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रविवार, दिसंबर 18, 2022

कहानी श्रृंखला - 25 (पंजाबी कहानी) - लहरों का संगीत 0 मेजर मांगट अनुवाद – नीलम शर्मा ‘अंशु’

         पंजाबी कहानी                              


       लहरों का संगीत

                                                       

       0 मेजर मांगट



अनुवाद – नीलम शर्मा अंशु



दोनों तरफ पहाड़ थे, न तो बहुत ऊँचे और न ही नीचे। पहाड़ों से घिरा एक समुद्री तट। माइकल उसके साथ नहीं आया था। उसे तो बार में बैठ बीयर पीना ज़्यादा अच्छा लगा था। यह सोच कर वह उदास हो गई।

कहाँ गई उसकी प्रायॉरिटी ?  क्या उसका मुझसे दिल भर गया ?’ अनामिका ने खुद से पूछा।

वह तो कहा करता था, तुम सारी दुनिया से पहले हो ।

उसने अपनी आँखों की नमी को पोछा।

पानी की मीटर-मीटर भर ऊँची लहरें, उसके कदमों में आकर छुई-मुई सी हो जातीं।

अस्त होते सूर्य की सुनहरी आभा ने मानों सोना बिखेर दिया था। सूर्यास्त होते ही सन-बाथ ले रहे लोगों ने कपड़े समेटने शुरू कर दिए थे। नाममात्र वस्त्रों वाले चमचमाते तनों को अब अंधेरा अपने आवरण के आगोश में लेने वाला था। लोग भले ही सारे वस्त्र उतार देते, हल-चल तो भी नहीं होने वाली थी। हल-चल तो आज उसके दिल में थी, जहाँ सोच-विचार के सैंकड़ों ज्वार उठ रहे थे।

सैलानी अभी भी पानी पर सर्फिंग कर रहे थे। उनकी लाइफ जैकेटें सुरमई शाम में बीरवहुटी की भाँति चमक रही थीं।

नवयुवक और नवयुवतियां तेज़ कदमों से सर्फिंग बोर्ड की तख्तियां चलाते प्रतीत हो रहे थे। कई पानी पर कलाबाजियां खा रहे थे। लोग बहुत खुश थे परंतु आज वह खुश नहीं थी।

माइकल ने उसे रोक कर कहा क्यों नहीं कि ऐनी !  मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ।

वह तो अपने किसी स्पेनिश दोस्त के साथ दारू पीने बैठ गया था। ऐनी भारतीय संस्कृति से होने के कारण हमेशा शराब नहीं पीती थी। हाँ कभी – कभार रस्मी तौर पर वाईन या शैंपेन ले लिया करती थी परंतु माइकल अक्सर कहता रहता, अब तुम अपने को बदलो।

जब उन्हें प्यार हुआ था, उसने तो तब ही अपने बारे में सब कुछ बता दिया था। तब तो माइकल को कोई ऐतराज़ नहीं था। तब तो वह भारतीय संस्कृति और व्यंजनों की तारीफें करता नहीं थकता था और अब वह उसे पिछड़े ख़यालों की समझ रहा था। आँखें पोंछती वह आकाश में गहरा रहे तारों को देखती रही।

सूर्यास्त के बाद तारे और भी गहरे हो गए थे। उसे अंतरिक्ष, संगीत, समंदर और प्रकृति में बेहद दिलचस्पी थी परंतु माइकल को यह सब अच्छा नहीं लगता था। उसकी दिलचस्पी तो आइस हॉकी में थी। आइस हॉकी से हटता तो बेसबॉल का जुनून सवार हो जाता। जब वह उसे बार में छोड़ कर आई थी, तब भी बेसबॉल का मैच चल रहा था, जिसमें टोरांटो और टैंपा बे खेल रहे थे। बार में यह बड़े टी वी पर दिखाया जा रहा था। लोगों से बातें करता वह मैच भी देखता रहा। यही वजह थी कि वह उसके साथ नहीं आया था।

वह तो जानता था, कि मुझे सूर्यास्त, लहरों का संगीत और सागर पर चमकते तारे कितने अच्छे लगते हैं। सोच-सोच कर अनामिका फिर उदास हो गई।

उसने तो सारे परिवार के विरुद्ध जाकर माइकल से शादी की थी। स्पेनिश गोरे के साथ पंजाबी युवती की यह शादी रिश्तेदारों को बहुत अखरी थी। माइकल का परिवार तीन पीढ़ियों से वैंजुएला से आकर कैनेडा में बस गया था परंतु अनामिका की यह दूसरी पीढ़ी थी। माइकल तो अपनी संस्कृति और रीति-रिवाजों को भूल चुका था परंतु वह अभी नहीं भूली थी।  अंग्रेजी तो दोनों बढ़िया बोल लेते थे, परंतु स्पेनिश सिर्फ़ माइकल ही बोल सकता था। अमेरिका में तो बहुत से लोग स्पेनिश बोल लेते थे, वह लोगों के साथ दोस्ती गाँठ लेता था। इस बीच पर भी स्पेनिश जानने वाले बहुत थे।

अनामिका को आज अपने परिवार की बहुत याद आई। उसके डैड उसे बहुत प्यार करते थे। माँ सारा दिन उसकी चिंता में डूबी रहती थी। अगर ज़रा सा भी लेट हो जाती, तो उसकी माँ सारा घर सर पर उठा लेती थी। परंतु अब माँ से मिले उसे दो बरस हो गए थे।

वह विक्टोरिया डे वाले दिन आपने डैड के साथ गार्डनिंग करती। उसके डैड को घर के पिछले आँगन में सब्ज़ी-भाजी उगाने का शौक था। वे पंजाब में भी खेती-बाड़ी किया करते थे। बेशक वे पढ़े-लिखे थे परंतु कैनेडा आकर भी उनका जट्टपुणा नहीं मरा था। बात-बात में कहा करते, हम जाट हुआ करते हैं, ऐसे ही कोई गोरा-वोरा मत ढूंढ लेना।

परंतु यह कौन सा किसी में वश में होता है, जब प्यार ही गोरे से हो गया तो मैं क्या करती ? वाटरलू यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस की डिग्री के दौरान, प्रथम वर्ष में ही माइकल उसके जीवन में आ गया था। वह भी साथ वाली बिल्डिंग में ही रहता था और कक्षाएं भी एक साथ ही लगतीं। रोज़ मिलते, इकट्ठे घूमते, छोटी-छोटी बातें प्यार में बदल गई थीं।

वह कभी माइकल और कभी पीछे छूट गए परिवार के बारे में सोचती रही। वह सबसे बड़ी थी। संदीप और विनीत तो अभी छोटे थे। यादें और गहराने लगीं।

अगर पिता को सब्ज़ियां उगाने का शौक था तो उसे फूलों का। वे दोनों पौधे लेने नर्सरी जाते। पिता मिर्च, टमाटर, कद्दू, करेले और बैंगन ढूंढते फिरते और वह अपने मनपसंद फूल, जिनमें उसे रेड फाउंटेन, लिली, स्पाइक्स, जरेनियम, औनोआसल और ट्युलिप बहुत अच्छे लगते। वह ये फूल लेने के लिए अपने डैड को मजबूर कर देती, परंतु जब उसके अपने दिल में प्यार का फूल खिला तो उसके डैड को क़तई अच्छा न लगा।

वह सुबह-शाम पौधों को पानी देती, घास काटती, डैंडीलाइन बूटी उखाड़ती और अपने डैड की अन्य कामों में मदद करती। पर डैड ने उसे अपने दिल से ही उखाड़ बाहर किया था।

क्या वह डैड की बगिया का फूल नहीं थी ? क्या वह भी डैंडीलाइन जैसी कोई बूटी ही थी जो पारिवारिक लॉन में उग आई थी।

सोच-सोच कर उसका सर चकराने लगा था।

किसी पौधे की टहनी टूट जाती तो डैड उदास हो जाते, कोई खरगोश या गिलहरी पौधे को तोड़ देते तो वे बेचैन हो जाते।

क्या उन्होंने माइकल को भी कोई जंगली रकून (एक कैनेडाई जानवर) या फूल-पौधे बर्बाद करने वाला जानवर ही समझा था ?’ उसके डैड हरकीरत सिंह इतने कमज़ोर कैसे हो गए? इतने निर्मोही कैसे हो गए ?

अब वही सब माइकल भी करने लगा था।

उसका सर फटने लगा। अगर माइग्रेन शुरू हो गया तो वापस जाना पड़ेगा। उसने खुद से कहा और छोटे पर्स से ऐडविल की गोली निकाल कर बोतल के पानी से निगल ली।

उसे पुरुषों की मानसिकता ही समझ नहीं आ रही थी, जो झट बदल जाते थे।

पानी की बड़ी लहर आई तो सारे कपड़ों को भिगो गई। लहर तो लौट गई परंतु अनेक शंख-सीपियां गीली रेत पर मोतियों की भाँति चमकने लगे।

अब चाँद भी पूरी शान से चमक रहा था। इतना बड़ा आकार देख कर वह सोच रही थी कि आज ज़रूर फुल मून होगा। माँ फुल मून को शायद पूरणमाशी कहा करती थी। ज्यों-ज्यों चाँद ऊपर आने लगा, तारे फीके पड़ने लगे और लहरें और भी ऊँची उठने लगीं। यही ज्वारभाटा देखने के लिए ही तो वे कोकोआ बीच पर पहुँचे थे।

एक बार वह अपने परिवार के साथ मियामी बीच पर ही गई थी, परंतु डैड के सामने बीच वाली पोशाक नहीं पहन सकी थी। अब जब वह पोशाक पहन सकती थी तो माइकल को पता नहीं क्या हो गया था। तब समुद्री तूफान की चेतावनी के कारण वे वकेशन बीच में ही छोड़ कर आ गए थे, परंतु आज उसके मन में जो तूफान उठ रहा था, उसका वह क्या करे ?

एक तूफान माइकल से शादी के फैसले के कारण घर में भी उठा था। तब माइकल उसे तूफान से निकाल ले गया था। पिता को यह बात अपने पुरखों के खिलाफ़ बगावत और कोई गहरी साज़िश प्रतीत हुई थी। इसके बाद उनकी फूल जैसी बिटिया किसी करौंडे (पंजाब में पाई जाने वाली एक कांटेदार झाड़ी) का काँटा बन उनकी एड़ी में धंस गई थी। वे मानसिक पीड़ा से बेहाल हो गए थे और बेटी से सदा के लिए किनारा कर लिया था।

अगर वश चलता तो पारिवारिक बगिया के इस फूल को भी वे मसल देते। स्वाभिमान के लिए क़त्ल करने वाले उन्हें भी शूरवीर प्रतीत होने लगे थे। कई बार बात मारने-पीटने तक भी पहुँची थी और कई बार माँ ने उसकी ख़ातिर अपनी चुटिया भी नुचवाई थी।

फिर धीरे-धीरे माँ भी पिता के गुट में शामिल हो गई थी। वह बेटी को तो छोड़ सकती थी परंतु पति को नहीं। छोटे भाई-बहन ख़ामोश ही रहते, हाँ इतना ज़रूर था कि छोटी बहन ने मार-कुटाई के दौरान 911 डायल कर पुलिस बुला ली थी और जिसने उसके पिता हरकीरत सिंह को चार्ज कर लिया था। तब ही पुलिस की हिदायत पर वह सुरक्षित जगह ढूँढती, स्थाई तौर पर माइकल के साथ आ रहने लगी थी और कोर्ट मैरिज कर ली थी। इस शादी का विरोध तो माइकल की स्पेनिश फैमिली ने भी किया था, जिनके श्वेत रंग में कालिमा घुल गई थी परंतु माइकल ने किसी की परवाह नहीं की थी।

साल भर दोनों ने बहुत कठिनाईयों का सामना किया। परिवारों की तरफ से वित्तीय सहायता बंद हो गई थी। उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ नौकरियां ढूँढ ली थी। जब अच्छे-ख़ासे पैसे जमा हो गए तो उन्होंने पारंपरिक शादी का एलान कर दिया। दोस्तों की खुशी के लिए डेस्टीनेशन मैरिज के लिए मैक्सिको का एक रिसॉर्ट चुन लिया। उन्होंने खुद ही सभी प्रबंध किए, बैंक से लोन भी मिल गया। और माता-पिता के बगैर सब कुछ उन्होंने खुद ही किया। हनीमून पर वे दो सप्ताह के लिए क्यूबा चले गए। उसके परिवार ने तो कभी बात नहीं पूछी।

पिता लोगों से कहता, मैं जानता हूँ इन गोरों को, एक दिन छोड़ कर भाग जाएगा और फिर आँखों में घूँसे मार-मार रोएगी।

क्या डैड सच कहते थे ?’ वह सोचने लगी।

पानी की एक और लहर आई और सब कुछ भिगो कर चली गई।

कोई ज़ोर से हँसा। जिधर से आवाज़ आई थी, उधर देखा तो माइकल बीच वाली पोशाक पहने चला आ रहा था।

कम ऑन डार्लिंग तुमने मेरा वेट भी नहीं किया, मैंने तुम्हें कहा भी था कि मैच छह बजे तक ख़त्म हो जाएगा। आते ही उसने कहा।

ऐनी चुप रही।

तुम्हें पता तो है डोनाल्डसन, कारनासियो, बटीटसा और कैवन सभी मेरे फेवरेट प्लेयर हैं। जो लास्ट होम रन मारा वह तो देखने वाला था। माइकल बोलता गया।

ऐनी फिर भी चुप रही।

अगर तुम पंद्रह मिनट मेरे पास बैठ जाती, दो घूंट सिप कर लेती या रुक ही जाती, तो मुझे कितना अच्छा लगता। तब तो तुमने कहा था तुम्हारे शौक मेरे, हर बात में साथ दूंगी। अब कहाँ गए वे वादे ?’ माइकल हँसा।

ऐनी बोली तो सही परंतु अपने गिले-शिकवे लेकर बैठ गई।

मैं इसी लिए कैमरा लेकर आई थी कि समुद्र में अस्त होते सूरज की तस्वीरें खींचेंगे। सूरज पर बिखरी सुनहरी परत की तस्वीरें खींचेंगें। तुमने मेरा वह सारा समय निकाल दिया। अब कैसे लौटा लाऊं मैं सूरज को ?  मेरा भी तो वह शौक था, वादे तो तुमने भी किए थे। वह बहुत गुस्से में थी।

माइकल ने सुबकती ऐनी को बाँहों में भर लिया और अंतत: वह ठीक हो गई।

चाँद, चाँदनी रात के अलावा बीच से हट कर लगे खंभों से भी बिजली के बल्वों की रोशनी आ रही थी। इस मध्यम सी रोशनी में वे नंगे पाँव धरती पर चलते हुए, कभी पानी में घुस जाते और कभी बातें करने लगते।

देखो ऐनी, हर व्यक्ति की अपनी मानसिकता और शौक होते हैं और हर व्यक्ति पर उसकी परवरिश का प्रभाव होता है। हमारे परिवारों में बीयर, वाइन या व्हिस्की पीना हमारी संस्कृति का हिस्सा है। मुझे स्पोर्टस्, मेरे पिता से विरासत में मिली हैं। उसी तरह तुम्हारे शौक हैं और विरासत है। हमें अपने शौक एक दूसरे पर ज़बरदस्ती नहीं थोपने चाहिए। अगर एक ही वक्त दोनों के लिए महत्वपूर्ण है, तो अपने-अपने समय का आनंद उठाने में कोई हर्ज़ नहीं है। तुम प्रकृति का आनंद उठा लेती और मैं मैच देख लेता। अब मैच ख़त्म हो गया है, और मैं झट से आ गया हूँ, परंतु तुम अभी भी नाराज़ बैठी हो जैसे मानो सारा गुनाह मेरा ही हो। अगर हम एक दूसरे को स्पेस नहीं देंगे, तो दम घुटने लगेगा।

फिर तो आप यह भी कहेंगे कि मुझे अपने माता-पिता को भी स्पेस देनी चाहिए थी। अनामिका ने कहा।

ऑफकोर्स तुम्हारे डैड जिस कल्चर में पले-बढ़े हैं, उस का यही चलन रहा होगा। आदमी वैसा ही बनता है जैसा उसके आस-पास का माहौल और हालात बनाते हैं।  हमारे दिमाग प्रोग्राम्ड होते हैं। हमें दूसरे व्यक्ति की साइकोलॉजी समझने की ज़रूरत होती है।

अनामिका सुनती रही और वे कितनी ही देर एक-दूसरे का हाथ पकड़े खड़े बातें करते रहे।

जब हर तरफ घना अंधेरा छा गया, तो चंद्रमा का अक्स पानी पर चाँदी बिखेरने लगा। कई मोटे-मोटे तारे अभी भी चमक रहे थे। उन्होंने अपने टेलिस्कोप से चाँद पर पड़े क्रेटर देखे और दूर के तारों को भी देखा। वे अंदाज़ा लगा रहे थे कि कौन सा मर्करी होगा और कौन सा वीनस। कभी वे जुपिटर, कभी मार्स और कभी सैटर्न ढूँढने लगते।

बहुत दूर समंदर और आकाश एक – दूसरे से मिल रहे थे । धरती के साथ-साथ मुड़ती समुद्री गोलाई देखी जा सकती थी। वे देर रात प्रकृति के इन नज़ारों का लुत्फ उठाते रहे थे।

जब वे वापस होटल के कमरे में लौटे, बीट फ्रंट पर बनी सभी इमारतें सतरंगी रोशनियों में सराबोर प्रतीत हो रही थीं, मानो होली खेल रही हों।  जगह-जगह पॉट लाइटें लगीं होने के कारण सतरंगी झूले जैसा नज़ारा पेश कर रही थीं।

उन्होंने डाइनिंग हॉल में आकर डिनर भी किया और डांस भी। ऐनी ने ड्रिंक भी ली। किसी ने नहीं पूछा कि गोरे माइकल के साथ यह भूरी युवती कौन है, और इसकी क्या लगती है। यह आदत तो भारतीय मूल के लोगों को ही थी। ऐनी ने सोचा।

दो ड्रिंक्स ने ही उसकी सोच और उदासी को और बढ़ा दिया।

क्या सिर्फ़ डैड का ही कसूर था ?  क्या डैड का कभी भी मुझसे मिलने को दिल नहीं चाहा होगा ?’ उसे अपनी माँ भी बहुत याद आ रही थी।

जब वे अपने कमरे में गए तो अनामिका ने फोन देखा, छोटी बहन और भाई दोनों के मैसेज आए हुए थे कि माँ बीमार है, तुम्हें बहुत याद करती है। पढ़ कर उसकी आँखें भर आईं, और फोन माइकल की तरफ बढ़ा दिया।

माइकल ने मैसेज पढ़ कर कहा, अब अपनी शादी तो हो चुकी है, तुम किस बात से डरती हो ? माँ-बाप फिर नहीं मिलते। तुम्हें तुरंत फोन कर लेना चाहिए। अगर किसी प्रकार का गुस्सा होगा भी तो निकल जाएगा, आखिर तुम उनकी बेटी हो।

ऐनी सोचने लगी कि अगर फोन डैड ने उठा लिया और भला-बुरा कहने लगे तो। माइकल का कहना था कि पहले फोन डैड के सेल पर ही कर लो। उसने मन कड़ा करके सोचा कि चलो जो होगा देखा जाएगा और सीधे अपने डैड को ही फोन लगाया। उधर से मध्यम सा स्वर सुनाई दिया,  हैलो।

मैं अनामिका बोल रही हूँ, डैड आप ठीक हैं ?’

कुछ देर चुप रहने के बाद, बेटा सौ गिले-शकवे होते हैं तुमने तो हमें बिलकुल ही भुला दिया। मुझे माफ कर दे बेटा। हरकीरत की रुलाई फूट पड़ी।

हम तुम्हें बहुत मिस करते हैं बेटा, मिलने को भी बहुत जी चाहता है।

अब अनामिका भी रो रही थी, मेरा कौन सा मिलने को जी नहीं चाहता।

बेटा गुस्से में इन्सान बहुत कुछ कह देता है, मैं माफी मांगता हूँ माइकल को लेकर कभी घर आओ मिलने। इन्सान तो सभी एक जैसे ही होते हैं। हमारे गुरुओं का भी यही संदेश है।

अनामिका को अपने डैड बहुत बदले-बदले से प्रतीत हुए, जो आज माइकल के साथ भी बात करना चाहते थे। देसी स्टाइल की अंग्रेजी में वे बातें करते रहे और सॉरी-सॉरी भी कहते रहे। अनामिका ने बीमार माँ से जी भर कर बातें कीं।  माँ ने कहा कि आज उनके कलेजे में ठंड पड़ गई है और अब वे बहुत जल्दी ही ठीक हो जाएंगी। फिर संदीप और विनीत भी बहुत देर तक बातें करते रहे।

माँ ने कहा कि फ्लोरिडा से लौटते ही वे ज़रूर मिलने आएं।  सभी बहुत खुश हुए। अनामिका की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था। फिर वह देर रात तक माइकल के साथ अपने परिवार की बातें करती रही। कह रही थी,

डैड की सुगर बढ़ गई है और अब इन्सुलिन लेते हैं। माँ का ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है और घबराहट होने लगती है। नज़र भी कमज़ोर हो गई है।

 

 

ज़िंदगी की पुस्तक का बंद पड़ा अध्याय फिर खुल गया था।

अनामिका को सारी रात ठीक तरह से नींद नहीं आई। वह अपने परिवार के बारे में ही सोचती रही।

सुबह हुई तो माइकल तौलिए उठाए खड़ा था, वह उसे हॉट वाटर टब और पूल पर जाने के लिए कह रहा था। वे ऐलीवेटर लेकर पूल फ्लोर पर चले गए। हॉट टब किसी छोटे तालाब जैसा था और भाप छोड़ता पानी चमक रहा था। इस में गोरे, काले, भूरे सभी नस्लों के लोग स्नान का आनंद ले रहे थे। स्त्रियां-पुरुष सभी इकट्ठे नहा रहे थे। कोई बदतमीज़ी, भेद-भाव या छेड़खानी नहीं हो रही थी और वे भी इस टब में उतर गए।

पूल के साथ ही सन-डक एरिया था, जहाँ गोरी, काली, भूरी औरतें नाम मात्र के वस्त्र पहन सन-बाथ ले रहीं थीं। एशियन कौमें अभी तन से पार जाकर, आदमी को देखने और समझने का जतन ही नहीं कर रहीं।

उसके डैड के लिए भी यह समस्या थी कि तन पूरा ढका होना चाहिए। बात तन की नहीं, मन की है। अगर मन ही काबू में नहीं तो कपड़े भी क्या करेंगे ?  इन लोगों ने अपने मन को काबू में करना सीख लिया है। अनामिका बिना किसी हिचकिचाहट के कपड़े उतार कर बाकी मर्द, औरतों के साथ सिर्फ़ बिकनी पहन कर नहा रही थी। उसके डैड तो उसे स्कर्ट पहनने से भी रोकते थे।

अश्लील तो इन्सान का मन होता है वह सोच रही थी।

खूब आनंद उठाने के बाद, वे होटल के डायनिंग लांउज में ब्रेकफास्ट के लिए चले गए। यहाँ भी अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिटी बहुत सलीके से बैठी सुबह का नाश्ता कर रही थी।  उन्होंने भी एग, बेकन, मफन, सीरीयल, सॉसेज, ब्रेड के साथ ऐपल और ऑरेंज जूस पीया। बाद में कॉफी भी ली। कितना अच्छा लग रहा था।

मनुष्य इस ग्रह पर एक परिवार की भाँति विचरण करे तो यह दुनिया जन्नत बन जाए। पता नहीं आदमी के भीतर का जानवर क्यों जाग जाता है, वह बैठी सोचती रही।

अभी उन्हें इस होटल में एक दिन और गुज़ारना था। ऐनी माइकल से कह रही थी,अब दो साल बहुत घूम लिया, अब हमें बेबी प्लान करना चाहिए। मुझे बहुत चाव है कि वह बच्चा देखूं जो भारतीय मूल की औरत और वैंजुएला के स्पेनिश मर्द के मिलन से जन्मेगा। इस मिश्रित नस्ल का बच्चा ग्लोबल सिटिजन होगा। धर्म, जाति, भाषा, नस्ल सब से ऊपर। इस में सभी रंग और चिहन् घुले-मिले होंगे। रंग पिता जैसा, नक्श माँ जैसे, बाल कोई भी हों, चलेगा।

और डी एन ए ?  माइकल हँसा।

मनुष्य सिर्फ़ मनुष्य है, धरती की संतान, ऐनी आँखें मूंदे बच्चे की कल्पना करती रही।

काफ़ी देर तक हँसी-मज़ाक करके, फिर शॉपिंग के लिए निकल गए। स्टोरों में रखे बच्चों के कपड़े वे स्नेह से देख-देख मुस्कुराते रहे। स्टोर भी ग्लोबल कम्युनिटी से भरे पड़े थे।

दिन भर घूमने-फिरने के बाद वे अपने होटल लौट आए। उन्हें दूसरे दिन लौटना था। वे सोच रहे थे कि सुबह नहा-धो कर आई होप रैस्टोरेंट पर खाना खाएंगे और फिर टैक्सी ले कर एयरपोर्ट चले जाएंगे।

ये उनकी अंतिम शाम थी। वे आज फिर डायनिंग लांउज में बैठे लुत्फ उठा रहे थे। सामने लगे टेलिवीज़न स्क्रीन पर वार्निंग आ रही थी कि मैथ्यु नामक समुद्री तूफान फ्लोरिडा की तरफ तेज़ी से बढ़ रहा है। लोगों को बीच और समुद्री किनारों से दूर रहने की हिदायत दी जा रही थी। लोग डर कर अपना-अपना सामान पैक करने लगे। अनामिका सोच रही थी कि डर, प्यार, नफ़रत इनकी कोई जाति, धर्म और नस्ल नहीं होती। ये हर व्यक्ति के मूल जज्बे हैं या यूं कह लें कि मानवता का किरदार हैं। उसने माइकल से कहा कि हमें भी यहाँ से निकल जाना चाहिए।

और वह हवा में हाथ लहराते हुए बोला,  तूफान तो आते ही रहते हैं, आते हैं और गुज़र जाते हैं। अब जीना छोड़ दें क्या ?  लोगों के घरों की छतें उड़ जाती हैं, घर ढह जाते हैं, कारें बह जाती हैं और पेड़ उखड़ जाते हैं और लोग फिर भी जीना नहीं छोड़ देते।  ज़िंदगी बर्बाद होती है और फिर धड़कने लगती है। बनना मिटना ही तो जीवन का दस्तूर है। वह लापरवाही से खिलखिला कर हंसा।

माइकिल किसी के साथ फिर बातों में लग गया, परंतु आज ऐनी को गुस्सा नहीं आया। वह उसे उसके हिस्से की स्पेस दे रही थी जिसके बारे में उसने खुद को तैयार कर रखा था। वह टैंपा बे और टोरांटो वाले मैच का पोस्टमार्टम कर रहा था। चुप बैठी ऐनी को देख उसने कहा, डार्लिंग चलो बीच पर चलते हैं, सूरज अभी अस्त हो रहा होगा, तारों को अभी चमकना है। मैं कमरे से अपनी बीच वाली पोशाक ले आऊं, आज मैं सर्फिंग बोर्ड भी लेकर जाऊंगा। ऐनी को पता था कि अब वह उसके शौक पूरे करेगा और उसके हिस्से की स्पेस देगा। न न करते हुए वह भी बीच के लिए पोशाक लेने चल दी।

कैमरे लेकर वे ढलती हुई शाम में बीच की तरफ चले जा रहे थे। माइकल का बदन चमक रहा था। ऐनी बिकनी में बहुत खूबसूरत लग रही थी। सैलानियों का अभी भी बहुत जमावड़ा था। कोई कह रहा था अभी तो तूफान बहुत दूर है, परसों तक फ्लोरिडा पहुँचेगा।

ऐटलांटिक सागर में तूफानी हलचल के कारण लहरें बहुत ऊँची हो गई थीं। पानी में में कदम रखते ही माइकल ने ऐनी को अपनी बाँह के आलिंगन में ले लिया, मानो वे एक दूसरे के लिए ही बने हों। उन्होंने आकाश की तरफ देखा सूर्यास्त का आखिरी क्षण था।

समुद्र पर सोना बिखर गया था। शाम का तारा मुस्कुराते हुए उदित हो चुका था। पानी को स्पर्श कर आई हवा कुछ कह रही थी। कभी – कभी प्रकृति भी अपनी भाषा बोलती है, उन्होंने महसूस किया।

पानी की एक ज़ोरदार लहर उनके बदन को तर कर गई। माइकल ने ऐनी को और गहरे पानी में खींच लिया। दूर तक फैला समुद्र। नदी, नाले, नहरें, सबका एक ही रूप। लगा मानो उनकी पहचान भी घुलती जा रही हो। दूर तक समुद्र ही समुद्र। फिर लहरें और भी ऊँची हो गईं, मानों मुहब्बत का गीत गा रही हों।

 

 

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          साभार - छपते छपते, दीपावली विशेषांक - 2021




             लेखक परिचय         मेजर मांगट

    


   जन्म -  1 जनवरी, 1961 (पंजाब)। कैनेडा में निवास। 

      प्रवासी पंजाबी कहानी में एक शीर्षस्थ नाम।  

           अब तक 06 कहानी संग्रह, दो पूर्ण नाटक

           01 भेंटवार्ता पुस्तक01 उपन्यास, 

            01 काव्य संग्रह,

                 गद्य पुस्तक मिट्टी न फरोल जोगिया प्रकाशित। 


             सुलगदे रिश्ते (2005), पछतावा (2006) और 

             दौड़ (2007) आदि पंजाबी फिल्मों हेतु लेखन।


                

             भारत और विदेशों सहित अनेक सम्मानों से विभूषित।

             संपर्क - major.mangat@gmail.com





            अनुवादक परिचय  - नीलम शर्मा अंशु


अलीपुरद्वार जंक्शन, (पश्चिम बंगाल) में जन्म। 

पंजाबी - बांग्ला से हिन्दी और हिन्दी - बांग्ला से 

पंजाबी में अनेक  महत्वपूर्ण साहित्यिक अनुवाद। 

कुल 20 अनूदित पुस्तकें प्रकाशित।  

अनेक लेख, साक्षात्कार, अनूदित कहानियां-कविताएं 

स्थानीय तथा राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।

 

विभिन्न क्षेत्रों में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाली कोलकाता 

शहर की ख्यातिप्राप्त महिलाओं पर 50 हफ्तों तक राष्ट्रीय दैनिक 

में साप्ताहिक कॉलम लेखन।

 

23 वर्षों से आकाशवाणी के एफ. एम. रेनबो पर रेडियो जॉकी। 

भारतीय सिनेमा की महत्वपूर्ण शख्सीयतों पर आज की शख्सीयत 

कार्यक्रम के तहत् 75 से अधिक लाइव एपिसोड प्रसारित।


 विशेष उल्लेखनीय -  

सुष्मिता बंद्योपाध्याय लिखित काबुलीवाले की बंगाली बीवी’ वर्ष 2002 के कोलकाता पुस्तक मेले में बेस्ट सेलर रही। कोलकाता के रेड लाईट इलाके पर आधाऱित पंजाबी उपन्यास लाल बत्तीका हिन्दी अनुवाद।

संप्रति केंद्रीय सरकार के अंतर्गत दिल्ली में कार्यरत।
 ई मेल - rjneelamsharma@gmail.com

                 

               


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