साभार - कथाबिंब पत्रिका, जुलाई - सितंबर, 2023
लेखक परिचय
तपन बंद्योपाध्याय
चार दशकों से नियमित लेखन। अब तक 11 काव्य संकलन, लगभग 400 कहानियां, 100
उपन्यास प्रकाशित। तीन खंडों में प्रकाशित
उपन्यास ‘नोदी माटी अरौण्यो’ के लिए राज्य सरकार के
सर्वोच्च बंकिम स्मृति पुरस्कार से सम्मानित। ‘मेहुलबोनीर सेरेंग’ उपन्यास पर बनी बांग्ला फिल्म को श्रेष्ठ कथा का बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट
अवॉर्ड। इस फिल्म के सभी गीत भी लिखे।
इसके अलावा ताराशंकर पुरस्कार, रूपसी बांगला पुरस्कार, शैलजानंद पुरस्कार
सहित अनेक पुरस्कार। शिशु साहित्य के लिए दिनेशचंद्र स्मृति पुरस्कार।
धारावाहिक स्तंभ आमलागाछी ( दफ्तरशाही) बहुत ही लोकप्रिय रहा। कृतियां अन्य
भाषाओं में भी अनूदित।
एक लंबे अरसे के बाद अकादमी की साउथ
गैलरी में प्रदर्शनी लगा पाने पर बहुत खुश हैं रीवू बाबू। उनके कलात्मक करियर की
40वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में है यह प्रदर्शनी। वे अब प्रसिद्धि के शिखर पर हैं।
इस बार उनके चित्रों की विषय-वस्तु बिलकुल नई है। ‘तंत्र कला’ - इस कैप्शन के आधार पर उन्होंने चित्र
बनाए हैं। काफी शोध कार्य और ढेर सारी किताबें पढ़ कर एक साथ बत्तीस
चित्र बना लेने के कारण उन्हें भी बहुत खुशी हो रही थी। प्रदर्शनी देखने आए लोग भी
रीवू बाबू द्वारा रंगों के प्रयोग, विषय वस्तु और रेखाओं की कलात्मकता को देखकर काफी उत्साहित थे।
आगंतुक पुस्तिका भी कई प्रसिद्ध
कलाकारों की टिप्पणियों से भरी पड़ी है। आम दर्शकों में कई समझदार दर्शक हैं जो बहुत
ज्यादा आत्म-प्रदर्शन करना नहीं चाहते, लेकिन पेटिंग्स की अच्छी समझ रखते हैं।
तीन दिनों की प्रदर्शनी के बाद, आखिरी दिन रात आठ बजे, उन्होंने दीवारों से पेंटिंग्स को
उतारते हुए समेटना शुरू कर दिया। इस काम में एक युवा कलाकार सोमरिक जो उनका
प्रशंसक है, मदद कर रहा है। इस प्रदर्शनी के
उद्घाटन के दिन एक और युवा कलाकार रजताभ ने भी खूब दौड़-भाग की थी, उसे भी आज आने के लिए कहा था, लेकिन वह दिखाई नहीं दिया।
प्रत्येक पेंटिंग को दीवार से उतारकर
कागजों में लपेट कर एक के बाद एक सहेज कर रखना बहुत झमेले वाला काम है। प्रदर्शनी
देखने आने वाले सभी दर्शक एक-एक कर चले जा रहे हैं, उन्हीं में से एक युवती दूर
खड़े होकर रीवू बाबू और सोमरिक की गतिविधियों को देख रही थी और अचानक सामने आकर
कहा, “क्या मैं भी आप लोगों की सहायता कर सकती हूँ?”
रीवू बाबू को थोड़ी सी हैरत हुई, नहीं भी हुई। युवती की उम्र
छब्बीस-सत्ताइस होगी, उसने
फटी-पुरानी जींस के ऊपर हल्के गुलाबी रंग की शर्ट पहनी हुई है। कानों में
बड़े-बड़े लाल-हरे नग जड़े झुमके, गले में वैसा ही हार। लापरवाही से संवारे बालों की पॉनिटेल सी बना
रखी है। कुछ देर देखने के बाद हिचकिचाते हुए कहा, “ हाँ क्यों नहीं। लेकिन एक बार इस काम
में लग जाने पर तुम्हें बहुद देर हो जाएगी।”
“होने दीजिए। बहुत सारी पेंटिंग्स हैं।
अगर मैं थोड़ी मदद कर दूं, तो काम ज़रा जल्दी ख़त्म हो जाएगा।”
रीवू बाबू की अनुमति पाकर वह लड़की बहुत
ही दक्षता से दीवार से पेटिंग्स उतारने लगी, और सावधानी से अख़बार में लपेट कर एक-एक करके रखने लगी।
पिछले तीन दिनों से रीवू बाबू ने गौर
किया था कि यह युवती रोज़ ही एक बार उनकी प्रदर्शनी देखने आती थी और दो-तीन घंटे
गैलरी में गुज़ारती थी। प्रत्येक चित्र को बार-बार ध्यान से देखती और कागज पर कुछ
नोट करती जाती। रीवू बाबू ने सोचा कि वह किसी अखबार की रिपोर्टर होगी, प्रदर्शनी के बारे में कुछ लिखेगी लेकिन
तीन दिनों में चित्रों के बारे में कुछ न पूछने के कारण वह समझ नहीं पा रहे थे कि
आखिर उसका इरादा क्या है। आज वह उनके साथ मिलकर जल्दी-जल्दी और कुशलता से पैकिंग
कर रही है, बीच-बीच में एक-दो बार उनकी तरफ देख भी
लेती है।
रीवू बाबू
अचानक
पूछ बैठे, “तुम्हारा नाम क्या है?”
“तनिमा। सभी तनु कहकर बुलाते हैं।”
आवाज़ थोड़ी सी कर्कश थी। जवाब देकर तनिमा
ने फिर से पैकिंग करना जारी रखा।
उसकी
पैकिंग की गति देखकर रीवू बाबू ने फिर पूछा, “तुम क्या करती हो?”
“कुछ नहीं, तस्वीरें बनाती हूँ। इधर-उधर घूम लेती हूँ।”
लड़की की बेपरवाही भरी बातें सुनकर रीवू
बाबू हैरान हो रहे थे। पैकिंग खत्म होने तक रात के 10:30 बज चुके थे। रीवू बाबू ने
सोमरिक से कहा, “मैंने एक बड़ी गाड़ी को बाहर आकर रुकने
के लिए कहा था। देखो तो आई कि नहीं!”
सोमरिक जल्दी से बाहर निकल गया तो रीवू
बाबू ने तनिमा की तरफ देखा, “कहाँ रहती हो? अब कैसे लौटोगी? बहुत रात हो गई है!”
तनिमा ने उन्हें चौंकाते हुए कहा, “कहाँ लौटूं? मेरे पास लौटने की कोई जगह नहीं है।”
“नहीं! मतलब! घर पर कोई नहीं है?”
“हो कर भी नहीं।”
“मतलब?”
“मेरे पास एक घर है, पिता है, माँ है, लेकिन
उन्होंने मुझे खारिज़ कर दिया है।”
“यानी घर की दो लड़कियों में से एक नकारा,
जो किसी की न सुनती हो। घर में हो तो दरवाजा बंद करके चित्र बनाती
रहती हो। अचानक बिना किसी को बताए घर से निकल
जाती हो, उसके लिए तो घर नाम की कोई चीज़ नहीं
होती न!”
“लेकिन वह भी एक ठिकाना है? मुझे बताओ कहाँ है? तुम्हें छोड़ देंगे। मैं जादवपुर
जाऊंगा।”
तनिमा ने अपने होंठ बिचका कर कहा, “मैं तो दमदम में रहती हूँ – आपके
बिलकुल विपरीत दिशा में।”
फिर तुरंत कहा - “न भी लौटी घर तो... आप मुझे अपने घर ले
चलिए न। मैं आपके सारे काम कर दूंगी।”
इस तरह के अचंभित प्रस्ताव से रीवू
बाबू चकित रह गए,
“क्या कहती है लड़की!”
“मैं तो थोड़ी चित्रकारी करती हूँ, माउंट करना भी जानती हूँ। आप चित्र
बनाते हैं, मैं चित्रों को माउंट करके पैक करके,
उन्हें घर में सहेज कर रख दिया करूंगी। प्रदर्शनी के समय हॉल में ले जाकर दीवार पर
लटका दिया करूंगी। एक प्रसिद्ध कलाकार के कितने काम होते हैं। मैं आपकी मदद किया करूँगी।
ले चलेंगे अपने घर?”
रीवू बाबू बहुत पशो-पश में पड़ गए। उनका
फ्लैट बहुत छोटा नहीं है, ग्यारह सौ वर्ग फुट का है। फ्लैट में उनके अलावा उनकी पत्नी गायत्री
रहती हैं। गायत्री बहुत बीमार हैं। लगभग बिस्तर से लगी हैं। हृदय रोग है। इसके
अलावा दोनों घुटने लगभग बेकार हैं। डॉक्टर ने घुटने बदलने को कहा है, लेकिन हृदय रोग की समस्या गंभीर होने
के कारण वह ऑपरेशन के लिए राजी नहीं हो रहे हैं। एक खाना पकाने वाली सहायिका है। दूसरी
घरेलू परिचारिका एक – दो घंटे में घर के छोटे-मोटे काम निपटा जाती है तो किसी तरह
गृहस्थी की गाड़ी अभी चल रही है।
गायत्री से बात किए बिना अचानक इस उम्र
की लड़की को घर पर ले जाना क्या उचित होगा! लेकिन फोन पर गायत्री से सलाह करना और अगर गायत्री ने मना कर दिया, तो क्या इतनी रात को लड़की को दमदम पहुँचाया
जा सकता है?
दिमाग में यही सब चक्करघिन्नी की तरह
चल रहा था कि सोमरिक ने आकर कहा कि सर गाड़ी आ गई है।
यह सुनते ही तनिमा ने दो बड़ी-बड़ी पेंटिंग्स
अपने कंधों पर उठा लीं और कहा, “मैं इन दोनों को गाड़ी में छोड़ कर आ रही हूँ, यहीं अभी वापस आ रही हूँ। मुझे दिखा दीजिए ज़रा कि
गाड़ी कहाँ खड़ी है।”
तनिमा की तत्परता देख सोमरिक ने भी दो पेंटिंग्स
उठाईं और कहा, “चलो।”
रीवू बाबू से कहा, “सर आप यहीं खड़े रहिए, हम दोनों छह-सात फेरों में सारी पहुँचा
देंगे।”
सारी पेंटिंग्स गाड़ी में रख गाड़ी को
रवाना होते-होते रात के 11:30 बज गए। कोलकाता की सड़कों पर उस समय ट्रैफिक क्रमश: धीमा था। सोमरिक चढ़कर ड्राइवर के बगल वाली सीट
पर बैठ गया। उसने कहा, “सर,
मुझे
गरियाहाट चौराहे पर उतार दीजिएगा।”
सोमरिक के गाड़ी में चढ़ते ही रीवू बाबू तनिमा की तरफ देख कर कहते हैं, “चलो तुम भी बैठो।”
तनिमा रीवू बाबू के बुलाने का इंतजार
कर रही थी। तुरंत पीठ से बैग उतार गोद में रखते हुए पिछली सीट पर जा बैठी। उसके
साथ रीवू बाबू के चढ़ते ही गाड़ी जादवपुर के लिए चल पड़ी। रास्ते में ज्यादा बात
नहीं हुई।
सोमरिक को गरियाहाट चौराहे पर उतारने
के बाद जब दोनों जादवपुर स्थित फ्लैट पर पहुँचे तो आधी रात हो चुकी थी।
लिफ्ट में चढ़ कर तीसरी मंजिल पर उतर
कर बिना घंटी बजाए जेब से चाबी निकाल कर भीतर चले गए। इतनी रात तक गायत्री का सो
जाना सामान्य बात है। कोई और दिन होता तो उसे जगाए बिना ही मेज पर ढका हुआ खाना खा
लेते और चुपचाप बिस्तर पर सो जाते। पर आज तनिमा साथ थी तो धीरे से जाकर पुकारा- “गायत्री!”
गायत्री की नींद बहुत कच्ची है। इतनी
रात को रीवू बाबू के साथ एक अनजान युवती को देख बेहद हैरान हैं। रीवू बाबू ने उनकी
जिज्ञासु निगाहों को देखकर कहा, “तनिमा चित्र बनाती है। बाकी बाद में
बताऊंगा। हम दोनों खाना खा लें फिर मैं उसके लिए अतिथि कक्ष व्यवस्थित करके आता
हूँ।”
उनका अतिथि कक्ष उनके फ्लैट के एक निर्जन
कोने में है। रीवू बाबू खाना खाकर तनिमा के सोने का इंतजाम करके गायत्री के कमरे
में लौट आए। गायत्री आज अभी तक नहीं सोई है। उन्होंने बिस्तर पर आराम से लेटते हुए उसे
पूरा वृत्तांत सुनाया कि तनिमा कैसे मिली। यह भी बताया कि तनिमा उनके घर में रहना
चाहती हैं। गायत्री कुछ देर चुप रही और बोलीं, “जो आपको ठीक लगे।”
अगली सुबह रीवू बाबू ने उठते ही देखा
कि तनिमा उनसे बहुत पहले ही उठ चुकी थी और नहा-धोकर सोफे पर बैठी थी। उसने अपना
बिस्तर बड़े करीने से व्यवस्थित कर दिया था। रिवू बाबू को देखते ही उसने कहा –
“गुड मॉर्निंग,
सर!”
तनिमा के जवाब में रीवू बाबू के “गुड मॉर्निंग” कहते ही तनिमा ने कहा, “चाय लाऊं मैं?”
सुबह की चाय रीवू बाबू ही बनाते हैं। उन्होंने
ने झिझकते हुए कहा, “तुम्हें तो पता नहीं कहाँ क्या रखा है।
मैं बना लाता हूँ।”
तनिमा झट से सोफे से उठी और बोली,
“मुझे बता दीजिए कहाँ क्या है। तब तक आप और आंटी ब्रश कर लीजिए।”
तनिमा रीवू बाबू की अनुमति की
प्रतीक्षा किए बिना ही रसोई में चली गई। उसने अपनी आवाज़ थोड़ी ऊँची करके कहा,
“चाय का सामान कहाँ है सर?”
रीवू बाबू रसोई के दरवाज़े पर आए,
आगे
बढ़ कर चाय के सामान, इलेक्ट्रिक केतली और कप-प्लेटों की जगह
दिखाई। वे दोनों रोज़ बगैर-दूध-चीनी की चाय पीते हैं। यह बताकर गायत्री से कहा- “ब्रश कर लो। तनिमा चाय बना रही है।”
थोड़ी देर बाद गायत्री पैर घसीटते हुए
बाहर आईं और मुँह-हाथ धोकर सोफे पर बैठ गईं। इतनी देर में तनिमा ने एक ट्रे में
तीन कप चाय लाकर सेंटर टेबल पर रख दी और एक सोफे पर बैठ गई। उसने अपना कप उठाया और
कहा, “देखिए आंटी, चाय का स्वाद सही है या नहीं!”
गायत्री तनिमा को कौतूहल भरी निगाहों
से देख रही थीं। उन्होंने चाय की चुस्की ली और सिर हिलाया,
ठीक
है।
तनिमा ने रीवू बाबू की तरफ देख कर कहा,
“सर आपकी पेंटिंग्स इधर-उधर बिखरी पड़ी हैं। क्या मैं इन्हें सहेज कर
कहीं एक जगह रख दूं?”
रीवू बाबू बहुत हैरान हैं। इस बीच तनिमा
ने कब बेतरतीब ढंग से पड़ी उनकी पेंटिंग्स को देख लिया! रीवू बाबू कितने समय से
चित्रों को एकत्र करने, चित्रों के बनाए जाने के समयानुसार उन्हें
एक-एक करके व्यवस्थित करने के बारे में सोच रहे हैं, फिर एक सूची बना ली जाए। लेकिन उनके
पास समय ही नहीं है, और करने को जी भी नहीं चाहता। तनिमा जैसा कोई
अगर ऐसा कर दे तो बहुत अच्छा होगा। उन्होंने कहा, ‘’ठीक-ठीक है, वह बाद में करना आराम से।”
गायत्री ने अचानक रीवू बाबू से कहा, “ घर में सब्जी और मछली बिलकुल नहीं है।
कल बिमला कह रही थी।”
बिमला उनकी खाना पकाने वाली सहायिका
है। रीवू बाबू बोले, “अच्छा तो
फिर
मैं पहले बाज़ार हो आऊँ।”
गायत्री ने फिर कहा,
“एक ब्रेड लेते आइएगा। अंडे और बटर भी। सुबह के नाश्ते की व्यवस्था
करनी होगी।”
तनिमा ने कहा,
“मुझे आलू के परांठे बनाने आते हैं। बनाऊँ?”
गायत्री - रीवू बाबू दोनों अचंभित हो
गए। बोले, “तब तो बहुत ही अच्छा हो। रोज़-रोज़ ब्रेड और बटर खाकर ऊब चुके हैं।”
गायत्री से हरी झंडी मिलने के बाद
तनिमा तुरंत अकेले किचन में जा घुसी। वहीं से ज़ोर से कहा, “सर, मुझे आलू और आटा नहीं मिल रहा है!”
रीवू बाबू फिर किचन में गए और सब कुछ
दिखाते हुए कहा, “तुम बनाओ। मैं आधे घंटे में बाज़ार से आता हूँ।”
तनिमा ने कहा,
“मैं आपके साथ जाऊँ तो क्या कोई असुविधा है?
आप
एक कलाकार हैं। रोज़-रोज़ बाज़ार में कितना समय बर्बाद होता है। आज मुझे बाज़ार
दिखा दीजिए। मैं रोज इसी समय नाश्ता बना कर बाज़ार चली जाया करूंगी। उस समय में आप
चित्र बना लीजिएगा।”
तनिमा की कार्यकुशलता और बुद्धिमत्ता
से रीवू बाबू क्रमश: चकित हो रहे थे। ठीक ही तो है, हफ्ते
में तीन दिन तो बाज़ार जाना ही पड़ता है,। सुबह का यह समय उनके लिए प्राइम टाइम
होता है, बाज़ार आने-जाने में कुल मिलाकर डेढ़ घंटा
बर्बाद हो जाता है। इस समय चित्र बना सकें तो कितना अच्छा हो।
15 मिनटों के भीतर,
तीनों
के लिए टमाटर सॉस के साथ प्लेटों में आलू के पराठें परोसे गए। गायत्री का चेहरा
देख रीवू बाबू समझ गए थे कि अब जाकर उनके चेहरे पर यह खुशी की चमक आई है। रोज़ वही
नाश्ता। आज काफ़ी अलग है।
बाज़ार जाते वक्त तनिमा भी झोला लेकर संग
चल दी। उसने जाते हुए कहा, “हाट-बाज़ार मुझ पर छोड़ दें। हो सकता है पहले-पहल मैं
थोड़ा ठगी जाऊँ,
लेकिन
कुछ दिनों में ही मैं अभ्यस्त हो जाउँगी।”
दोनों ने बहुत कुछ खरीद लिया। तनिमा ने
कहा, “मैं जब घर पर होती हूँ तो सब्ज़ी मैं
ही लाती हूँ। मुझे बाज़ार से सब्ज़ी लाना पसंद है। हालाँकि, मैं बारगेनिंग नहीं कर पाती हूँ।”
तनिमा की सादगी और कार्यकुशलता से रीवू
बाबू बहुत हैरान हो रहे थे। “देखा न, मैं
भी मोलभाव नहीं कर पाता। चीज़ अच्छी होनी चाहिए।”
घर लौट कर रीवू बाबू ने देखा कि खाना
पकाने वाली सहायिका और घरेलू परिचारिका दोनों ने अपना काम जोर
- शोर से शुरू कर दिया है। वे घर में अचानक आए नए मेहमान को देखने के लिए काफ़ी
उत्सुक हैं। पता नहीं गायत्री ने क्या बताया है उन्हें! रीवू बाबू इस पर अपना
ध्यान न लगा कर अपने काम में लग गए। तनिमा भी हालांकि बैठी नहीं, उसने उनके पलंग के नीचे से चित्रों के अनक बंडल निकाले।
वह उन्हें लिविंग रूम के फर्श पर बिछा कर बैठ गई। कब बनाया गया, कहाँ बनाया गया यह प्रत्येक चित्र के
पीछे अंकित था। उसने उन्हें खोल कर वर्ष और तारीख के अनुसार रखना शुरू किया।
करीब दो घंटे तक काम करने के बाद तस्वीरें
ज़रा तरतीब अनुसार हो गईं। अभी भी बहुत काम किया जाना बाकी है। रीवू बाबू ने कहा, “आज इतना ही रहने दो। नहीं तो थक जाओगी।”
तनिमा रुक गई, बोली - “मुझे चित्र व्यवस्थित करने में कोई
दिक्कत नहीं है। चित्र ही तो मेरे दिन और रात हैं अर्थात् जीवन है।”
रीवू बाबू नई-नई परिचित इस लड़की को
समझने की कोशिश कर रहे थे। उसके बारे में कुछ भी तो नहीं न जानते थे। अचानक ‘मुझे ले चलेंगे अपने साथ’ कहकर
उनके साथ आ गई। अब कह रही है कि चित्र ही तो मेरा जीवन है। पूछा, “क्या तुम नियमित रूप से चित्र बनाती हो?”
“नियमित कहाँ? कब कहीं होती हूँ, तो कभी कहीं - निश्चित
नहीं। जब मैं खाली होती हूँ, मूड अच्छा हो, तब मेरी उंगलियां ब्रश और रंगों से खेलती हैं।”
यह कहकर उसने चित्रों को अच्छी तरह से
लपेटा और उन्हें वापस वहीं रख दिया जहाँ से उठाया था। कहा, बाकी फिर कल करूंगी।
रीवू बाबू समझ नहीं पा रहे थे कि लड़की
कितने दिन रुकेगी,
उसकी
मंशा क्या थी। कल उसने कहा था कि उनके चित्रों की प्रशंसिका है। गायत्री ने कल एक बार कहा था कि एक
पूर्ण अजनबी लड़की को घर पर रहने देना कितना उचित है।
लेकिन अब तक जो अनुभव हुआ है, वह निराश करने वाला नहीं है। उसके हाथ
में पेंट और कैनवस थमाते हुए कहा, “यहाँ तो तुम नियमित रूप से चित्रकारी करोगी।”
तनिमा ने खुश होकर कहा, “अगर गलती हुई तो आप मुझे सिखाएंगे।”
तनिमा ने पूरी दोपहर पेंट और ब्रश के
साथ बिताई।
उस दिन शाम को एक मित्र की प्रदर्शनी
में जाने वाले थे, गाड़ी लेकर डाइवर आ पहुँचा। वे गायत्री को यह बताने गए कि लौटने
में देर हो जाएगी। तनिमा कहीं इधर-उधर थी, उनकी बात सुनते ही दौड़कर आकर कहा, “मुझे ले चलेंगे? मैं तो शाम होते ही कोई न कोई प्रदर्शनी देखने के लिए निकल पड़ती हूँ।”
रीवू बाबू तनिक झिझक रहे थे, लेकिन मना नहीं कर सके और कहा - “तो चलो।”
गायत्री से कहते ही उन्होंने कहा- “ले जाइए, नहीं तो सारी शाम अकेली क्या करेगी यहाँ!”
अनुमति मिलते ही तनिमा अपनी पीठ पर बैग
लटकाए कार की सामने वाली सीट पर जा बैठी।
प्रदर्शनी में तनिमा तस्वीरें देखने
लगी। वह रीवू बाबू के पास नहीं रुकी। कलाकार के मेज से एक ब्रोशियर उठाया है और
दीवार पर लटकी तस्वीरों को देखने लगी। बैग से एक नोटबुक निकाल कर चित्रों को
देख पता नहीं क्या लिखे जा रही थी। ठीक ऐसा ही किया था उनकी प्रदर्शनी के दौरान ।
रीवू बाबू उसके प्रयासों पर चकित थे। तस्वीरों
को उत्सुकता से देखते हुए, और फिर उन पर नोट्स लेते हुए। हालांकि यह देखा गया कि वह काम के दौरान वह रीवू
बाबू पर भी नजर रखे हुए थी। उद्घाटन समारोह के बाद चित्र देखना समाप्त करने के बाद
सोच ही रहे थे कि घर लौटा जाए। तनिमा पता नहीं कहाँ थी, अचानक आ हाज़िर हुई। कहा- “ मेरा काम हो गया।”
लौटते समय उन्होंने पूछा, “शुभेंदु की प्रदर्शनी कैसी लगी?”
तनिमा ने हाज़िरजवाबी से कहा, “अच्छी। लेकिन आपके बराबर बिलकुल नहीं।”
वाह! दूसरों के दिल का बहुत ख़याल रख कर बात करती है तनिमा।
“आपके चित्रों में देशज प्रतीकों का अमूर्त
या अर्ध-अमूर्त रूप है। एक अद्भुत और रहस्यमयी रचना। लेकिन शुभेंदु बाबू के
चित्रों में ग्रामीण समुदाय की जीवन शैली की झलक है।”
रीवू बाबू को बहुत आश्चर्य हुआ कि केवल
एक या दो पंक्तियों में उसने दो प्रदर्शनियों के चित्रों के संदर्भ को इतने
सारगर्भित तरीके से अभिव्यक्त कर दिया। यानी पेंटिंग्स को लड़की अच्छे से समझती
है।
तनिमा ने अचानक कहा, “आपने तंत्र कला को चित्रित किया है
इसीलिए मैं आपकी फैन हो गई। तंत्र मेरा प्रिय विषय है। आपकी तंत्र श्रृंखला के
बारे में मुझे कुछ कहना है।”
“क्या?”
“तंत्र संबंधी चित्रों में रंग थोड़े और
चमकीले होते तो बेहतर होता।”
रीवू बाबू काफी हैरान थे। सभी बुद्धिजीवी-दर्शकों
ने उनके चित्रों की इतनी प्रशंसा की है, और यह लड़की कह रही है कि....
बाद में, उन्होंने सोचा कि पेंटिंग करते समय उन्होंने भी तो यह सोचा था कि अगर रंग थोड़े और
चमकीले होते तो चित्र खिल जाते! कौतुहल से पूछा - “क्या तुमने तंत्र लेकर अध्ययन किया है,
क्या?”
“बहुत। सैद्धांतिक और व्यावहारिक दोनों।”
“प्रैक्टिकल!” रीवू बाबू अवाक रह गए। मात्र एक दिन के
परिचय पर ही लड़की को घर में रहने दिया था। वह स्वयं भी तंत्र के व्यावहारिक पहलू
को नहीं समझते, जबकि तनिमा समझती है।
“सर, मैंने जीवन के साथ बहुत प्रयोग किए हैं। पंच म-कार के प्रभाव को
समझने की कोशिश की है। एक ही तो जीवन है। प्रयोग करके देखा जाए।”
रीवू बाबू की आँखें फैल गईं। उन्होंने
तंत्र पर कई किताबें पढ़ी हैं। तंत्र में नारी तन एक विचित्र भंडार है। नारी तन
में बावन वर्णमालाएं अवस्थित हैं। बहुत पेचीदा मामला है। तनिमा ने उसमें से कितना
समझा है यह नहीं जान पाए। बड़ी अबूझ लड़की है यह - ये शब्द उसके दिमाग में आए।
लेकिन उसके चेहरे पर बहुत सादगी है।
उनकी तस्वीरों में रंग शायद थोड़ा कम
होता है, इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि उनके जीवन
में भी रंगों की कमी है।
“सर आपने अपनी तंत्र श्रृंखला में इस
विषय को इतने अनायास ढंग से प्रस्तुत किया कि इसने मुझे रोमांचित कर दिया।”
उसकी बात समाप्त होने से पहले ही कार फ्लैट
के सामने पहुँच चुकी थी। लिफ्ट के सामने ही दूसरी मंजिल वाली वर्णना बैनर्जी से
मुलाकात हुई। भारी- भरकम मेक-अप के साथ पचास से ऊपर की महिला बेहद खूबसूरत नजर आ
रही थीं। निश्चित रूप से किसी पार्टी से लौटी होंगी। उनकी तरफ देख मुस्कुराते हुए कनखियों
से तनिमा को देख रही थीं।
तनिमा न सिर्फ तस्वीरों को अच्छे से
समझती है, बल्कि दो-तीन दिनों में ही उसने रीवू
बाबू की सभी तस्वीरों को झाड़-पोंछ कर सहेजने का काम शुरू कर दिया। इतना ही नहीं, गायत्री के बीमार होने के कारण घर के सामान
से लेकर अन्य चीज़ों तक को फुर्तीले और कुशल हाथों से झाड़-पोंछकर चमका दिया।
लड़की की कार्यकुशलता से गायत्री भी
हैरान हैं। मानो उनके परिवार में ऐसी लड़की की बहुत ज़रूरत थी। राहत महसूस कर रहा
थीं, और फिर सोच रही थीं कि एक पूर्णत: अजनबी लड़की को इस तरह रखना भी तो मुश्किल है।
कुछ ही दिनों में तनिमा ही घर का
केंद्र बिंदु बन गई। सुबह की चाय से लेकर ताज़ा नाश्ता, बाज़ार-खरीदारी, और कोई भी ज़रूरी काम झटपट निपटाना।
गायत्री को जो छोटे-मोटे काम करने होते थे वह भी अब तनिमा नहीं करने देती। यहाँ तक
कि उन्हें दिन भर की दवा खिलाने की जिम्मेदारी भी तनिमा की ही है।
अब घर में रहने का मज़ा ही कुछ और है।
एक दिन देर रात को तनिमा को लेकर घर
लौटते हैं, लिफ्ट में चढ़ते हैं, लिफ्ट में उनके सामने वाले फ्लैट के आनंद पकरसी भी थे। तनिमा को कनखियों से देखा, कहा नहीं कुछ, लेकिन देखने का तरीका बहुत बुरा था।
लिफ्ट से उतरते समय तो अचानक मुस्कुरा कर
कहा “आप बहुत मस्ती में हैं।”
कह कर रुके नहीं, फटाफट अपने फ्लैट में घुस गए।
रीवू बाबू अवाक रह गए और उन्होंने तनिमा
की तरफ देखा। उसका चेहरा पीला, गंभीर था।
घर में आने के बाद रीवू बाबू काफी देर
तक चुप रहे। तनिमा के अपने कमरे में जाते ही गायत्री को आनंद पकरसी की बात बताई।
गायत्री कुछ देर चुप रहीं, फिर बोलीं, “मैंने आपको बताया नहीं, पिछले दो-तीन दिनों से बगल वाले फ्लैट की श्रीमती पकरसी, नीचे वाले
फ्लैट की मिसेज पाल और मिसेज बॉटोबॉयल – इकट्ठी
होकर हमारे फ्लैट पर आ रही थीं। कुरेद-कुरेद कर पूछा कि लड़की कौन है, हमारे साथ उसका क्या संबंध है, वह कब तक रहेगी, उसके माता-पिता कहाँ रहते हैं – यह सब।”
रीवू बाबू के आश्चर्य का ठिकाना नहीं
रहा। उनकी अनुपस्थिति में इतना कुछ हो गया और गायत्री ने उन्हें कुछ नहीं बताया! उन्होंने
बुदबुदाते हुए कहा, “इन्हें खा-पीकर का कोई काम-धंधा नहीं है। सिर्फ़ परनिंदा और दूसरों
की बातें।”
“और भी कितना कुछ कह रही थीं!”
“क्या कह रही थीं?”
“मुझे भड़काने की कोशिश कर रही थीं। उन्होंने
कहा, तुम तो बिस्तर सी लगी हो। उस मौके का फायदा
उठाकर तुम्हारा पति एक और लड़की को जुगाड़ करके-”
गायत्री ने और कुछ नहीं कहा, जो समझना था रीवू बाबू समझ गए।
डाइनिंग टेबल पर बर्तनों की आवाजें सुन
कर, रीवू बाबू ने मुड़ कर देखा तनिमा रात के
खाने की व्यवस्था कर रही है। थोड़ी देर बाद उसने पुकारा, “सर खाना लगा दिया है। आप आंटी को ले आइए।”
रात काफ़ी हो गई थी, रीवू बाबू ने गौर
किया कि तनिमा की आँखें नींद से बोझिल हो रही हैं, लेकिन उसका चेहरा गंभीर है। खाने का समय काफ़ी दीर्घ जान पड़ रहा था।
तनिमा मुँह में निवाला डाल रही है, लेकिन वह अन्य दिनों की तरह चहक-चहक कर बातें नहीं कर रही है, निवाला मानों मुँह में अटक जा रहा हो। अवश्य
उसने गायत्री की बातें सुनी होंगी।
क्या आज घर में रोशनी थोड़ी कम है? तनिमा का चेहरा अन्य दिनों की तुलना
में फीका लग रहा है। रीवू बाबू इस समय कुछ भी नहीं कहना चाहता थे। कल सुबह शांति से
इस बारे में बात करेंगे। कहेंगे, जीवन के हर क्षेत्र में कुछ चूहे, तिलचट्टे, छुछुंदर ऐसे होते हैं
जिन्हें स्वस्थ,
सुंदर
जीवन से खिलवाड़ करने में मज़ा आता है।
रात में बिस्तर पर लेटे-लेटे उन्होंने
गायत्री से इस विषय पर चर्चा की। गायत्री ने कहा, “मुझे कोई परेशानी नहीं हो रही है। बल्कि उसके उसके आने के बाद से मुझे
काफी राहत महसूस हुई। घर के कामों को कितनी सुघड़ता से फटाफट निपटा लेती है!”
रीवू बाबू ने राहत की सांस ली और कहा, “मेरा चित्रकारी वाला कमरा पूरी तरह से
अस्त-व्यस्त हो गया था। तनिमा ने इसे इतना चमका दिया है कि अब मुझमें चित्रकारी
करने का उत्साह और भी बढ़ गया है। दरअसल क्या है कि हम बहुत परेशानी में हैं तो
कुछ लोग इसका आनंद लेते हैं। वे चाहते हैं कि हमारी समस्या स्थाई हो। कोई आकर हमारे
जीवन को बेहतर बनाए इसे वे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं।
अगले दिन नींद ज़रा देर से खुली। अन्य
दिनों दरवाज़े पर तनिमा की दस्तक से नींद खुलती है। उनके दरवाज़ा खोलते ही तनिमा मुस्कुराते
हुए हाथों में दो कप चाय लिए दिखतीं। आज आठ बज गए हैं, लेकिन तनिमा ने अभी तक जगाया नहीं। तो क्या
वह भी इस समय तक सो रही है।
रीवू बाबू ने बाहर आकर तनिमा का कमरा
खुला देखा। इसका मतलब है कि वह पहले ही जग चुकी है।
तो क्या रसोई में चाय बना रही है!
लेकिन नहीं, रसोई में भी नहीं है।
रीवू बाबू हैरान होकर कमरे में इधर-उधर
घूमने लगे। अचानक उन्होंने डाइनिंग टेबल पर एक चिरकुट पड़ी देखी। चम्मच से दबाई
हुई। उन्होंने झट से उसे उठाया और स्पष्ट अक्षरों में लिखा देखा -
“सर, मेरी किस्मत हमेशा ही से ख़राब रही है। बचपन से ही मैं ज़रा अलग तरह
की हूँ। मेरे छोटी बहन जब किताबों में तल्लीन रहती थी, मैं मन ही मन चित्र बनाती थी। पिता को
पेंटिंग पसंद नहीं थी। हर बार वे हाथ से पेंट और तूलिका छीन लेते। इतने सालों से
ऐसा ही चल रहा है। लेकिन मैं क्या करूँ? दुनिया में हर कोई पढ़ाई-लिखाई के लिए पैदा नहीं होता। कोई चित्रकारी
करेगा, कोई गाएगा, कोई साहित्य रचेगा, कोई पहाड़ पर चढ़ेगा- यही तो नियम है न।
इसलिए मैं अपने घर में सुस्थिर नहीं रह सकती थी। आपसे मिलकर मुझे ऐसा लगा था कि
मुझे अपनी दुनिया वापस मिल जाएगी। जब जीवन के सारे रंग ख़त्म हो गए, आपने मुझे रंग और तूलिका थमा दी। मेरी
दुनिया धीरे-धीरे रंगीन होती जा रही थी। लेकिन किस्मत जिसका साथ नहीं देती, उसकी जिंदगी में रंग भला कैसे टिकेंगे!
अदृश्यरूप से किसी ने आकर फिर से मेरे रंग और तूलिका छीन ली और मुझे बेसहारा कर
दिया। मैं नहीं चाहती कि मेरी जैसी बेसहारा लड़की की वजह से आपका सुंदर जीवन
कलंकित हो। जैसे अचानक आई थी उसी तरह मैं अपने पुराने पते पर लौट रही हूँ। आप
लोगों ने मुझे कुछ दिनों के लिए जो सम्मान दिया है, वह मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। हो सकता है एक दिन हम फिर ऐसे
ही किसी प्रदर्शनी में मिलें। मुझे आंटी बहुत अच्छी लगीं। इति - तनिमा।”
चिरकुट पढ़कर रीवू बाबू सन्न रह गए।
गायत्री भी धीरे-धीरे चल कर आकर उसके पास खड़ी हो गईं। उन्होंने चिरकुट हाथ में
लेकर पढ़ी। रीवू बाबू की ओर देखा। उन्होंने कहा, आपने उसका पता नहीं लिया था?
रीवू बाबू ने सिर हिलाया, “नहीं। कहा था, बाद में दूंगी।”
गायत्री ने लंबी आह भरी।
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