखा था सिवाय गुरमीत के दिल को। इसी चाँदनी में गुरमीत और सतनाम ने तरह-तरह की बातें करते हुए कई रातें गुज़ारीं थीं।

इतनी जल्दी साथ छोड़ जाओगे सरदारा कभी सोचा भी नहीं था। गुरमीत की रुलाई फूट पड़ी और उसकी समृतियों के पिटारे का ढक्कन अनायास ही खुल गया था।

तुम्हें कहा था न कि एक दिन तुम्हें महलों जैसा घर बना कर दूंगा और उसमें तुम्हें रानी बना कर रखूंगा। देखा लो फिर, मैंने अपना वादा निभा दिया। सतनाम ने एक दिन गुरमीत को आलिंगन में लेते हुए कहा था।

याद है तुम्हें अपनी वह पहली रात?’ सतनाम ने शरारत से कहा। गुरमीत कौर को अपना शादी वाला दिन याद आ गया। दसवीं पास करके अठारहवें में कदम रखते ही घरवालों ने सतनाम से उसका रिशता पक्का कर दिया।

मास्टर है लड़का। रोज़-रोज़ नहीं मिलते ऐसे रिश्ते। भापा जी ने हुक्म सुना दिया था।

जी एक बार जाकर लड़के का घर-बार तो देख आईए। माँ ने दबी ज़बान से एक-दो बार पिता से कहा था।

मास्टर है, घर न भी हुआ तो खुद ही बन जाएगा। भापा जी के साथ बहस करने की माँ में हिम्मत नहीं थी।

सुर्ख़ जोड़े में सजी दिल में अनेक हसरते संजोए रोते हुए मैं डोली वाली कार में जा बैठी। घंटे भर के सफ़र में ही मैं मायके वालों के लिए पराई हो ससुराल पहुँच गई थी। पहले दिन शाम के वक्त रस्मों के मुताबिक मेरा और मेरे साथ आई भाभी के बिस्तर ज़मीन पर बिछा दिए गए थे। छोटा सा घर था और वह भी रिश्तेदारों से भरा। छोटे देवर को मेरी गोद में बिठा कर रस्म की गई परंतु वह शगुन न लेकर शरमाते हुए बाहर भाग गया। उमस भरी उस रात मैं सो न सकी। दूसरे दिन काफ़ी मेहमान चले गए। मेरी भाभी और भाई भी चले गए।

रात को छोटी ननदें मुझे एक कमरे में छोड़ आईं। कमरा...... ?

ताज़ा-ताज़ा गोबर और मिट्टी से लीपे गए उस कमरे से अभी भी मवेशियों की महक आए जा रही थी। मूंज की रस्सियों से बनी दो चारपाइयां बिछाने के बाद कमरे में तनिक भी जगह ही नहीं बची थी।

छत की तरफ देखा तो मेरा रोने को जी चाहे। फूस से बने छप्पर को कमरे का नाम दे दिया गया था। कमरे में आकर सरदार साहब ने मेरा घूँघट उठाया तो मेरी आँखों की उदासी को पढ़ लिया।

गुरमीत तुम्हें दिल के महल में रानी बना कर रखूंगा। बस थोड़ा सब्र रखना। इस कमरे की बात भूल जाओ, अपने प्यार से तुम्हें खुश कर दूंगा। फिर सचमुच उस रात और उसके बाद हर दिन उन्होंने अपनी सभी बातों का मान रखा।

दो कमरों और एक छप्पर को मैंने घर बना दिया था। बेबे आशीषें देते न थकतीं। गृहस्थी बड़ी थी और सतनाम की तनख्वाह से पूरा न पड़ता। कोई न कोई खर्च लगा ही रहता। गर्मियों की छुट्टी में गाँव के सिलाई केंद्र में सीखी सिलाई अब काम आ रही थी। सतनाम ने सिलाई मशीन ला दी थी। पूरे गाँव की लड़कियां और बहुएं मुझसे कपड़े सिलवाने आतीं। घर के छोटे-मोटे खर्च मैंने उठा लिए थे।

जल्दी ही सतनाम ने पुराना घर छोड़कर नया घर बना लिया। तीन कमरे, सामने बरामदा, एक कोने में रसोई और गेट के पास बाथरूम भी।

दिन पंख लगा कर उड़ रहे थे। नन्हें जिंदर और सिमरन के आने से खुशियां तो आईं ही परंतु ज़िम्मेदारियों की गठरी भारी हो गई थी।

दोनों बहनों की अच्छे घरों में शादियां करके छोटे भाई मदन को भी पढ़ाया परंतु उसने दसवीं के बाद पढ़ने से मना कर दिया। उसे ए. सी. रिपेयर का कोर्स करवा दिया। उसका काम अच्छा चलने लगा था। उसकी शादी करके सतनाम अपनी कुछ ज़िम्मेदारियों से मुक्त हो गया था।

देवरानी दरशी अच्छे घर से थी। इस घर के बड़े परिवार में उसका दम घुटता था। बच्चों को परे हटाती रहती। बरामदे में रखे सोफे पर उन्हें बैठने न देती।

जी, हम बड़ा कमरा दरशी को दे देते हैं। उसके दहेज का सारा सामान उसी कमरे में आ जाएगा।

देख लो, जैसे तुम उचित समझो।

मुझे अच्छा लगने का क्या है? वह नई-नवेली है, कई चाव होते हैं।

अपनी गुज़र हो जाएगी उस नुक्कड़ वाले कमरे में ?’

हमारा क्या है ? इतने बरस हमने मवेशियों वाली कोठरी में गुज़ार लिए थे। घर में शांति-सौहार्द्र होना चाहिए। मैं कल ही बंदोबस्त करती हूँ।

साल भर में ही बेबे और बापू आगे-पीछे विदा हो गए। कपड़े सिलती, सुइयों से पोरों को छलनी करते गुरमीत सतनाम के कांधे से कांधा मिला कर चलते हुए थोड़ी कमज़ोर हो गई थी। बच्चे बड़े हो गए थे। जिंदर और सिमरन कॉलेज जाने लगे थे और देवर के बच्चे भी स्कूल की बड़ी कक्षाओं में पहुँच गए थे। पढ़ाई के लिए बच्चों को बड़े कमरे की ज़रूरत थी। सतनाम और गुरमीत ने घर के एक कोने में छोटा-मोटा सामान रखने के लिए टीन से बने स्टोर को ठीक-ठाक करवा कर कमरा सा बना लिया था।

बच्चों की पढ़ाई के खर्चे और गृहस्थी की दूसरी ज़िम्मेदारियां और बड़े होने का फर्ज़ निभाते तनख्वाह कहाँ से आती और किधर चली जाती पता ही न चलता।

अच्छे वक्तों मे सतनाम ने शहर के बाहरी हिस्से में बनी एक कॉलोनी में दस मरले का प्लॉट ले ऱखा था। तब वहाँ बसाहट नहीं थी। उचित दाम में ही मिल गया था। सतनाम ने गाँव और परिवार छोड़ शहर आने के बारे कभी नहीं सोचा था परंतु अब हालात बदल गए थे। घर में चल रही खुसर-फुसर ने उसे सोचने पर विवश कर दिया था। एक अच्छी बात हो गई। सतनाम को डिपार्टमेंट की तरफ के कुछ बकाया भुगतान मिला। उसने उस राशि से मकान की नींव बनवाने तक का काम कर लिया और मकान बनाने के लिए डिपार्टमेंट में लोन के लिए आवेदन कर दिया।

देखो जी हम मदन के साथ कोई बंटवारा नहीं करेंगे, हमारा आना-जाना बना रहेगा। अपना हिस्सा हम उसके लिए छोड़ देंगे।

देख लो, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी।

सतनाम ने शहर में बंगला बनवाना शुरू कर दिया। सभी कमरे बड़े-बड़े बनवाए। लकड़ी का काम बड़े शौक से करवाया था। फर्श पर मार्बल लगवाया। अपने और गुरमीत के लिए एक मास्टर बेड रूम बनवाया। कमरे में रखी जाने वाली एक-एक चीज़ गुरमीत को साथ ले जाकर उसकी पसंद से खरीदवाई थी। सचमुच सतनाम ने गुरमीत को महल की रानी ही बना दिया था। उसने पहली रात को किया अपना वादा पूरा कर दिया था।

इसी दौरान सतनाम की पदोन्नति भी हो गई। रिश्तेदारी में ही सिमरन के लिए कैनेडा का रिश्ता मिल गया। लगभग चार माह में ही वह कैनेडा चली गई। जिंदर को एक प्राइवेट कंपनी में जॉब मिल गई थी।

सतनाम ने अपनी सेविंग्स से घर के ऊपर एक पोर्शन और बना लिया। गुरमीत दोनों वक्त रब का शुक्रिया अदा करती और परिवार की ख़ैरियत माँगती।

जिंदर की भी अच्छे घर शादी हो गई। परियों सी जस्सी को अपनी बहू बना कर गुरमीत फूली न समाती। जींस-टॉप पहन कर जस्सी जब जिंदर के साथ बाहर निकलती तो गुरमीत निहाल हो जाती। जस्सी को वह कोई काम भी न करने देती।

गुरमीत ने ऊपर वाले पोर्शन का 15,000 किराया लेने के लिए जस्सी को ही कह दिया था। वह खर्च करे या बचाए उसकी मर्ज़ी।

खुशियों को ग्रहण लगते कौन सा देर लगती है। महल जैसे घर में राज करती गुरमीत की खुशियों में उस वक्त अजनबी बाज ने झपट्टा आन मारा जब सतनाम अचानक हार्ट अटैक के कारण अस्पताल पहुँचने से पहले ही गुरमीत का संग छोड़ गया।

सतनाम की सुनहरी फ्रेम में जड़ी तस्वीर देख गुरमीत खुद में लौटी। रात काफ़ी हो चुकी थी परंतु उसकी आँखों में नींद का नाम नहीं था। दिल तार-तार हो रहा था। वह इस वक्त सतनाम को याद कर बहुत एकाकी महसूस कर रही थी।

हफ्ते भर पहले जिंदर के कमरे के सामने से गुज़रते हुए जो बात-चीत गुरमीत ने सुनी थी, उसे याद हो आई।

पता है आज मेरी कितनी इनस्ल्ट हुई किटी पार्टी में। मेरी सहेलियों ने मेरा बड़ा मज़ाक बनाया। जस्सी रुआंसे से स्वर में जिंदर को बता रही थी।

क्यों ऐसी क्या बात हो गई?’

बात क्या होगी? बोलीं अपना घर दिखाओ। मैंने सारा घर दिखाया, अपना कमरा, फिर मम्मी का कमरा, ऊपर का पोर्शन।

फिर?’

फिर क्या? सभी बोलीं, मास्टर बेडरूम सास को दे खुद इस कोठरी में रहती हो।

यह कमरा तुम्हें कोठरी लगता है? फ़र्क होगा।

परंतु मम्मी के कमरे में सारा काम बहुत सुंदर है।

इसी कमरे में बुरा है?’ जिंदर ने ज़रा गुस्से से पूछा।

मुझे कुछ नहीं पता.... इतना बड़ा कमरा संभाले बैठी हैं आपकी माता अकेले, वो क्या वहाँ भाँगड़ा करेंगी?’ जस्सी ने कहा।

तुम क्या चाहती हो?’

मैं बस यही चाहती हूँ कि मम्मी अब उस कमरे से शिफ्ट हो जाएं, पहले तो डैडी थे। अब क्या करेंगी वे इतने बड़े कमरे का?’

हुँह...... जिंदर कुछ देर सोचता रहा।

फिर मम्मी किस कमरे में जाएंगी?’

यार आप भी हद करते हैं..... अपने गेस्ट रूम के साथ जो स्टोर रूम है, कितना तो बड़ा है वह। सिंगल बेड लगा कर भी कितनी जगह बचती है। अकेले आदमी के लिए तो बेस्ट है वह। और, माता अपनी पेटियों की चौकीदारी भी करती रहेंगी। जस्सी ने मज़ाक करते हुए कहा।

और स्टोर में जो खिड़की है, वहाँ कूलर रखवा देंगे। एसी से वैसे ही बूढ़ों के हाड़-गोड़ दुखने लगते हैं।

यार मम्मी की अलमारी जो कपड़ों से भरी पड़ी है और बाकी सामान?’

लो वो कपड़े भला अब वे पहनेंगी, इतने हैवी-हैवी। मैं सारे इकट्ठे करके तह लगा कर पेटी में रखवा दूंगी।

गुरमीत का अब वहाँ और खड़े रहना मुश्किल हो गया। धड़ाम से बेड पर आ गिरी। उसे अपनी सुहागरात वाला फूस का छप्पर याद हो आया। फिर टीनों वाला कमरा याद आया। सिलाई करते हुए पोरों में चुभी सुइयों की पीड़ा उस तब कभी नहीं हुई थी, पर आज वे सुइयां उसके दिल में चुभ रही थीं। उसका गला रूंध गया।

और अब जस्सी का पढ़ाया जिंदर माँ को ज्ञान बघार कर चला गया।

तुम्हें रानी बना कर रखूंगा, सतनाम के कहे शब्द बार-बार उसके हृदय में टीस रहे थे। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे।

बड़े बुजुर्ग ठीक ही कहते हैं, पति के दम पर पत्नी राज करती है, बंदा चला गया, चीज़ें पैसे सब कुछ यहीं हैं परंतु बीवी का राजपाट छिन जाता है। सोचते हुए गुरमीत की गुरुद्वारे के पाठी के बोलने के बाद जाकर कहीं आँख लगी थी।

सुबह देर से उठी थी। अपने नित्य कार्यों से फारिग हो नहा-धो कर गुरमीत कुछ देर रात की बातें मन ही मन सोचती रही। फिर एक दम दृढ़ इरादे से उठी और अपनी अलमारी के सामने जा खड़ी हुई।  उसने बारीक सुनहरी कढ़ाई वाला हल्के प्याजी रंग का सूट निकाला, पहन कर ठीक से सर पर दुप्ट्टा लिया और खुद को शीशे में निहारा। कानों में टॉप्स और हाथों में चूड़ियां डालीं।

सचमुच रानी लग रही हो। गुरमीत को लगा मानो पीछे खड़ा सतनाम उसे देख कर मुस्कुराया हो।

जस्सी बेटा! मैं तुम लोगों के चरणजीत अंकल के घर अखंड पाठ साहब पर जा रही हूँ।

ठीक है मम्मी जी। जस्सी की तालू से जा लगी जबां का अंदाज़ा गुरमीत को हो गया था।

और हाँ! जिंदर बेटा, रात को जो तुम बात कर रहे थे न.....

हाँ जी मम्मी जी। जिंदर मम्मी के निकट आया तो जस्सी के भी कान खड़े हो गए।

मैंने बहुत सोचा, और फैसला कर लिया कि हम ऊपर का पोर्शन खाली करवा लेते हैं। ऊपर वाला बेडरूम काफ़ी बड़ा है। तुम और जस्सी उसे अपना मास्टर बेडरूम बना लो। किराये का क्या है.... बच्चों की खुशी बड़ी बात है। कह कर गुरमीत गेट की तरफ बढ़ गई।

अरे हाँ जिंदर, मेरे कमरे का एसी ठीक करवा दो। रात को गर्मी लग रही थी। कहकर गुरमीत घर की सीमा से बाहर हो गई।

जिंदर जाती हुई माँ की पीठ देखता रहा और जस्सी के माथे पर अनेक बल पड़ गए।


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                              लेखक परिचय - तृप्ता के सिंह

 

पी. एच. डी। पंजाबी की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित कहानियां प्रकाशित। एक अलग तरह की कहानियां की बुनावट के लिए जानी जाती हैं। पेशे से होशियारपुर (पंजाब) में उप संचार मीडिया अधिकारी।

इक दिन पंजाबी कहानी संग्रह। प्रिंसीपल सुजान सिंह पुरस्कार(2015), दलबीर चेतन पुरस्कार(2020), श्री रामसरूप अणखी पुरस्कार(2021) पुरस्कारों से सम्मानित।

संपर्क – 9478390062


                                        साभार - विश्वगाथा जुलाई-सितंबर 2024

 

   

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