पंजाबी कहानी ममा ! मुझे भी डेट पर जाना है!
0 अजमेर सिद्धु अनुवाद – नीलम शर्मा ‘अंशु’
मैं ओ पी डी से बाहर निकलने ही जा रही थी कि दूर से आती एम्बुलेंस की आवाज़ से मेरे कदम वहीं रुक गए। ओह नो.... कह कर मैंने घड़ी देखी। बच्चे आधे घंटे तक स्कूल से लौट आएंगे। आज उनके पास घर की चाबी भी नहीं है। सुबह उन्हें चाबी देना मैं ही भूल गई थी। पहले तो जिस दिन मेरी कॉल होती थी, जगदीप उन्हें पिक अप कर लेते थे। दस दिनों से पति देव घर पर नहीं हैं। वे रेजिडेंसी की तैयारी के लिए डॉ. बाफन के पास हफ्ते भर के लिए गए हैं। सरदार साहब ने तीन दिनों का प्रोग्राम और बढ़ा लिया कि कैलेगरी में प्रगतिशील संघ का सेमिनार है। नई कार्यकारिणी का चयन होना है और अगले दिन नारी अधिकारों की रक्षा विषय पर एक वक्तव्य भी देना है।
एंबुलेंस की आवाज़ और तेज़ हो गई है। मरीज़ की हालत पता नहीं कितनी क्रिटिकल होगी। पता नहीं कितना समय लग जाए उस के पीछे। उतनी देर बच्चे घर के बाहर ही खड़े रहेंगे। यह तो मैं ही डरती जा रही हूँ। माँ हूँ न। मन ही मन जगदीप को कॉल करती हूँ, उनका जवाब सुनाई देता प्रतीत होता है –
“डॉ. साहिबा, यह कैनेडा है, इंडिया नहीं है।” अभी तो पिछले दिनों इंडिया गई थी मैं, भतीजे की लोहड़ी पर। यह देख कर चकित रह गई कि लोगों ने फूल से बच्चे टेलिविज़न के सामने बिठा रखे हैं। बच्चों के हाथों में बड़े-बड़े मोबाइल थमा रखे हैं। फिल्मों, गीतों और वीडियों गेमों में मशगूल कर रखा है। चचेरे भाई के शब्द अभी भी कानों में गूँज रहे हैं - “यहाँ छह महीने तक की बच्ची सुरक्षित नहीं है। लड़कों को पता नहीं कौन नशों की लत लगा दे।” लगता है इस डर से वे बच्चों को घरों से बाहर नहीं निकालते। वहाँ के अंग्रेजी दैनिक की रिपोर्ट मेरी आँखों के समक्ष घूम रही है – “घर, स्कूल और धार्मिक संस्थाओं में अपनों से ही बच्चियां ज़्यादा असुरक्षित हैं।”
ख़ैर !
यहाँ अभी बच्चे बचे हुए हैं। फिर भी सोच रही हूँ, मुझ़े क्या ज़रूरत थी कॉल लेने
की ? मेरी बेटी स्वरीत तब 16 साल की थी
परंतु दिखने में भरपूर युवा। गोरों के बच्चों की भाँति अच्छे डील - डौल वाली। जब
कढ़ाईदार सूट पहनती है, खूब जंचती है। अब स्कूल की ग्रैजुएशन कर रही है। उससे छोटा
हर्ष तो मरियल सा है। इसे भी बेटी की भाँति संभाल-संभाल कर रखती हूँ। अब बच्चे बस
से उतर कर बाहर खड़े रहेंगे। अस्पताल से समय पर ही निकल जाती, अचानक एमरजेंसी आ
गई। बच्चों को पिक-अप करने के लिए मैं अपनी कलीग डॉ. किरण को कई बार फोन मिला चुकी
हूँ परंतु नो रिप्लाई हो रहा है।
मेरे सामने बार-बार स्वरीत की ऊँची-लंबी डील-डौल घूम रही है। वैसे तो मैंने भी उसके पापा की भाँति उसे पूरी आज़ादी दे रखी है। वह अच्छा खाए, अच्छा पहने। घुट-घुट कर न जीये। मेरी बेटी उड़ती फिरे परंतु धरती पर ही रहे। अपनी संस्कृति सीखे। जगदीप मुझे और बच्चों को वीकेंड पर गुरूद्वारा साहब भी ले जाते हैं। वे यहाँ की भाँति उन्मुक्त विचारों के ही हैं। वे चाहते हैं कि हमारे बच्चे बढ़िया जीवन गुज़ारें। डॉक्टर - इंजीनियर बन कर दिखाएं। हमारी बिटिया है भी इंटेलीजेंट। हाँ, कक्षा में टॉप करती है। मेरी भाँति उसके दादा जी भी फ़िक्रमंद रहते हैं। इंडिया से उनका फोन आता है -
“बेटा जी, बिटिया जवान हो रही है। ऐसे ही न किसी
गोरे-काले के चक्कर में फंस जाए। इसे अपने धर्म-जाति-बिरादरी के बारे में बताया
करो।”
जगदीप अपने डैडी की बात सुन कर हँसी में टाल
देते हैं परंतु मैं गंभीर हो जाती हूँ। अभी भी मेरा ध्यान बच्चों की तरफ ही है।
एंबुलेंस की आवाज़ बंद हो गई है। मैं पाँच मिनटों में नर्सिंग स्टेशन पहुँच गई
हूँ। नर्स साशा ने मरीज़ की फाइल तैयार कर मेरे सामने रखी है।..... छह वर्षीया यह
बच्ची अस्थमा के सीवियर अटैक से तड़प रही है।
ठीक तरह से पफ़र न लेने के कारण यह फिर से बीमार हो गई है।
ये गोरे लोग बच्चों पर ध्यान ही नहीं देते।
हम तो बच्चों की बहुत केयर करते हैं। मैंने मरीज़ को नेबुलाइज़ किया। ऑक्सीजन लगा
कर मरीज़ की तरफ देखने लगी हूँ। ध्यान तो मेरा स्वरीत और हर्ष की तरफ है। वैसे तो
ये बच्चे बहुत एडवांस हैं परंतु यहाँ क्राइम का कुछ पता नहीं चलता।
मैंने बच्ची को चेक किया, यह पहले से ठीक है।
बच्ची के स्वास्थ्य में सुधार देख तुरंत निकलने का निर्णय लिया। नर्स को हिदायत
देकर कार की स्पीड बढ़ा दी है। ओह हो, मैं बेकार ही डरे जा रही हूँ। वे रॉक्सी के
घर चले जाएंगे। आख़िर रॉक्सी स्वरीत की सीनियर रही है। उसकी सहेली भी है। रॉक्सी
की मॉम सैंडरा उसकी टीचर है। वैसे भी ये गोरियां बहुत हेल्पफुल हैं परंतु इनका
कान्टैक्ट नंबर घर पर होगा।
इसी सोच-विचार में पता ही नहीं चला कब मेरी
कार की ब्रेक घर के सामने आकर लगी। वाह जी, वाह यह तो वही बात हुई। सैंडरा और
रॉक्सी इन्हें लेकर अपने घर की तरफ जा रही थीं। मेरी कार देख चारों रुक गए हैं।
मैंने कार पार्क कर दोनों से हाथ मिलाया।
“थैंक्स सैंडरा...... थैंक्स रॉक्सी।”
उन्होंने मुस्करा कर मेरा हाथ दबाया। स्वरीत
और हर्ष मुझसे आ लिपटे हैं। माँ बेटी दोनों हाथ हिलाते हुए चल दीं। इनके चेहरे
खिले हुए हैं। मैं और जगदीप भी यही चाहते हैं कि हमारे बच्चे भी इनकी तरह चहकते
रहें। बाहर तक सुनाई दे रही हमारे लैंड फोन की आवाज़ कितनी तेज़ है। मंदीप का
होगा। वह पहले भी मोबाइल पर लगा रही थी।
भीतर प्रवेश करते ही बच्चे कोक, केक, चॉकलेट
और कुकीज़ खाने-पीने में जुट गए हैं। मैंने अभी टेबल पर पर्स रखा ही था कि फोन फिर
से घन-घना उठा।
“ये शीरी दी, कहाँ बिजी हैं, मैं दो घंटों से फोन किए
जा रही हूँ।”
मुझसे छोटी मंदीप की साँस फूल रही थी।
“बहना
मुझे अस्पताल में ही देर हो गई थी। अभी घर में एंटर किया ही है। तुम क्यों घबराई
हुई हो ? घर पर सब ठीक-ठाक है न ?” मुझे फिक्र सी हो गई।
“आपकी
सहेली हरबिंदर अटवाल का मर्डर हो गया है।”
“ओ माय गॉड ! किसने किया ? ” मैंने दिल थाम लिया।
“उसके
पति ने। उसके वर्क प्लेस में जाकर कहा, तेरा करैक्टर ठीक नहीं हैं। दीदी आपने
समाचार नहीं सुने?
दोपहर से सारा मीडिया यही ख़बरें रिपीट किए जा रहा है।”
मैंने मंदीप का फोन बीच में ही काट दिया। डॉ. किरण का भी फोन आ रहा था। अब
मुझमें फोन सुनने की हिम्मत नहीं रही थी। मैं सोफे पर अधलेटी सी हो गई। आँसू खुद -
ब - खुद बहने लगे।..... मुझे याद आया, तब हम नए-नए बैकुंवर में आए थे। मुझे कैनेडा
के मेडिकल सिस्टम के बारे में कुछ भी पता नहीं था। एक शादी में डॉ. किरण मिली थी।
उसने ही मेरी मेडिकल परीक्षा देने और तैयारी करने में मदद की थी। उसके कहने पर ही मैंने सिक्युरिटी का कोर्स
किया था। उसका कहना था, पढ़ने वालों के लिए यह जॉब बहुत फ़ायदेमंद है।
नौकरी के पहले ही दिन जिस खूबसूरत युवती ने मेरा स्वागत किया, वह हरबिंदर ही
थी। हम दोनों की एक ही बिल्डिंग में ड्यूटी थी। हमारे पास बहुत बड़ी और लंबी
बिल्डिंग थी जिसकी हम चौकीदारी करते। एक
चक्कर मार कर जाने और आने मैं एक घंटा लग जाता था। जब उसे पता चला कि मैं कैनेडा
में डॉक्टर की जॉब की तैयारी कर रही हूँ तो वह मुझे एक या दो चक्कर ही लगाने देती।
मैं सुपरवाइज़र बराड़ अंकल को एक घंटे बाद रिपोर्ट कर देती। बाकी समय मैं बैठ कर
कंप्यूटर पर पढ़ाई करती रहती या नोटस् तैयार करती। वह मेरा राउंड भी लगा लेती। घर
पर आना-जाना भी बढ़ गया था। वह मेरे बच्चों की मौसी बन गई थी और मैं उसके बच्चों
की।
अपने पति से उसकी नहीं बनती थी। एक बार मैंने उसके चेहरे पर नीले निशान देखे।
आँखें सूजी हुई थीं। मेरे पूछने पर झूठ-मूठ हँसते हुए कहा - “डॉक्टर
बहना, रात को बाथरूम में गिर गई थी।”
मुझे लगा वह अनेक भारतीय महिलाओं की भाँति पति का अत्याचार सहती जा रही है।
मेरे और जगदीप के कहने के बावजूद उसने कभी भी पुलिस को सूचित नहीं किया। उसके साथ
काम करते-करते मैंने मेडिकल का टेस्ट पास कर लिया था। डॉ. किरण को मुझसे दो साल
पहले मैनीटोबा की राजधानी विनिपेग के निकट एक शहर में रेसिडेंसी मिल गई थी। दो साल
बाद मैं भी जगदीप और दोनों बच्चों के साथ यहाँ ही शिफ्ट हो गई थी। जब हम बेंकुवर
से यहाँ शिफ्ट होने जा रहे थे हरबिंदर मुझे आलिंगन से न छोड़े। खुद भी रोती रही और
मुझे भी रुलाती जाए। मरजाणी बहुत स्नेह ले रही थी। मुझे यहाँ आए आठ साल हो गए हैं।
उसने अब तक दोस्ती कायम रखी थी। अब मंदीप के फोन ने मुझे हिला कर रख दिया है। उसके
बच्चों का क्या होगा?
मैं अपने बच्चों की तरफ निहारती हूँ। वे खेलने में मग्न हैं। उसके बिलख रहे
बच्चों के बारे सोच कर आँखों से आँसुओं की धारा बह निकली है। बेटी और बेटा दौड़े
आए हैं।
“क्या
हुआ मम्मा?” उन्होंने मेरे आँसू पोंछे। मैंने चेहरे पर मुस्कान बिखेर कर उन्हें फिर से
खेलने भेज दिया। उनके डर से मैंने टी. वी. भी नहीं चलाया। अपनी मौसी का क़त्ल देख
कर सहम जाएंगे। बेटी के दिल में तो उम्र भऱ के लिए ख़ौफ़ बैठ जाएगा। इस क़त्ल ने
कौम में दहशत और ख़ौफ तो भरना ही था साथ ही कैनेडियन हम भारतीयों से नफ़रत करना
शुरू कर देंगे। कुछ स्थानीय लोग तो पहले ही हमसे ख़ार खाए बैठे थे।
मुझे याद आ रहा है जब मैं और जगदीप एक मार्केट में घूमते हुए एक गोरे की
टिप्पणयों का शिकार हुए थे। फिर जब जगदीप वॉलमार्ट में नौकरी कर रहे थे, तब भी ऐसी
ही घटना घटी थी। सहकर्मी गोरे ने जगदीप की पगड़ी को छू कर देखा और कहा - “मिस्टर
सिंह एक तरफ तो आप लोग पगड़ी बाँधते हैं। धार्मिक कहलाते हैं। दूसरी तरफ अपनी बीवियों का क़त्ल कर देते हैं? अगर नहीं निभती तो तलाक क्यों नहीं ले लेते?”
यह सुन कर एक बार तो जगदीप भौचक्का रह गए थे। उनसे धर्म पर आघात सहा न गया। फिर
उन्होंने हिम्मत करके कहा –
“सभी
सिक्ख ऐसे नहीं हैं। मैं कैनेडा के प्रगतिशील संघ का सक्रिय कार्यकर्ता हूँ। अब
कैनेडा मेरा भी देश है। मैं यहाँ के कानून और रीति-रिवाज़ों के अनुसार जीवन-यापन
करता हूँ।” गोरा
संतुष्ट न हुआ। कंधे झटक कर आगे बढ़ गया। जगदीप जी का चेहरा उतर गया। एक भय और आतंक
सा दिल पर छा गया। ऐसा भय तब मेरे चेहरे पर भी फैल गया था, जब सेंट पॉल अस्पताल
में असेस्मेंट के दौरान मुझे बुखार हो गया था। उस दिन कॉफी पीते हुए एक गोरी
डॉक्टर एक टक मेरी तरफ देखे जा रही थी। मेरा उतरा हुआ चेहरा देख कर बोली -
“डॉ.
शीरी बड़ैच, आप घर में सुरक्षित हैं?
आपकी जान को ख़तरा तो नहीं न? आप
पुलिस सेवाओं से परिचित हैं न?”
“मेरे
पति ऐसे नहीं हैं, वे प्रगतिशील विचारधारा के हैं। मुझे बहुत प्यार करते हैं।”
मैंने बड़ी मुश्किल से ही उसे संतुष्ट किया था।
डॉ. किरण का फिर फोन आ गया है। वह भी हरबिंदर की बात लेकर बैठ गई है। मेरे
आँसू फिर से बहने लगे। डॉ. किरण मुझे चुप करवाती है। उसके कहने पर मैंने हाथ-मुँह
धोया।
मैंने पोशाक बदल कर शाशा से मरीज़ के बारे पूछा। ओके रिपोर्ट मिलने पर मैं
लैपटॉप पर मरीज़ों के विषय में नोट लिखने लगी। पता नहीं क्यों? लिखने के बजाय मुझे गाँव की एक घटना याद हो आई है।
तब मैं सातवीं या आठवीं में पढ़ती थी। हमारे
गाँव में सबसे बड़ा घर और आँगन बिश्न सिंह ताऊ का था। उनकी बड़ी बेटी इंद्रजीत कौर
मुझसे दस-बारह साल बड़ी थी। कहते हैं रात को इंद्रजीत के पेट में दर्द उठा। तड़के
वह चल बसी। मेरी ताई उनके यहाँ अफसोस करके लौट कर मेरी मम्मी के पास बैठ गई। मैं
भीतर पढ़ रही थी।
“बहन, बड़े आँगन वालों के साथ बहुत बुरा हुआ।
दूध-मक्खन से पाली-पोसी जवान बेटी चल बसी। कितनी कम उम्र लिखवा कर लाई थी। रब के
रंगों को कौन टाल सकता है।”
“पेट
दर्द से ही तड़के चल बसी।” मेरी
मम्मी बहुत चिंतित थीं।
“अरी देवरानी, कंबख्त पेट दर्द से भला कहाँ मरी? छठा-सातवां महीना चल रहा था। पाँव भारी होने का माँ को पता नहीं चला, नहीं तो
कोई चारा कर लेती। पिता को पता लगने की देर भर थी, गला दबा कर मार डाली। सरपंच के
साथ साँठ-गाँठ की और सुबह होते ही संस्कार कर दिया।” ताई मम्मी के कानों में फुसफुसा
रही थी।
“दाता, अगर बेटियां देनी है तो इज्ज़त रखने वाली देना।
तुम्हारे ही हाथों में सबकी इज्ज़त है।” मम्मी
ने ऊपर की तरफ हाथ जोड़े थे।
तब मैं बच्ची थी। मम्मी और ताई की पूरी बात
समझ नहीं पाई थी। यूं मैं इंद्रजीत की मौत के बारे सुन कर डर ज़रूर गई थी। डरी हुई तो मैं अभी भी हूँ। पिछले दिनों मैं
रोज़ रात को इंद्रजीत की चर्चा छेड़ लेती। रात को मुझे बुरे-बुरे सपने आते। इस डर
से मुझे जगदीप जी ने निकाला था।
“मैडम जी, अब आप कैनेडा के मुताबिक जीओ। अतीत को भूल
जाओ।”
उसे तो मैं
भूल गई। हरबिंदर को कैसे भूलूं? उसका
गोल-मटोल और हँसमुख चेहरा मेरी नज़रों के सामने घूमता रहता। मैंने स्वरीत और हर्ष
को बेडरूम में लाकर ड्रेस बदलवाई है। सूप पिलाया है। पढ़ने के बजाय स्वरीत मूवी
में और हर्ष गेम खेलने में व्यस्त हो गया है।
मैंने
बच्चों से चोरी बेडरूम वाला टीवी चलाया। टीवी पर कटी-फटी लाश देख कर मेरा जी
घबराने लगा। कैसा ज़ालिम आदमी होगा। इतनी बेरहमी से काट डाला? मैं तो बच्चों के कारण
रो भी नहीं सकती। जगदीप के फोन की घंटी
बजी है.... हलो कहते ही मेरी रुलाई फूट पड़ी। इन्होंने मुझे दिलासा दी। मेरी
हिचिकयां कम हो गईं। जगदीप हरबिंदर के पति को गाली-गलौज करने लगे -
“साले बड़े दिलेर अणखी बने फिरते हैं। मामा-बुआ की
बेटियों से शादी रचा कर यहाँ आए हैं। इन्होंने तो हमारा धर्म और धर्मग्रंथ नहीं
बख्शे। हर जायज़-नाजायज़ तरीका इस्तेमताल कर यहाँ आकर डेरा डाला है। अब बड़े सच्चे
सूरमा बनने चले हैं।”
जगदीप
ने हरबिंदर की कितनी ही बातें याद दिलाई हैं। इन्हें भारतीयों के ऐसे चरित्र से
बहुत नफ़रत है। इस पक्ष से वे गोरों की तारीफ कर रहे थे। इनके चार शब्दों से मैं
संभल गई हूँ। मैंने लिविंग रूम में आकर बेटी को आलिंगन में लिया।
लैंडलाइन की घंटी बजने लगी। मैंने आलिंगन से
बेटी को अलग किया। फोन मंदीप का ही होगा। मैं नहीं उठाती, ये लड़की पागल कर देगी।
फिर पूछेगी –
“शीरी दीदी, हमारे इंडियन ही लड़कियों को क्यों मारते हैं?”
अलग-अलग चैनलों पर यही सवाल इंडियन लोगों से
पूछा जा रहा है। मैंने फिर से बेडरूम में आते ही टीवी चलाया है। लहू-लुहान लथपथ
लाश पर बार-बार कैमरा दिखाया जा रहा है। लहू का छप्पड़ देख कर तो दिल ही डूबा जा
रहा है। ऐंकर ज़ोर-ज़ोर से बोल कर लानतें
दे रहे हैं। इनकी आवाज़ें माहौल को और भी
डरावना बना रही हैं। लाश देख कर तो मेरा
पहले ही बुरा हाल था। इन सूटेड-बूटेड ऐंकरों के शोर-गुल ने और भी भयभीत कर दिया
है।
मैं टीवी बंद करके रसोई से रेडियो उठा लाई
हूँ। एफ एम पर हरबिंदर के बारे में टॉक शो चल रहा है। कैनेडा में इंडियन्स की
इलीगल एंट्री, झूठे इमीग्रेशन, ड्रग का धंधा औरतों के क़त्ल का मामला गर्माया हुआ
है। एक गोरा कह रहा है – “एशियन कल्चर पिछड़ी हुई है।” सब
लोग हरबिंदर के क़त्ल की आलोचना कर रहे हैं। टांडी मंगते की कॉल आई है। यह कमीना
लड़कियों के पाश्चात्य सभ्यता के अनुसरण के कारण बिगड़ने का दोषारोपण कर रहा है।
कई उदाहरण देकर लड़कियों द्वारा की गई ठगी की बात कर रहा है। अप्रत्यक्ष रूप से यह
क़त्ल को जायज़ ठहरा रहा है और पंजाबियों के स्वाभिमान और गैरत को ख़तरे में बता
रहा है। होस्ट ने उसकी कॉल काट दी है। दूसरे कॉलर उसे गाली-गलौज कर रहे हैं। वह पंजाब
के पुराने गाँवों के स्वाभिमान की बात कर रहा था।
मेरा ध्यान भी अपने गाँव से जा जुड़ा। जहाँ
आठवीं तक स्कूल है। बहुत से माता-पिता लड़कियों को शहर नहीं भेजते थे। जो भेजते
भी, वे दसवीं या बारहवीं के बाद छुड़वा देते। मैं और ताऊ जी की बेटी कमल एक साथ
कॉलेज जाने लगी तो उन्होंने कमल की पढ़ाई छुड़वा दी। ताऊ के बेटे मेरा भी कॉलेज
छुड़ाना चाहते थे परंतु कैनेडावासी डैडी का ख़्वाब था कि मैं डॉक्टर बनूं। हमारे
भारतीय लोग कौन सा डॉक्टर लड़कियों को नहीं मारते?
समाज के अच्छे भले लोगों को डिस्टर्ब कर देते हैं। मेजी चाचा गाँव का सरपंच था।
जब हम कैनेडा आए, उससे दो-चार साल पहले चाचा
के साथ यह घटना घटित हुई थी। उनकी बेटी ज्योति ने नया-नया कॉलेज जाना शुरू किया
था। एक दिन वह कॉलेज से वापस नहीं लौटी। उन्होंने ढूँढने के लिए बहुत दौड़-भाग की
परंतु न तो वह मिली और न ही घर वापस आई। कई दिनों के बाद पता चला कि उसने गाँव के
समगोत्रीय लड़के से शादी कर ली थी। वे कहीं छुप कर रहने लगे थे। मेजी चाचा को बेटी
के भागने का ग़म मार गया। उन्होंने खुद को कमरे में कैद कर लिया था।
पूरी तरह शौकीन चाचा के सर के बाल बिखरे
रहते। भिखमंगों जैसी दाढ़ी। वह न तो नहाते, न किसी से बात करते। सारा दिन
बड़बड़ाते रहते। चाची उन्हें छोटे बच्चों का वास्ता देकर काम पर जाने को कहती। उन
पर कोई असर न होता। गाँव के बुजुर्गों और रिश्तेदारों ने भी बहुत ज़ोर डाला पर वे खुद को मारने लगे। लोग
उन्हें मेजी पगलू कहने लगे। उनसे डर लगता।
उन दिनों मैं अमृतसर में एम बी बी एस कर रही
थी। मुझसे छोटी मंदीप ने भी नया-नया कॉलेज जाना शुरू किया था। यह उलट-पलट कर बाल
बनाती। वैसे भी इसे बनने-संवरने का बहुत शौक है। यह हँसमुख और मज़ाकिया स्वभाव की
है। मेरी मम्मी उसे टेढ़ी निगाहों से देखती और अक्सर कह देती - “दीप
पुत्तर हमारी इज़्ज़त का ख़याल रखना, अपने मेजी चाचा की दुर्दशा देख लो। कहीं
तुम्हारे डैडी का भी यही हाल न हो। वे बेचारे विगत बीस बरसों से तुम लोगों की
ख़ातिर कैनेडा में बैठे हैं।”
“मम्मी कोई खा जाएगा क्या? और ये पाबंदिया लड़कियों पर ही क्यों?” क्रोध से जली-भुनी मंदीप मम्मी को खाने को
दौड़ती।
यह पगली तो डैडी जी से भी पिल पड़ती थी। डैडी
का मानना था कि ज़माना ख़राब है। लड़किय़ों को संभल कर चलना चाहिए। जब हम युवा हो
रही थीं, उनके माथे की त्योरियां बढ़ रही थीं। जैसे अब स्वरीत को देख कई बार मेरे
माथे पर बल पड़ जाते हैं। ये त्योरियां मैंने कभी सैंडरा के माथे पर पड़ते नहीं
देखी।
सैंडरा की डोर बेल ने मेरा माथा ठनका दिया
है। लगता है उसका ब्वॉयफ्रेंड जस्टिन आया है। सैंडरा ने दरवाज़ा खोला है। एक-दूसरे
को आलिंगन में लेते हुए वे भीतर चले जाते हैं। मैं भी भीतर आ गई हूँ। लैप-टॉप ऑन
करके मरीज़ों की हिस्ट्री लिखने लगती हूँ।
शुक्र है मंदीप का फोन दुबारा नहीं आया। अब आए भी मत। मुझे जगदीप ने बड़ी
मुश्किल से उदासी से निकाला था। मुझे रॉक्सी और सैंडरा जैसी लड़कियां और बूढ़ियां
अच्छी लगने लगी हैं।
लगभग चार साल पहले सैंडरा का अपने पहले
प्रेमी और पति डैब से ब्रेक-अप हो गया था। वह दोनों बेटों को लेकर कहीं और रहने
लगा था। सैंडरा के पास रॉक्सी थी। तब यह दस-बारह हफ्तों तक उदास रही थी। फिर इसकी
ज़िंदगी में जस्टिन आ गया था। तब से मैं इसका मुस्कुराता चेहरा देख रही हूँ। हमारे
घर आमने-सामने हैं। यहाँ हमारा ही एकमात्र हिंदुस्तानियों का घर है। बाकी सभी
गोरों के हैं। जगदीप उनके बीच रह कर खुश रहता है। हमारे दाईं तरफ लीयम और उसके
मम्मी-डैडी रहते हैं। मैं इन सबकी फैमिली डॉक्टर हूँ।
जब सैंडरा का ब्रेक-अप हुआ था, यह एकदम
डिप्रेशन में चली गई। तब से दूसरे या चौथे दिन मेरे पास अस्पताल आती है। मैं अच्छी
तरह इसका चेक-अप करती हूँ। इसकी कांउस्लिंग करके इसे तंदरुस्त किया। यह रॉक्सी को
लेकर घर भी आ जाती है। यह स्वरीत की टीचर भी है। स्वरीत को गिटार बजाना सिखाती है।
इन माँ-बेटी को हमारे घर का पंजाबी खाना बहुत पसंद है। यह मेरे पति के हाथों का
बना खाना ज़्यादा पसंद करती है। वह भी इन्हें पसंद करते हैं। उन्हें स्वरीत और
रॉक्सी की दोस्ती भी अच्छी लगती है। मैं अभी डरती रहती हूँ कि कहीं इसका रंग हमारी
हमारी बेटी पर न चढ़ जाए।
रात हो गई है। जब से पतिदेव कैलेगरी गए हैं,
आज पहली बार मुझे डर लगा। खाना खिला कर मैंने बच्चों को सुला दिया। मुझसे तो एक
निवाला भी न निगला गया, लहूलुहान-लथपथ हरबिंदर की लाश मेरे सामने घूमने लगती है।
मैं आवाज़ किए बगैर वॉशरूम गई हूँ। पानी की बूंदों की आवाज़ से भी डर कर भाग आई
हूँ। बत्ती नहीं बुझाई। फिर से पलंग पर गिर पड़ी परंतु नींद नही आ रही।
“देखो बेटा, तुम्हारी हँसी हमें न ले डूबे। अरी शीरी,
तुम समझदार हो इसे भी समझाया करो।”
मुझे और मंदीप से कहे गए मम्मी के ये शब्द दिमाग़
में घूम रहे हैं। मेरा सर फटने को हो रहा है। अगर मैंने मरीज़ की कॉल न ली होती,
मैं नींद की गोली लेकर सो जाती परंतु अस्पताल से कभी भी फोन आ सकता है। आज अगर
जगदीप घर पर होते, वह मुझे परेशानी से उबार लेते। वह अच्छा सोचते हैं। उनसे बात कर
मैं सोने की कोशिश करती हूँ। अभी आँख लगी ही थी कि अलार्म ने जगा दिया। बड़ी
मुश्किल से बिसतर से उठी हूँ। मैंने बच्चों को नाश्ता करवा, उन्हें उनके दोस्त के
घर बर्थ डे पार्टी पर छोड़ा। खुद अस्पताल आ गई हूँ। आज डॉक्टरों का राउंड है। बच्ची ठीक हो गई है। दुबारा अस्थमा का अटैक नही
आया। राउंड लगा कर मैं ओ पी डी में आ गई हूँ। तौबा, तौबा आज तो मरीज़ो से
कुर्सियां भरी पड़ी हैं और मेरी तबीयत परंतु मरीज़ तो देखने ही पड़ेंगे। दो बार
कॉफी पी चुकी हूँ। सर दुखना बंद नहीं हुआ। जैसे-तैसे मरीज़ निपटाए।
स्वरीत और हर्ष को बर्थ डे पार्टी से लेकर
सीधे घर पहुँची। कार पार्क करके, मैंने सोचा आज की डाक भी निकाल लूं। लेटर बॉक्स
से डाक निकालने लगी। सैंडरा मेरे पास आ खड़ी हुई। मैंने हलो कह कर हाथ मिलाया। डाक
भी देखती जा रही हूँ। उससे बातें भी करती जा रही हूँ।
“डॉ. शीरी वड़ैच, आय ऐम सो एक्साइटेड फॉर डॉटर्स
प्रेग्नेंसी। आय होप एवरी थिंग विल वी ओ के।” वह खुशी और उल्लास से रॉक्सी की प्रेग्नेंसी की बात
कर रही है। प्रेग्नेंसी के बारे सुन मुझे झटका लगा है।
“यू नो डॉ., टू फैमिलीज़ आर वेटिंग फॉर दिस बेबी। वी
विल प्लैन बेबी शावर। यू शुड़ शुअरली कम इन पार्टी। आई विल कॉल यू।”
वह बातों के मूड में लग रही थी परंतु स्वरीत
और हर्ष को जल्दी मचाते देख, मैंने बाय की। बच्चे दौड़ पड़े। वह भी मेरे आगे-आगे
चल पड़ी। उसके कदमों में मानो नृत्य की थिरकन हो। धरती पर मानो पाँव न पड़ रहे
हों। वह कबूतरी की भाँति मचलती हुई भीतर चली गई। मुझे बिस्तर पर लेटते ही नींद आ
गई। वीकेंड के कारण मैं जी भर कर सोना चाहती थी परंतु जगदीप के फोन ने उठा दिया।
घंटा भर वे हरबिंदर के पति जैसे पुरुषों के विरुद्ध बातें करते रहे। मैंने पर्दें
हटा कर बाहर का नज़ारा देखा। वाऊ!
सैंडरा का घर कितना खूबसूरत लग रहा है।
रॉक्सी पूर्ण युवा हो गई है। पिछले साल से
कॉलेज जाने लगी है। छरहरा सा बदन। नेकर टॉप पहने रहती है। खुले ब्लैंड बाल उसकी
खूबसूरती में चार चाँद लगाते हैं। कॉलेज जाते ही लीयम से इसकी दोस्ती हो गई। एक
दिन मैं सैंडरा के घर पर थी। गिटार सीखने गई स्वरीत को लेना था और फीस भी देनी थी।
उसी दिन मैंने पहली बार रॉक्सी और लीयम को एक साथ देखा था।
“डॉ. यह मेरा ब्वॉयफ्रेंड लीयम है।”
रॉक्सी हमारे सामने ही उस पडोसी युवक को किस करने लगी।
उस वक्त वे दोनों बाँहों में बाँहें डाले
बाहर निकल गए थे। मैं तब तक उन्हें जाते देखती रही जब तक वे ओझल न हो गए। और ये
रोज एक साथ घूमते। कॉलेज भी एक ही कार में जाते। रेस्ट्रो - सिनेमा ..... हर जगह।
अगले साल मैं वेकेशन पर डिज़नीलैंड गई। मुझे
वहाँ रॉक्सी के साथ किसी दूसरे लड़के का भ्रम हुआ। जब मैं वापस आई, वह सचमुच किसी
दूसरे लड़के के साथ घूमती दिखी। ये गोरा युवा लड़का उसके साथ जंचता खूब था। उस दिन
इसे फ्लयु हुआ था। दवाएं लिखवा कर जाने लगी तो मैंने सरसरी निगाह उस लड़के पर
मारी। वह मुस्कराई।
“डॉ. वड़ैच यह मेरा नया ब्वॉय फ्रेंड है।”
“और लीयम ?” हँसते हुए मैंने पहले वाले के बारे में पूछा।
“डॉ. साहब वह मुझे चीट कर रहा था। वह ग्रेसी के साथ भी
डेट कर रहा था और मेरे साथ भी। जब मुझे पता चला तो मैंने छोड़ दिया।”
इन्हें देख पतिदेव मुझसे मज़ाक करने लगते – “देख
लो, डॉक्टर साहब ये तीसरे दिन ब्वॉय फ्रेंड बदल लेती हैं। सच ही कहते हैं कि यहाँ
वर्क, वेदर और वुमैन का कोई भरोसा नहीं।”
“आपको कोई ऐतराज़ ?”
“नहीं जानेमन। मैं चाहता हूँ ऐसी आज़ादी सबको मिले।”
मुँह टेढा सा कर जगदीप ने कहा था।
“इसी
आज़ादी के सहारे ही तो यह देश प्रगति पर है। यहाँ आदमी को धर्म, जाति, नस्लों के
बेकार रिवाज़ों मैं कैद नहीं रखा जाता। लड़के-लड़कियां सब बराबर। भारत में ऐसा कभी
नहीं होगा। वहाँ तो लड़कियों की लोहड़ी बाँट कर अख़बारों में फोटो छपवाई जाती है।
यह मानसिकता भी लड़कियों के हक में नहीं बलकि खुद को प्रमोट करने की है।”
जगदीप मज़ाक करते-करते गंभीर हो गए थे। सचमुच उनकी सोच को कैनेडा के सिस्टम ने
और तराश दिया है परंतु हम कभी भी उन गोरों जितना एडवांस नहीं हो सकते। फिर जब
सैंडरा और पार्कर रॉक्सी के चेक-अप के लिए अस्पताल आए तो मैं उनकी माँग सुनकर चकित
रह गई।
“डॉ.
क्या यह पता लग सकता हे कि बच्चे का पिता कौन होगा?” मैंने उनका सवाल हँसी में टाल दिया और स्कैन लिख
दिया। वे अल्ट्रासांउड करवा कर इंतज़ार करने लगे। यह दूसरी बार अल्ट्रासाउंड हुआ
था। जैसे ही ईमेल पर रिपोर्ट आई, मैंने उन्हें भीतर बुलाया।
“बेबी
तंदरुस्त है। रॉक्सी, बेबी की पैदाइश तक स्मोक और ड्रिंक मत करना।”
तीनों एक-दूसरे को देख मुस्कुराए। रॉक्सी ने बेबी कंसीव करने की तारीख जाननी
चाही। मैंने अल्ट्रासाउंड से देख लिया कि दिसंबर के अंतिम दिन या जनवरी के शुरूआती
दिन हो सकते हैं।
“क्या
हुआ, रॉक्सी?” उसे सोच में डूबी देख मैंने सवाल
किया।
“डॉक्टर,
क्या यह पता चल सकता है कि बेबी कंसीव करने की असली तारीख क्या है?”
“यह
क्यों जानना चाहती हो?” उसे कैलकुलेशन में उलझी देख मैं
हैरान हो गई थी।
“डॉ.
जिस हफ्ते की आप प्रेग्नेंसी बता रही हैं उसी हफ्ते ग्रेसी को लेकर लीयम से मेरा
झगड़ा हुआ था। उसने अपने और ग्रेसी के संबंधों को स्वीकार कर लिया था। मैंने उसी
वक्त उससे ब्रेक अप कर लिया था परंतु भीतर से बुरी तरह टूट गई थी। चौथे या पाँचवें
दिन हवा के झोंके की भाँति मेरे जीवन में पार्कर आ गया था।....फिर हमने एक साथ ही
नए साल के जश्न मनाए। रातें भी साथ गुज़ारी थीं। तब से एक साथ रहते हैं।”
रॉक्सी ने
बड़ा लंबा सा वार्तालाप सुना दिया।
“दरअसल
रॉक्सी, अल्ट्रासाउंड से प्रेग्नेंसी के शुरूआती दिनों में तो असली तारीख का पता
चल जाता है। बाद में मुश्किल होता है। मैंने न में सर हिलाया।”
“डॉ.
वड़ैच प्लीज़ बता दें।” मुझे देख पार्कर ने विनती की।
“सही
डेट और सही टाइम के बारे में अल्ट्रासाउंड से पता नहीं चल सकता। पिता के बारे में
डीएनए से संभव हो सकता है।”
मेरी यह बात सुन कर उन्होंने थैंक्स कहा और हाथों में हाथ थामें बाहर निकल गए।
सैंडरा भी उनके पीछे चल दी। उसके बाद मेरे लिए मरीज़ देखना मुश्किल हो गया। हरबिंदर,
इंद्रजीत, ज्योति के मासूम चेहरे मेरे सामने घूमने लगे परंतु रॉक्सी......
.....इन्हीं दिनों रॉक्सी का जन्मदिन आ गया था। यह उसका अठारहवां जन्मदिन था।
घर को सजाया गया था। सैंडरा परिवार ने अपने फ्रेंड सर्किल और रिश्तेदारों को
आमंत्रित किया था। अपने पूर्व पति और बेटों को भी बुलाया था। रॉक्सी के दोनों
ब्वॉय फ्रेंड भी वहाँ टहल रहे थे। उनके माता-पिता और भाई-बहन भी साथ थे। हम चारों
प्राणियों का भी स्वागत किया गया।
घर में बहुत गहमा-गहमी थी। बड़े आकार का केक काटा जा रहा था। रॉक्सी के
दोस्तों, पारिवारिक सदस्यों और स्वरीत ने
बारी-बारी से उसके मुँह में केक डाला। जवां खून मस्ती के मूड में नज़र आ रहा था।
पार्कर ने केक की क्रीम उसके मुँह पर मल दी है। जवानी के शोर-शराबे में सैंडरा उठ
खड़ी हुई। उसने अपनी बेटी को चूमा। मेहमानों से खुशी साझा करते हुए कहा –
“वाऊ... वेल डन।”
मेहमानों की तालियों से कमरा गूंज उठा।
स्वरीत और हर्ष ने भी ताली बजाई। मैं जगदीप के माथे पर त्योरियां उभरी देख
हैरान और परेशां हो गई हूँ। यह सुन कर सैंडरा के मेहमान फूले न समाए। उन्होंने
बीयर के कैन उठा लिए। वाइन के जाम टकराए हैं। ‘चीयर्स….।’
की आवाज़ें एक दम ऊँची हो गईं। कभी हुलसित युवक-युवतियों को देखती हूँ तो खुश हो
जाती हूँ। जब अपने बच्चों की तरफ देखती हूँ तो घबरा जाती हूँ। बीच-बीच में मेरा
ध्यान हरबिंदर, इंद्रजीत और मेजी चाचा की तरफ जा रहा है, वे मुझे पार्टी से अलग एक
तरफ खड़े दिखाई देते हैं। मेरा ध्यान फिर से पार्टी पर लौट आया है।
“ओ
रॉक्सी, इसका खुशनसीब बाप कौन है ?” एक मनचला गोरा चिल्लाया।
सभी मेहमानों ने इस मनचले की तरफ घूर कर देखा परंतु रॉक्सी मुस्कुरी उठी। उसने
कंधे उचकाए। मेहमान भी हँस पड़े परंतु हमें हँसी नहीं आई। जब मैंने हरबिंदर को
किसी युवक के साथ उसके संबंधों के बारे में पूछा था, वह बहुत शर्माई थी। उसने
दूसरी तरफ मुँह घुमा कर इन्कार में सिर हिलाया था। ....इधर रॉक्सी आगे बढ़ी उसने लीय़म के कंधे पर
हाथ रखा है। कितनी चीखें बजी हैं। लीयम के माता-पिता ने क्लैपिंग की।...रॉक्सी ने
पार्कर को आलिंगन में ले चूमा। उसके माता-पिता और भाई खड़े होकर हाथ हिलाने लगे।
“शीरी,
पता नहीं क्यों मेरी आँखों के समक्ष ऐसा लग रहा है मानो यह हरकत स्वरीत कर रही हो।” जगदीप ने धीरे से मेरे कान में कहा।
“लीयम
पहले मेरा ब्वॉयफ्रेंड था, अब पार्कर है। इनमें से किसी एक का होगा।”
रॉक्सी ने बड़ी बेबाकी से कहा।
जगदीप ने गुस्से में मुट्ठियां भींची।...युवाओं ने हो हो हुर्रे – हो हुर्रे
कहा। उसका पिता डैब उठा बेटी को किस किया। दोनों भाई भी बधाई दे रहे हैं। स्वरीत
भी बधाई देने के लिए उठी है। जगदीप बड़बड़ाया परंतु स्वरीत ‘कॉन्ग्रैटस्’
बोल आई है।
शकीरा के बीट वाले गीत पर युवाओं ने थिरकना शुरू कर दिया। सैंडरा भी अपने लवर
की बाँहों में बाँहें डाले झूम रही है। पूरा लाउंज अल्कोहल की महक और सिगरेट के
धुएं से भर गया। पार्कर और रॉक्सी लीयम से ज़रा परे हट कर डाँस में मशगूल हैं। अलग-अलग
जोड़ों ने डाँस शुरू कर दिया है। हमारे दोनों बच्चे गीत-संगीत में मग्न हो कर सर
हिला रहे हैं। कुछ जोड़े हमारी तरह बैठ कर खा-पी रहे हैं। पर हम दोनों प्राणी सहज
नहीं हैं। मेरा तो बुरा हाल है। रॉक्सी के दोनों ब्वॉयफ्रेंडों पर नशा सा छा गया
है। पार्कर उसके साथ डाँस करने लगा।
“यह
मेरा बेबी होगा, डार्लिंग ?” लीयम
ने पास आकर रॉक्सी का हाथ चूमा।
पार्कर ने डाँस तेज़ कर दिया है। लीयम भी लड़खड़ाते हुए उनके डाँस में शामिल
हो जाता है। दोनों लड़कों के माता-पिता भी खुश हैं कि उनके बेटे का बेबी आने वाला
है। वाइन के गिलास टेबल पर रख वे भी डाँस में शामिल हो गए हैं। चारों तरफ नशा है।
चेहरों पर लाली है। लोग नशे के सुरूर में हैं। खुशी का इज़हार हो रहा है। स्वरीत
का भी नाचने के लिए पाँव उठ रहा है। ....लीयम अकेला ही लड़खड़ा रहा था। वह हमारे
पास आकर रुक गया। ‘हाय... हाय’ कह कर वह स्वरीत की तरफ बढ़ा है।
“लेटस्
डाँस बेबी। हैव ए फन.....कम ऑन।” लीयम के शब्दों के साथ शराब की महक भी बाहर आई है।
यह सुनकर जगदीप का चेहरा और तप गया। मेरा
जी चाहता है कि इस लंबूतरे को एक जड़ दूं। वह थोड़ा और आगे बढ़ा है। उसने
स्वरीत का हाथ पकड़ लिया है। वह भी थिरकती – थिरकती उसके साथ चल दी।
“बेटा....।”
मैंने स्वरीत को घूर कर बाँह से पकड़ कर बिठाया।
मैं घबरा गई हूँ। जगदीप के चेहरे पर एक रंग आ रहा है, एक जा रहा है। इन्होंने
दाँत पीसे हैं। उठ कर खड़े हो गए हैं। घर जाने का इशारा कर रहे हैं। बच्चों को समझ
नहीं आ रहा कि पापा को क्या हो गया। वे घर जाना नहीं चाहते। पार्टी एन्जॉय करना
चाहते हैं। जगदीप हम तीनों की तरफ घूर कर देख रहे हैं।... शीघ्रता से बाहर की तरफ
चल दिए। मैंने न चाहते हुए भी, बच्चों को ज़बरदस्ती साथ लिया। मैं तेज़ कदमों से
जगदीप के पास पहुँचना चाहती हूँ। बच्चे पीछे की तरफ देखे जा रहे हैं। स्वरीत तो
चिढ़ गई है।
हम चारों अपने घर आ गए हैं। लिविंग रूम में ही सोफों पर बैठ गए हैं। जगदीप अभी
भी सामान्य नहीं हैं। स्वरीत और हर्ष की तरफ एकटक देखे जा रहे हैं।
“पापा,
मेरा भी एक ब्वॉय फ्रेंड है।” स्वरीत ने रॉक्सी की भाँति कंधे उचकाए हैं।
“क्या ?” यह सुनकर मैं तो गई काम से।
“ममा,
मैं भी अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ डेट पर जाऊँगी। क्या आप मुझे इजाज़त देंगे ?”
स्वरीत की पहली बात सुनकर जगदीप बड़बड़ाने लगे हैं। डेट वाली बात सुनकर इनकी आँखों
में लाली उतर आई है।
“स्वरीत,
तुम्हारा दिमाग ठीक है ?” तमाचा मारने के लिए मेरा हाथ उठा
है।
“मैं
तो जाउँगी, ममा”।
इतना कह कर स्वरीत अपने बेडरूम में जा घुसी। दरवाज़ा भीतर से बंद कर लिया।
जगदीप का रंग एकदम पीला पड़ गया। सोफे पर ही लेट गए हैं। मैं इनकी हालत देख कर
काँप उठी हूँ।
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लेखक परिचय - अजमेर सिद्धु
पेशे से अध्यापक। पंजाबी के चिरपरिचित कथाकार। पंजाबी पत्रिका ‘विज्ञान जोत’ का नियमित संपादन। पंजाबी
साहित्यिक पत्रिका ‘राग’ का संपादन। पाँच कहानी संग्रह, पाँच संपदित
पुस्तकें, तीन जीवनीमूलक पुस्तकों सहित विज्ञान दर्शन पर आधारित एक पुस्तक के
रचियता। पंजाबी की लगभग सभी श्रेष्ठ पत्रिकाओं में नियमित रचनाएं प्रकाशित। अनेक
आलेख तथा कहानियां विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में शामिल, दोआबा के प्रसिद्ध
गाँवों के इतिहास व 1947 के स्वाधीनता
आंदोलन पर शोध। संत राम उदासी मेमोरियल ट्रस्ट के महा सचिव। विदेशों में अनेक
साहित्य़क कार्यक्रमों में शिरकत।
पुरस्कार –
भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता युवा पुरस्कार, कुलवंत सिंह विर्क पुरस्कार, मोहन
सिंह मान पुरस्कार, भाई वीर सिंह गल्प पुरस्कार, बलराज साहनी पुरस्कार। करतार सिंह
धालीवाल नव प्रतिभा पुरस्कार। प्रिंसीपल सुजान सिंह उत्साहवर्धक पुरस्कार, माता
गुरमीत कौर मेमोरियल पुरस्कार, सादत हसन मंटो पुरस्कार, अमर सिंह दुसांझ मेमोरियल
पुरस्कार, शाकिर पुरुषार्थी गल्प पुरस्कार व अन्य अनेक पुरस्कार।
संपर्क – द्वारा जंडे हेयर ड्रेसर्स, चंडीगढ़ रोड, नवांशहर - 144514 (पंजाब)।
मोबा.
94630 63990
साभार - विभोम स्वर, जुलाई - सितंबर 2024
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